सपा-बसपा गठबंधन के ऐलान के बाद यूपी में बीजेपी से अधिक कांग्रेस की नींद उड़ी हुई है। कांग्रेस को पहले उम्मीद थी कि वह भी इस गठबंधन का हिस्सा होगी। मायावती ने अखिलेश यादव के साथ साझा प्रेस कांग्रेस में भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस पर भी जमकर निशान साधा था। इससे से गुस्साई कांग्रेस ने रविवार को यहां प्रेस कांफ्रेंस कर अपने दम पर यूपी की 80 सीटों पर चुनाव लडऩे का एलान कर दिया। उत्तर प्रदेश के प्रभारी कांग्रेस महासचिव ग़ुलाम नबी आज़ाद ने अपने दम पर राज्य की सभी सीटों पर चुनाव लडऩे का एलान कर के अपनी पार्टी के तमाम नेताओं के दावों की हवा निकाल दी।
मुसलिम वोटों पर भरोसा
कांग्रेस अकेले चुनाव लडऩे का दाम इसलिए भर रही है क्योंकि उसे ऐसा लगता है कि लोकसभा के लिए होने वाले चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस की सीधी टक्कर में मुस्लिम वोटों का बड़ा तबका सपा-बसपा गठबंधन के बजाय उसके साथ आ जाएगा। ऐसा उसे इसलिए लगता है कि हाल ही में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी को हराने के बाद देश भर के मुस्लिम समुदाय में यह संदेश गया है कि मोदी से सिर्फ कांग्रेस लड़ सकती है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को ही वोट देना चाहिए।
मुसलिम वोटों पर भरोसा
कांग्रेस अकेले चुनाव लडऩे का दाम इसलिए भर रही है क्योंकि उसे ऐसा लगता है कि लोकसभा के लिए होने वाले चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस की सीधी टक्कर में मुस्लिम वोटों का बड़ा तबका सपा-बसपा गठबंधन के बजाय उसके साथ आ जाएगा। ऐसा उसे इसलिए लगता है कि हाल ही में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी को हराने के बाद देश भर के मुस्लिम समुदाय में यह संदेश गया है कि मोदी से सिर्फ कांग्रेस लड़ सकती है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को ही वोट देना चाहिए।
कांग्रेस के डाटा एनालिसिस विभाग ने फीडबैक दिया है कि उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के बड़े तबके का रुझान कांग्रेस की तरफ है। ऐसी स्थिति में अगर पार्टी अपने दम पर मजबूत उम्मीदवार उतार कर चुनाव लड़ती है तो समुदाय के बड़े हिस्से का वोट उसे मिल सकता है।
पर ज़मीनी हकीक़त और ही है
80 सीटों पर चुनाव लडऩे का कांग्रेस भले ही दावा करे लेकिन जमीनी हकीक़त यह है कि उसकी हैसियत 60 से ज्यादा सीटों पर अकेले चुनाव लडऩे की है ही नहीं। कई ऐसी सीटें हैं जिस पर उसे उम्मीदवार ढूंढे भी नहीं मिल पा रहे। कांग्रेस को शायद यह याद नहीं है कि पिछले 5 लोकसभा चुनाव में वह यूपी में सभी 80 सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतार रहे हैं।
80 सीटों पर चुनाव लडऩे का कांग्रेस भले ही दावा करे लेकिन जमीनी हकीक़त यह है कि उसकी हैसियत 60 से ज्यादा सीटों पर अकेले चुनाव लडऩे की है ही नहीं। कई ऐसी सीटें हैं जिस पर उसे उम्मीदवार ढूंढे भी नहीं मिल पा रहे। कांग्रेस को शायद यह याद नहीं है कि पिछले 5 लोकसभा चुनाव में वह यूपी में सभी 80 सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतार रहे हैं।
1998 के बाद से 2014 तक कांग्रेस 60 से 70 सीटों पर ही चुनाव लड़ती रही है। 1998 में तो कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला था और 2009 में पार्टी ने आम चुनाव में 21 सीटें जीती थी। बाद में उपचुनाव में एक सीट जीतकर वो 22 सीटों के साथ समाजवादी पार्टी के साथ प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। तब 2009 में उसका वोट प्रतिशत सबसे अधिक 18.5 था। 2004 में कांग्रेस 12 प्रतिशत वोटों के साथ 9 सीटें जीत पाई थी जबकि इससे पहले 1999 में रालोद के साथ गठबंधन करके कांग्रेस ने 14.72 प्रतिशत वोट हासिल किए थे और 10 सीटें जीती थी।
पिछले चुनाव में थी सबसे ख़स्ता हालत
2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में कांग्रेस की हालत 1998 के बाद सबसे ख़स्ता रही है। पिछले चुनाव में कांग्रेस कुल 66 सीटों पर ही लोकसभा का चुनाव लड़ा था। कुल 7.5 प्रतिशत वोटों के साथ कांग्रेस ने महज़ दो लोकसभा सीटें जीत पाई थी। रायबरेली से सोनिया गांधी 3,52,713 और अमेठी में राहुल गांधी स्मृति ईरानी से सिर्फ 1,07,903 वोटों से जीत पाए थे। इनके अलावा 6 सीटों पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर थी, लेकिन इन सभी सीटों पर हार जीत का बड़ा अंतर था। सबसे कम अंतर सहारनपुर सीट पर था। यहां इमरान मसूद 65 हजार वोटों से हारे थे। उसके बाद कुशीनगर लोकसभा सीट पर पूर्व मंत्री आरपीएन सिंह 85,540 वोट से हारे थे।
2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में कांग्रेस की हालत 1998 के बाद सबसे ख़स्ता रही है। पिछले चुनाव में कांग्रेस कुल 66 सीटों पर ही लोकसभा का चुनाव लड़ा था। कुल 7.5 प्रतिशत वोटों के साथ कांग्रेस ने महज़ दो लोकसभा सीटें जीत पाई थी। रायबरेली से सोनिया गांधी 3,52,713 और अमेठी में राहुल गांधी स्मृति ईरानी से सिर्फ 1,07,903 वोटों से जीत पाए थे। इनके अलावा 6 सीटों पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर थी, लेकिन इन सभी सीटों पर हार जीत का बड़ा अंतर था। सबसे कम अंतर सहारनपुर सीट पर था। यहां इमरान मसूद 65 हजार वोटों से हारे थे। उसके बाद कुशीनगर लोकसभा सीट पर पूर्व मंत्री आरपीएन सिंह 85,540 वोट से हारे थे।
राजबब्बर सबसे अधिक वोटों से हारे थे
2014 के लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा वोटों से गाजियाबाद से राज बब्बर हारे थे। उन्हें विदेश जनरल वीके सिंह के मुकाबले 567676 से हार का सामना करना पड़ा था। बाराबंकी से पी एल पुनिया 2,11,000 वोटों से हारे थे तो कानपुर से श्री प्रकाश जयसवाल 2,22,000 वोटों से चुनाव हारे थे। वहींं लखनऊ से राजनाथ सिंह के सामने रीता बहुगुणा 2,72,000 वोटों से चुनाव हारी थींं। कांग्रेस के करीब 50 उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हुई थी।
2014 के लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा वोटों से गाजियाबाद से राज बब्बर हारे थे। उन्हें विदेश जनरल वीके सिंह के मुकाबले 567676 से हार का सामना करना पड़ा था। बाराबंकी से पी एल पुनिया 2,11,000 वोटों से हारे थे तो कानपुर से श्री प्रकाश जयसवाल 2,22,000 वोटों से चुनाव हारे थे। वहींं लखनऊ से राजनाथ सिंह के सामने रीता बहुगुणा 2,72,000 वोटों से चुनाव हारी थींं। कांग्रेस के करीब 50 उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हुई थी।