मुसलिम वोटों पर भरोसा
कांग्रेस अकेले चुनाव लडऩे का दाम इसलिए भर रही है क्योंकि उसे ऐसा लगता है कि लोकसभा के लिए होने वाले चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस की सीधी टक्कर में मुस्लिम वोटों का बड़ा तबका सपा-बसपा गठबंधन के बजाय उसके साथ आ जाएगा। ऐसा उसे इसलिए लगता है कि हाल ही में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी को हराने के बाद देश भर के मुस्लिम समुदाय में यह संदेश गया है कि मोदी से सिर्फ कांग्रेस लड़ सकती है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को ही वोट देना चाहिए।
80 सीटों पर चुनाव लडऩे का कांग्रेस भले ही दावा करे लेकिन जमीनी हकीक़त यह है कि उसकी हैसियत 60 से ज्यादा सीटों पर अकेले चुनाव लडऩे की है ही नहीं। कई ऐसी सीटें हैं जिस पर उसे उम्मीदवार ढूंढे भी नहीं मिल पा रहे। कांग्रेस को शायद यह याद नहीं है कि पिछले 5 लोकसभा चुनाव में वह यूपी में सभी 80 सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतार रहे हैं।
2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में कांग्रेस की हालत 1998 के बाद सबसे ख़स्ता रही है। पिछले चुनाव में कांग्रेस कुल 66 सीटों पर ही लोकसभा का चुनाव लड़ा था। कुल 7.5 प्रतिशत वोटों के साथ कांग्रेस ने महज़ दो लोकसभा सीटें जीत पाई थी। रायबरेली से सोनिया गांधी 3,52,713 और अमेठी में राहुल गांधी स्मृति ईरानी से सिर्फ 1,07,903 वोटों से जीत पाए थे। इनके अलावा 6 सीटों पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर थी, लेकिन इन सभी सीटों पर हार जीत का बड़ा अंतर था। सबसे कम अंतर सहारनपुर सीट पर था। यहां इमरान मसूद 65 हजार वोटों से हारे थे। उसके बाद कुशीनगर लोकसभा सीट पर पूर्व मंत्री आरपीएन सिंह 85,540 वोट से हारे थे।
2014 के लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा वोटों से गाजियाबाद से राज बब्बर हारे थे। उन्हें विदेश जनरल वीके सिंह के मुकाबले 567676 से हार का सामना करना पड़ा था। बाराबंकी से पी एल पुनिया 2,11,000 वोटों से हारे थे तो कानपुर से श्री प्रकाश जयसवाल 2,22,000 वोटों से चुनाव हारे थे। वहींं लखनऊ से राजनाथ सिंह के सामने रीता बहुगुणा 2,72,000 वोटों से चुनाव हारी थींं। कांग्रेस के करीब 50 उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हुई थी।