मुलायम सिंह यादव का यूपी की सियासत में दमदार कद रहा है। लगभग छह दशक के लंबे राजीनितक करियर में मुलायम की राजनीति ने कई उतार चढ़ाव देखे
BIRTHDAY SPECIAL: वो मुद्दे जिसने मुलायम को पहुंचाया शीर्ष पर, जानिये पहलवानी से सियासी अखाड़े तक का सफर
लखनऊ. ‘धरती पुत्र’ नाम से मशहूर सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव आज अपना 81वां जन्मदिन (Mulayam Singh Yadav Birthday) मना रहे हैं। मुलायम सिंह यादव का यूपी की सियासत में दमदार कद रहा है। लगभग छह दशक के लंबे राजीनितक करियर में मुलायम की राजनीति ने कई उतार चढ़ाव देखे। लेकिन यूपी की सियासत में उनका कद बरकरार रहा। मुलायम के जन्मदिन पर जानते हैं उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ किस्से…
मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवंबर, 1939 को इटावा के सैफई जिले में हुआ था। किसान परिवार में जन्मे मुलायम को उनके पिता सुघर सिंह पहलवान बनाना चाहते थे। इसकी तैयारी भी शुरू कर दी गई थी लेकिन मुलायम की किस्मत में तो सियासी अखाड़ा लिखा था।
1954 में जुड़े नहर रेट आंदोलन से 1954 में समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने नहर रेट आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन में तमाम युवा जुड़े, जिसमें मुलायम भी शामिल थे। इस आंदोलन से राजनीति का ककहरा सीखने वाले मुलायम ने धीरे-धीरे लोहिया के अलावा और तमाम समाजवादी नेताओं से जान-पहचान और नजदीकी बढ़ी। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
मुलायम सिंह अपने पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर हैं। उनके बड़े भाई रतनसिंह यादव का देहांत हो चुका है। उनसे छोटे हैं भाई शिवपाल, रामगोपाल और बहन कमला देवी। मुलायम सिंह की पहली पत्नी मालती देवी थीं। उनका मई 2003 में देहांत हो गया था। अखिलेश यादव मालती देवी के ही बेटे हैं। बाद में मुलायम सिंह यादव ने साधना यादव से दूसरी शादी की। प्रतीक यादव उनके दूसरे बेटे हैं।
28 साल की उम्र में मिला टिकट मुलायम सिंह यादव पहली बार साल 1967 में अपने गृह जनपद इटावा की जसवंतनगर सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे। उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 28 साल थी। इसके बाद से वो लगातार साल 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993 और 1996 में चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचते रहे। इसी दौरान साल 1977 में वे पहली बार उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री भी बने। इमरजेंसी के दौरान जेल जाने वाले मुलायम के जीवन का अहम पड़ाव साल 1989 में सामने आया, जब उन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री की गद्दी संभाली। 1980 में उन्होंने लोकदल के अध्यक्ष पद की कुर्सी संभाली थी। 1985-87 तक मुलायम जनता दल के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
गेस्ट हाउस कांड से मुलायम पर लगे गंभीर आरोप 1993 में यूपी के चुनाव में बसपा और सपा का गठबंधन हुआ, जिसकी बाद में जीत हुई। मुलायम मुख्यमंत्री बने। लेकिन आपसी मनमुटाव के चलते बसपा ने मुलायम की सपा से किनारा कर लिया और सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। इसके बाद मुलायम की सरकार अल्पमत में आ गई। इसके बाद गेस्ट हाउस कांड (Guest House Kand) को लेकर मुलायम पर मायावती की जान लेने का आरोप लगा।
क्या है गेस्ट हाउस कांड उत्तर प्रदेश की राजनीति में 2 जून, 1995 का काफी महत्वपूर्ण है।इसे अगर ‘काला दिन’ कहा जाए, तो गलत नहीं होगा। उस दिन एक उन्मादी भीड़ सबक सिखाने के नाम पर मायावती की आबरू पर हमला करने को उतारू थी। दरअसल्, 1993 में सपा-बसपा ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में गठबंधन की जीत हुई और मुलायम सिंह यादव के मुखिया बने। लेकिन दो साल बाद आपसी मनमुटाव के चलते मायावती ने सपा से अपने रास्ते अलग कर आपसी समर्थन वापस ले लिया। मुलायम एड़ी-जोटी का जोर लगाकर मामला सुलझाने का प्रयास करते रहे। लेकिन जब अंत में बात नहीं बनी, तो नाराज सपा कार्यकर्ता और विधायक मायावती पर हमलावर हो गए। 2 जून, 1995 को जब लखनऊ स्थित मीराबाई में मायावती बसपा कार्यकर्ताओं संग बैठक कर रही थीं, तब सपा समर्थक और विधायक उनपर हमला करने को ऊतारू हो गए। हमले से बचने के लिए मायावती ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया। आरोप है कि सपा नेताओं ने मायावती के साथ बदसलूकी की थी।
गेस्ट हाउस कांड को लेकर सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव, प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल यादव व कई अन्य दिग्गज नेताओं पर मुकदमा दर्ज हुआ था। हालांकि, बीते दिनों मायावती ने इस मामले से मुलायम पर दर्ज केस वापस ले लिया लेकिन बाकियों पर मुकदमा चलता रहेगा। गेस्ट हाउस कांड पूरे देश में चर्चा का विषय रहा।