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अब तो महजब कोई ऐसा चलाया जाए, जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए : याद आए नीरज

locationलखनऊPublished: Jan 04, 2020 02:42:02 pm

Submitted by:

Mahendra Pratap

मशहूर कवि, गीतकार जिसे हम प्यार से ‘नीरज’ पुकारते हैं उनकी आज 95वीं जयंती है।

अब तो महजब कोई ऐसा चलाया जाए, जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए : याद आए नीरज

अब तो महजब कोई ऐसा चलाया जाए, जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए : याद आए नीरज

लखनऊ. गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ के नाम से कौन अंजान होगा। जैसे ही वह मंचों पर अपना काव्य पाठ शुरू करते थे, श्रोतागण सिर्फ वाह—वाह ही करते नजर आते थे। जी, उसी मशहूर कवि, गीतकार जिसे हम प्यार से ‘नीरज’ पुकारते हैं उनकी आज 95वीं जयंती है।
उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरवाली गांव में गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ का जन्म 4 जनवरी 1925 को हुआ था। नीरज शायद पहले व्यक्ति हैं जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया। वर्ष 1991 में पद्मश्री और वर्ष 2007 में पद्मभूषण पुरस्कार से उन्हें नवाज़ा गया।
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए, जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए, समाज को आइना दिखने वाले ऐसे हरदिल अजीज और बेशकिमती नगीने ‘नीरज’ 19 जुलाई 2018 को इस दुनिया से हमेशा के लिए आंखें मूंद ली। पर उनकी लिखी कविता और गीत आज भी लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे।
जयंती के मौके पर नीरज की कुछ बेहतरीन फिल्मी रचनाओं के मुखड़े :-


1- वो हम न थे, वो तुम न थे, वो रहगुज़र थी प्यार की
लुटी जहाँ पे बेवजह, पालकी बहार की
ये खेल था नसीब का, न हँस सके, न रो सके
न तूर पर पहुँच सके, न दार पर ही सो सके *
कहानी किससे ये कहें, चढ़ाव की, उतार की
लुटी जहाँ पे बेवजह, पालकी बहार की
2- शोखियों में घोला जाये, फूलों का शबाब
उसमें फिर मिलायी जाये, थोड़ी सी शराब
होगा यूँ नशा जो तैयार
हाँ…
होगा यूँ नशा जो तैयार, वो प्यार है

3- स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
4- ऐ भाई! जरा देख के चलो, आगे ही नहीं पीछे भी
दायें ही नहीं बायें भी, ऊपर ही नहीं नीचे भी
ऐ भाई!
तू जहाँ आया है वो तेरा- घर नहीं, गाँव नहीं
गली नहीं, कूचा नहीं, रस्ता नहीं, बस्ती नहीं
5- बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ
आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ
एक खिलौना बन गया दुनिया के मेले में
कोई खेले भीड़ में कोई अकेले में
मुस्कुरा कर भेंट हर स्वीकार करता हूँ
आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ …
मैं बसाना चाहता हूँ स्वर्ग धरती पर
आदमी जिस में रहे बस आदमी बनकर
उस नगर की हर गली तैय्यार करता हूँ
आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ
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