लखनऊ

बूढ़े बाघों की शामत, युवा बाघों ने किया बेघर

15 बाघ इन दिनों महेशपुर रेंज में गन्ने के खेतों में छिपे हैं

लखनऊDec 23, 2019 / 02:17 pm

आकांक्षा सिंह

बूढ़े बाघों की शामत, युवा बाघों ने किया बेघर

लखीमपुर. यूपी के तराई क्षेत्रों में वन्य क्षेत्र कम होने की वजह से जंगली जानवर गांवों में आ जा रहे हैं। वह अपना शिकार करने के लिये कभी आदमियों के बच्चों को तो कभी जानवरों के बच्चों को पकड़ कर मार डाल रहे हैं। इन जानवरों में सबसे आगे हैं बाघ। जो अपना पेट भरने के लिये जंगलों निकल कर गांव में आ कर घूम रहे हैं। इसमें सबसे आगे हैं युवा बाघ जो अपनी ताकत का फायदा उठा कर अच्छे अच्छे शिकार खोज कर अपना पेट भर लेते हैं वहीं बूढ़ें बाघ इस मामले में पीछे रह जा रहे हैं। वह कमजोर होने की वजह से अपना शिकार नहीं ढूंढ़ पाते हैं और उनकों भूखा ही सोना पड़ता है।

दुधवा और पीलीभीत टाइगर रिजर्व में ‘जंगलराज’ के लिए युवा बाघ बूढ़े बाघों पर हमलावर हो रहे हैं। इसके चलते बुजुर्ग बाघ जंगल से पलायन कर गन्ने के खेतों में ठिकाना बना रहे हैं। वहां से निकलकर वे इंसानों और पालतू जानवरों का आसान शिकार कर रहे हैं। पिछले वर्षों में मानव-बाघ संघर्ष की घटनाओं के अध्ययन से यह पता चला है कि गन्ने के खेतों में रह रहे बाघों में ज्यादातर बूढ़े हैं। पीलीभीत के अमरिया, दक्षिण खीरी के महेशपुर, बफरजोन के भीरा, मैलानी, पलिया जैसी रेंज में हर साल बूढ़े बाघ जंगल को छोड़कर गन्ने के खेतों में चले आते हैं। ये बाघ इंसानों के लिए बेहद खतरनाक हैं। तराई नेचर कंजरवेशन सोसायटी के प्रदेश सचिव डॉ. वीपी सिंह कहते हैं कि बाघों की बढ़ती आबादी को देखते हुए प्राकृतिक आवास को विस्तार दिया जाना चाहिए। जंगल में ग्रासलैंड और वेटलैंड के प्रबंधन पर जोर दिया जाए, ताकि भोजन व आवास के लिए उन्हें संघर्ष न करना पड़े। उपनिदेशक बफरजोन डॉ. अनिल कुमार पटेल ने बताया कि क्षेत्र के लिए आपसी संघर्ष बाघों को जंगल के बाहर करने का प्रमुख कारण है। बीते दिनों में हुई संघर्ष की घटनाओं के अध्ययन से इस तर्क को बल मिलता है। ग्रासलैंड और वेटलैंड के मैनेजमेंट से मानव-बाघ संघर्ष की घटनाओं को रोकने का प्रयास किया जा रहा है।

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