सुप्रीम कोर्ट ने चालीस दिन लगातार सुनवाई के बाद 9 नवंबर को 5 जजों की बेंच ने अयोध्या मामले का फैसला किया, जिसमें विवादित जमीन हिंदू पक्ष को सौंपी दी गई और निर्देश दिया गया कि विवादित जमीन पर मंदिर का निर्माण ट्रस्ट करेगा, जिसे तीन माह के भीतर केंद्र सरकार को बनाना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया था।
पुनर्विचार याचिका पर चैंबर में ही सुनवाई की जाती है और यहीं खारिज भी कर दी जाती है। लेकिन अगर बेंच को लगता है कि सुनवाई कोर्ट में होनी चाहिए तो यह कोर्ट में भेजा जाता है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ 9 दिसम्बर को पुनर्विचार याचिका दायर करने की समय सीमा पूरी हो गई है। अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ 2 दिसंबर को पहली पुनर्विचार याचिका दायर हुई थी। जमीयत के सेक्रेटरी जनरल मौलाना सैयद अशद रशीदी ने यह याचिका दाखिल की। रशीदी मूल याचिकाकर्ता एम सिद्दीक के कानूनी उत्तराधिकारी हैं। दह दिसंबर को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के समर्थन से 5 पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गईं। ये याचिकाएं मुफ्ती हसबुल्लाह, मौलाना महफुजुर रहमान, मिस्बाहउद्दीन, मोहम्मद उमर और हाजी महबूब की तरफ से दाखिल की गईं।
वहीं दूसरी तरफ अंतिम दिन 9 दिसम्बर को अखिल भारतीय हिंदू महासभा की तरफ से उनके वकील विष्णु शंकर जैन ने अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पहली पुनर्विचार याचिका दाखिल की।