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अपनी स्थापना से लेकर अब तक ऐसा पहली बार है कि जब सपा सबसे कम सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ने रही है।1996 में सपा पहली बार लोकसभा चुनाव में उतरी थी। तब से लेकर अब तब के छह लोकसभा चुनावों में वह कुल 126 सीटें जीत चुकी है। जबकि 1996 से लेकर 2014 तक के कुल छह लोकसभा चुनावों में बसपा के हिस्से सिर्फ 69 सीटें ही आईं थीं। लेकिन 2019 के चुनावों में तीन राज्यों में सिर्फ 41 सीटों पर सपा लड़ने की तैयारी में तो वह एक तरह से वह बिना लड़े ही करीब 60 प्रतिशत सीटें हार गई है।
अपनी स्थापना से लेकर अब तक ऐसा पहली बार है कि जब सपा सबसे कम सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ने रही है।1996 में सपा पहली बार लोकसभा चुनाव में उतरी थी। तब से लेकर अब तब के छह लोकसभा चुनावों में वह कुल 126 सीटें जीत चुकी है। जबकि 1996 से लेकर 2014 तक के कुल छह लोकसभा चुनावों में बसपा के हिस्से सिर्फ 69 सीटें ही आईं थीं। लेकिन 2019 के चुनावों में तीन राज्यों में सिर्फ 41 सीटों पर सपा लड़ने की तैयारी में तो वह एक तरह से वह बिना लड़े ही करीब 60 प्रतिशत सीटें हार गई है।
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राजनीतिक गलियारों में सपा का बसपा से कम सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो जाना चर्चा का विषय बना हुआ है। सपा सरंक्षक मुलायम सिंह यादव खुद सीट बंटवारे के इस फार्मूले से हैरान हैं। वह सवाल उठा रहे हैं कि 2014 के चुनावों में उप्र में सपा ने 5 सीटें जीतीं थीं। फूलपुर और गोरखपुर उप चुनावों में सपा को दो सीटें और मिलीं। 31 सीटों पर पर वह दूसरे नंबर पर थी। 28 तीसरे नंबर और 11 चौथे नंबर पर थे। उसे कुल 22.2 प्रतिशत मत मिले थे। इस तरह 38 सीटों पर तो उसकी पुख्ता दावेदारी थी ही। लेकिन, अखिलेश यादव सिर्फ 1 सीट गवांकर आखिर 37 सीटों पर ही कैसे मान गए? राजनीतिक प्रेक्षक तो यह भी कह रहे हैं कि सीट बंटवारे से तो यही लगता है कि मायावती के सामने अखिलेश ने एक तरह से आत्मसमर्पण कर दिया है। जबकि, गठबंधन की ज़रूरत मायावती को ज़्यादा थी इसलिए दबाव में उन्हें ही ज़्यादा होना चाहिए था।
राजनीतिक गलियारों में सपा का बसपा से कम सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो जाना चर्चा का विषय बना हुआ है। सपा सरंक्षक मुलायम सिंह यादव खुद सीट बंटवारे के इस फार्मूले से हैरान हैं। वह सवाल उठा रहे हैं कि 2014 के चुनावों में उप्र में सपा ने 5 सीटें जीतीं थीं। फूलपुर और गोरखपुर उप चुनावों में सपा को दो सीटें और मिलीं। 31 सीटों पर पर वह दूसरे नंबर पर थी। 28 तीसरे नंबर और 11 चौथे नंबर पर थे। उसे कुल 22.2 प्रतिशत मत मिले थे। इस तरह 38 सीटों पर तो उसकी पुख्ता दावेदारी थी ही। लेकिन, अखिलेश यादव सिर्फ 1 सीट गवांकर आखिर 37 सीटों पर ही कैसे मान गए? राजनीतिक प्रेक्षक तो यह भी कह रहे हैं कि सीट बंटवारे से तो यही लगता है कि मायावती के सामने अखिलेश ने एक तरह से आत्मसमर्पण कर दिया है। जबकि, गठबंधन की ज़रूरत मायावती को ज़्यादा थी इसलिए दबाव में उन्हें ही ज़्यादा होना चाहिए था।
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हिंदीभाषी तीन प्रमुख राज्यों में तो बसपा सपा पर भारी है ही। बिहार में मायावती महागठबंधन से अलग राह पकड़ते हुए अकेले चुनाव लडऩे की तैयारी में हैं। यहां बसपा ने राज्य की सभी 40 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर दी है। यानी अखिलेश यादव ने बिहार में भी मायावती के आगे समर्पण कर दिया है। जबकि इसके पहले के चुनावों में सपा बिहार में अपने प्रत्याशी उतारती रही है। बिहार सपा के प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव ने यहां लोकसभा चुनाव की पूरी तैयारी की थी। लेकिन सारी तैयारी धरी रह गयी। मायावती ने तो उनके जन्मदिन पर फूलों का गुलदस्ता देने आए राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव को भी निराश ही किया है।
हिंदीभाषी तीन प्रमुख राज्यों में तो बसपा सपा पर भारी है ही। बिहार में मायावती महागठबंधन से अलग राह पकड़ते हुए अकेले चुनाव लडऩे की तैयारी में हैं। यहां बसपा ने राज्य की सभी 40 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर दी है। यानी अखिलेश यादव ने बिहार में भी मायावती के आगे समर्पण कर दिया है। जबकि इसके पहले के चुनावों में सपा बिहार में अपने प्रत्याशी उतारती रही है। बिहार सपा के प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव ने यहां लोकसभा चुनाव की पूरी तैयारी की थी। लेकिन सारी तैयारी धरी रह गयी। मायावती ने तो उनके जन्मदिन पर फूलों का गुलदस्ता देने आए राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव को भी निराश ही किया है।
बसपा के आत्मविश्वास की वजह
बसपा को 2009 में 27.42 प्रतिशत वोट मिले थे। तब इसे 20 प्रतिशत सीटें मिली थीं। 2014 में बसपा को 19.6 प्रतिशत वोट मिले। लेकिन यूपी से कोई सीट नहीं जीत पायी। यूपी में बसपा के 34 उम्मीदवार दूसरे स्थान पर थे। मायावती के उत्साहित होने की एक वजह यह भी कि जब मोदी लहर थी तब भी उनके सबसे अधिक उम्मीदवार दूसरे नंबर पर थे। इसके अलावा मायावती के पास ठोस वोट बैंक है। बात यूपी की करें तो यहां बसपा के कॉडर वेस्ड मतों की भागेदारी 21.6 प्रतिशत हैं। भले ही यह अकेले लोकसभा में मायावती को एक भी सीट नहीं जिता पाए, लेकिन अन्य सामाजिक समूहों के मतों से जुडकऱ वह जीत सुनिश्चित कर सकते हैं। मायावती को यही विश्वास अन्य प्रांतों में भी है। इसीलिए वे उत्साहित हैं।
बसपा को 2009 में 27.42 प्रतिशत वोट मिले थे। तब इसे 20 प्रतिशत सीटें मिली थीं। 2014 में बसपा को 19.6 प्रतिशत वोट मिले। लेकिन यूपी से कोई सीट नहीं जीत पायी। यूपी में बसपा के 34 उम्मीदवार दूसरे स्थान पर थे। मायावती के उत्साहित होने की एक वजह यह भी कि जब मोदी लहर थी तब भी उनके सबसे अधिक उम्मीदवार दूसरे नंबर पर थे। इसके अलावा मायावती के पास ठोस वोट बैंक है। बात यूपी की करें तो यहां बसपा के कॉडर वेस्ड मतों की भागेदारी 21.6 प्रतिशत हैं। भले ही यह अकेले लोकसभा में मायावती को एक भी सीट नहीं जिता पाए, लेकिन अन्य सामाजिक समूहों के मतों से जुडकऱ वह जीत सुनिश्चित कर सकते हैं। मायावती को यही विश्वास अन्य प्रांतों में भी है। इसीलिए वे उत्साहित हैं।
अखिलेश के समझौते का कारण-
अब तक छह लोकसभा चुनावों में सपा, बसपा के मुकाबले भारी थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं दिख रहा। समाजवादी पार्टी में दो फाड़ हो चुका है। चाचा शिवपाल ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का गठन कर लिया है। प्रसपा सपा के ही कोर वोटबैंक को काटेगी। पिछड़ा वर्ग के यादव मतों का विभाजन होना तय है। इसके अलावा सपा के वोटबैंक मुस्लिम रहे हैं। इस बार मुस्लिम मतों में भी विभाजन तय है। वह किधर जाएगा इसे लेकर अभी कोई तस्वीर साफ नहीं हुई है। ऐसे में अखिलेश यादव कम से कम सीटों पर ज्यादा मजबूती से चुनाव लडकऱ अपने पुराने प्रदर्शन को बरकरार रखने की नीति पर चल रहे हैं।
अब तक छह लोकसभा चुनावों में सपा, बसपा के मुकाबले भारी थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं दिख रहा। समाजवादी पार्टी में दो फाड़ हो चुका है। चाचा शिवपाल ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का गठन कर लिया है। प्रसपा सपा के ही कोर वोटबैंक को काटेगी। पिछड़ा वर्ग के यादव मतों का विभाजन होना तय है। इसके अलावा सपा के वोटबैंक मुस्लिम रहे हैं। इस बार मुस्लिम मतों में भी विभाजन तय है। वह किधर जाएगा इसे लेकर अभी कोई तस्वीर साफ नहीं हुई है। ऐसे में अखिलेश यादव कम से कम सीटों पर ज्यादा मजबूती से चुनाव लडकऱ अपने पुराने प्रदर्शन को बरकरार रखने की नीति पर चल रहे हैं।
सपा-बसपा एक नजर
सपा की स्थापना-अक्टूबर 1992
चुनाव चिह्न साइकिल पर चुना लड़ा-1996 बसपा की स्थापना-14 अप्रैल 1984
चुनाव चिन्ह हाथी पर चुनाव लड़ा-1984 सपा-बसपा का अब तक का प्रदर्शन
1996
सपा-17, बसपा-11
1998
सपा-20, बसपा-05
1999
सपा-26, बसपा-14
2004
सपा-35,बसपा-19
2009
सपा-23, बसपा-20
2014
सपा- 05, बसपा-00
सपा की स्थापना-अक्टूबर 1992
चुनाव चिह्न साइकिल पर चुना लड़ा-1996 बसपा की स्थापना-14 अप्रैल 1984
चुनाव चिन्ह हाथी पर चुनाव लड़ा-1984 सपा-बसपा का अब तक का प्रदर्शन
1996
सपा-17, बसपा-11
1998
सपा-20, बसपा-05
1999
सपा-26, बसपा-14
2004
सपा-35,बसपा-19
2009
सपा-23, बसपा-20
2014
सपा- 05, बसपा-00
2014 में किसको कितने मत
भाजपा-42.3 प्रतिशत
सपा-22.2 प्रतिशत
बसपा-19.6 प्रतिशत
कांग्रेस-7.5 प्रतिशत
रालोद-0.9 प्रतिशत
आप-1.00प्रतिशत
नोटा-0.7 प्रतिशत
भाजपा-42.3 प्रतिशत
सपा-22.2 प्रतिशत
बसपा-19.6 प्रतिशत
कांग्रेस-7.5 प्रतिशत
रालोद-0.9 प्रतिशत
आप-1.00प्रतिशत
नोटा-0.7 प्रतिशत