मैंने कुछ भी नहीं किया बस जागा पिताश्री का वंश।
बचपन में जो भरा कूट कर पचपन में है बाहर आया।
मैं तो सिर्फ अभय हूँ मित्रों, परमहंस का हूँ अपभ्रंश।’
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पैंसठ से अधिक मुक्तकों में जीवन के विभिन्न पक्षों को उजागर किया गया है। कटु यथार्थ को व्यक्त करता मुक्तक देखें-
ऐसे ही लोगों ने नज़दीकी रिश्तों को छला है।
आसानी से इनकी पहचान है मुश्किल यारों।
हंसके आपको ज़िंदा मार दें ये वो बला हैं।
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कवि की मां पर असीम श्रद्धा है। मां के आशीष पर अटल विास को प्रकट करता मुक्तक-
उसके चरणों में बसते हैं धरती और आकाश।
मैया का जब हो आशीष दुख ना फटके पास।
काल भी आकर वापस लौटे अटल मेरा विास’।
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प्रेम के साथ-साथ मां की महिमा को कुछ इस तरह शब्द दिये हैं-
इस धरती पर स्वर्ग है अपनी माँ का आँचल ’
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एक अलग तेवर का मुक्तक देखें- ‘सिर्फ लड़ना रोका है अभी हारा नहीं हूं मैं।
ताक़त समेट रहा हूं, अभी टूटा नहीं हूं मैं।
अभी तो बहुत हिम्मत बाक़ी है, मेरे दुश्मन।
तुम्हें छोडूंगा, सोचना भी मत, भूला नहीं हूं मैं।
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जीवन की राह आसान रहे इसकी सीख देते कई मुक्तक हैं उन्हीं में से एक पेश है-
अपमान किसी का न करो भले ही नालायक हो।
कुछ काम ऊपर वाले पर भी छोड़ दिया करो।
क्या पता नालायक भी कभी जीवन दायक हो।’ —
जीवन में संघर्ष के साथ निरंतर आगे बढ़ने का सन्देश देते हैं, देखिये –
खुशियों का है जाम और भी भरने दो।
दर्द व दुश्मन भी आएंगे इसके आड़े।
इनसे डरकर कदमों को न रुकने दो’। —-
इस संग्रह में कवि का जो सबसे प्रबल पक्ष उभरकर सामने आता है वह है प्रेम। कुछ मुक्तक पेश हैं-
मैं गुज़र जाऊंगा तू इसको रवानी दे दे।
मैं तेरे प्यार में मर जाऊंगा, मालूम मुझे।
पर अभी ज़िंदा हूं, तू एक निशानी दे दे’।
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या.
‘जबसे तुम्हें देखा है मैंने।
बस तू ही तू दिल में दिखती है।
तू ही बता की मेरे दिल में कौन सी बस्ती है।
कि तू मेरे दिल में बसती है’।
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प्यार क्या है कुछ इस तरह देखिये-
प्यार तो रूठने मनाने का खेल है।
ये धन दौलत नहीं दो दिलों का मेल है।
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बात ही बात में बहुत ही सहजता से कितना बड़ा सन्देश देते हैं दृष्टव्य है-
उसकी दुआएं भी दहेज़ से कम नहीं’।
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अपने देश से असीम अनुराग है और पूरब से और भी अधिक। संकलन में यह अनुराग बिखरा पड़ा है। एक बानगी- ‘सारे भारत में बजता है पुरबियों का डंका’
या
‘पूवार्ंचली पावन माटी में बड़े बड़े हैं शेर’
संग्रह में कई रचनाएं भोजपुरी में भी हैं।
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संग्रह में कई गज़लें लिखीं हैं। ख़्ास बात है कि आपने शिल्प से कहीं अधिक भावाभिव्यक्ति को अहमियत दी है। जैसे-
आंखों-आंखों में ही देखो छलक रहे पैमाने’।
——————- कवि को जहां देश के गौरवशाली अतीत के प्रति असीम अनुराग है। राष्ट्रपिता व देश भक्तों के बलिदान के लिए कृतज्ञता है। वहीं देश के लोगों से आग्रह भी है की वह देश पर मर मिटने वालों के प्रति नतमस्तक हों। उन्हें श्रद्धा से विनत प्रणाम करें। कवि की कई रचनाओं में विसंगतियों, विकृतियों, विडम्बनाओं व आडम्बरों को लेकर क्षोभ व विद्वेलन हैं। तमाम जगह उनका आक्रोश सामने आता है।
यह संग्रह पाठकों/साहित्य प्रेमियों के मानस पर चिरकालिक प्रभाव छोड़ने में सफल होगा ऐसा विास है।
वरिष्ठ साहित्यकार व पत्रकार