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रामलला फैसले के खिलाफ मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दाखिल हुई चार पुनर्विचार याचिकाएं

locationलखनऊPublished: Dec 06, 2019 05:53:00 pm

Submitted by:

Mahendra Pratap

लखनऊ. देश की सबसे बड़ी अदालत के बीते 9 नवंबर को दिए गए देश के सबसे बड़े मुकदमे पर सुप्रीम फैसले के खिलाफ मुस्लिम पक्षकारों ने शुक्रवार को चार पुनर्विचार याचिका दाखिल की।

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रामलला फैसले के खिलाफ मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दाखिल हुई चार पुनर्विचार याचिकाएं

लखनऊ. देश की सबसे बड़ी अदालत के बीते 9 नवंबर को दिए गए देश के सबसे बड़े मुकदमे पर सुप्रीम फैसले के खिलाफ मुस्लिम पक्षकारों ने शुक्रवार को चार पुनर्विचार याचिका दाखिल की।

नौ नवंबर को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने सर्वसम्मति के फैसले में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि की डिक्री ‘राम लला विराजमान’ के पक्ष में की थी और अयोध्या में ही एक प्रमुख स्थान पर मस्जिद निर्माण के लिये उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ भूमि आबंटित करने का निर्देश केन्द्र सरकार को दिया था।
इस फैसले के खिलाफ चार मुस्लिम पक्षकारों की पुनर्विचार याचिकाएं मौलाना मुफ्ती हसबुल्ला, मोहम्मद उमर, मौलाना महफूजुर रहमान और मिसबाहुद्दीन ने दायर की हैं। ये सभी पहले मुकदमे में पक्षकार थे। इन सभी को आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का समर्थन प्रदान है।
अभी पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के लिए 9 दिसम्बर तक का वक्त बाकी है। अभी तक ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने पुनर्विचार याचिका नहीं दाखिल की है।

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा अयोध्या में राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर 9 नवंबर को दिए गए फैसले पर एक बार फिर से पुनर्विचार करने की मांग की है। सभी याचिकाओं में तर्क दिया गया है कि 1949 तक उस स्थल पर मुस्लिम समुदाय का अधिकार था 1949 तक मुख्य ढाँचे के नीचे नमाज अदा की गई और उस समय कोई भी भगवान की मूर्ति उस ढांचे के नीचे नहीं थी। इसके अलावा यह भी दावा किया गया है कि पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट में भी इस बात के साक्ष्य नहीं मिली है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई। वर्ष 1885 से बाहरी हिस्सा जिसे राम चबूतरा कहा जाता था वहां हिंदू समुदाय के लोग पूजा करते थे और अंदर के हिस्से पर मुस्लिम समुदाय का अधिकार था। इन तर्कों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई है।
कुल मिलाकर करीब 70 वर्षों तक कोर्ट की लड़ाई चलने के बाद जब पूरे देश ने इस फैसले को स्वीकार कर लिया है तो कहीं ना कहीं फिर से इस मामले को कोर्ट में खींचने की कोशिश की जा रही है।|

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