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जानिये कब है बकरीद, इस दिन बकरे की कुर्बानी देने के पीछे यह है कारण

locationलखनऊPublished: Aug 08, 2019 02:09:56 pm

Submitted by:

Karishma Lalwani

ईद उल अजहा के चांद के दीदार के साथ यह साफ हो चुका है कि इस बार बकरीद 11 और 12 अगस्त को मनाई जाएगी

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जानिये कब है बकरीद, इस दिन बकरे की कुर्बानी देने के पीछे यह है कारण

लखनऊ. बकरीद (Bakrid) त्याग और बलिदान का त्योहार है। यह एकता और प्यार से रहने का संदेश देता है। ईद उल अजहा के चांद के दीदार के साथ यह साफ हो चुका है कि इस बार बकरीद 11 और 12 अगस्त को मनाई जाएगी। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, रमजान (Ramzan) महीना खत्म होने के करीब 70 दिन बाद और जुअल हज्जा महीने के 10वें दिन मनाए जाने वाले बकरीद का इस्लामिक मान्यता में बहुत महत्व है। इस्लामिक मान्यता के अनुसार इस दिन प्रतीक के तौर पर किसी चौपाया जानवर की बलि देने की परंपरा है।
यहां से शुरू हुई परंपरा

बकरीद की परंपरा हजरत इब्राहिम से कुर्बानी पर शुरू हुई थी। माना जाता है कि हजरत इब्राहित अलैय सलाम को संतान नहीं थी। अल्लाह से मिन्नतों के बाद इब्राहित अलैय सलाम को बेटा पैदा हुआ जिसका नाम स्माइल रखा गया। इब्राहिम अपने बेटे स्माइल से बहुत प्यार करते थे। एक रात अल्लाह ने हजरत इब्राहिम के ख्वाब में आकर उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांगी। इब्राहिम को पूरी दुनिया में अपना बेटा ही प्यारा था। ऐसे में हजरत इब्राहिम ने अल्लाह को अपनी सबसे प्यारी चीज अपने बेटे को कुर्बान कर दी।
आंखों पर पट्टी बांधकर दी कुर्बानी

इब्राहिम ने अपने बेटे की कुर्बानी अपनी आंखों पर पट्टी बांध कर दी। कुर्बानी के बाद जैसे ही उन्होंने अपनी पट्टी खोली, उन्होंने अपने सामने बेटे को सही सलामत पाया। अल्लाह ने इब्राहिम के धैर्य की परीक्षा ली थी। जब कुर्बानी का समय आया, तो स्माइल को हटाकर दुंबे (भेड़) को आगे कर दिया गया। ऐसे में दुंबे की कुर्बानी हो गई और बेटे की जान बच गई। इस कहानी के बाद कुर्बानी की परंपरा शुरू हुई।
मुसलमान इस दिन नमाज पढ़ने के बाद खुदा की इबादत में चौपाया जानवरों की कुर्बानी देते हैं। कुर्बानी देने के बाद वे जानवर के गोस्त को तीन भाग में बांटते हैं। पहला हिस्सा गरीबों को दिया जाता है, दूसरा रिश्तेदारों और करीबी लोगों के लिए जबकि तीसरा हिस्सा अपने लिए रखा जाता है।
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