हनुमानजी की उपासना का उद्देश्य :- अन्य देवताओं की तुलना में हनुमानजी में अत्यधिक प्रकट शक्ति है। अन्य देवताओं में प्रकट शक्ति केवल 10 प्रतिशत होती है, जबकि हनुमानजी में प्रकट शक्ति 70 प्रतिशत होती है। अत: हनुमानजी की उपासना अधिक मात्रा में की जाती है। हनुमानजी की उपासना से जागृत कुंडलिनी के मार्ग में आई बाधा दूर होकर कुंडलिनी को योग्य दिशा मिलती है। साथ ही भूतबाधा, जादू-टोना अथवा पितृदोष के कारण होनेवाले कष्ट, शनिपीड़ा इत्यादि का निवारण भी होता है।
शनि की ग्रहपीड़ा एवं हनुमानजी की उपासना :- जब किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि स्वराशि से निकलकर विशिष्ट स्थान में आता है तब उस व्यक्ति के जीवन में शनि की ग्रहपीड़ा आरंभ होती है । ग्रहदशा का यह काल सामान्यत: साढ़े सात वर्षों का होता है। इस काल में व्यक्ति को जीवन में विविध समस्याओं का सामना करना पडता है। उसमें जीवन में आरोग्यविषयक, आर्थिक स्वरूप की तथा अन्य मानसिक समस्याएं निर्माण होती हैं। शनि की पीड़ा के कारण निर्माण हुई इन समस्याओं के निवारण के लिए हनुमानजी की उपासना विशेष फलदायी होती है। इसका कारण यह है कि शनि स्वयं रुद्र की उपासना करते हैं एवं हनुमानजी ग्यारहवें रूद्र हैं। इसलिए हनुमानजी की उपासना करने से शनि की पीड़ा का निवारण होता है।
शनि ग्रहपीड़ा निवारणार्थ हनुमानजी की उपासना विधि :- यह विधि शनिवार अथवा मंगलवार के दिन की जाती है। एक कटोरी में तेल लें। उसमें काली उड़द के चौदह दाने डालें। अब उस तेल में अपना चेहरा देखें। इसके उपरांत यह तेल हनुमानजी के देवालय में जाकर हनुमानजी को चढाएं। खरा तेली शनिवार के दिन तेल नहीं बेचता, क्योंकि जिस शक्ति की पीड़ा से छुटकारा पाने के लिए कोई मनुष्य हनुमानजीपर तेल चढ़ाता है, वह शक्ति तेली को भी कष्ट दे सकती है। इसलिए हनुमानजी के देवालय के बाहर बैठे तेल बेचनेवालों से तेल न खरीदकर घर से ही तेल ले जाकर हनुमानजी को चढाएं।
शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव अल्प करने के लिए हनुमानजी की उपासना किस प्रकार करनी चाहिए?:-
विधि के प्रति भाव न बना रहे, तो इस उपासना का प्रभाव कुछ समय उपरांत अल्प होता है। वैसे ही मदार के पत्र एवं पुष्प के परिणामस्वरूप अल्प हुआ अनिष्ट शक्ति का प्रभाव, पत्र तथा पुष्प के चैतन्य के अल्प होनेपर पुनः बढने की आशंका रहती है। कष्ट को समूल अल्प करने के लिए हनुमानजी का नामजप निरंतर करना यही एक उत्तम साधन है।
हनुमान जयंती के दिन हनुमानजी के नाम का जप करने का महत्त्व :- हनुमान जयंती को हनुमानजी का तत्त्व अन्य दिनों की तुलना में एक हजार गुना अधिक कार्यरत रहता है। इस कारण हनुमानजी की चैतन्यदायी तत्त्वतरंगें पृथ्वीपर अधिक मात्रा में आकृष्ट होती हैं। इन तरंगों का जीव को व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक, दोनों स्तरों पर लाभ होता है। इन कार्यरत तत्त्वतरगों का संपूर्ण लाभ पाने के लिए इस दिन ‘श्री हनुमते नमः।’ नामजप अधिकाधिक करना चाहिए।
कालानुसार आवश्यक उपासना :- आजकल विविध प्रकारों से देवताओं का अनादर किया जाता है। व्याख्यान, पुस्तक इत्यादि के माध्यम से देवताओं की अवमानना की जाती है। व्यवसाय के लिए विज्ञापनों में देवताओं का उपयोग ‘मॉडल’ के रूप में किया जाता है। देवताओं की वेशभूषा में भीख मांगी जाती है। देवताओं की उपासना की नींव है, श्रद्धा। देवताओं का अनादर श्रद्धा को प्रभावित करता है। इस से धर्महानि भी होती है। यह धर्महानि रोकना कालानुसार आवश्यक धर्मपालन ही है। यह देवता की समष्टि स्तर की अर्थात सामाजिक स्तर की उपासना ही है। व्यष्टि अर्थात व्यक्तिगत उपासना के साथ समष्टि अर्थात सामाजिक उपासना किए बिना देवता की उपासना पूर्ण हो ही नहीं सकती। यह धर्महानि रोकने के लिए हनुमानजी हमें बल, बुद्धि प्रदान कर साधना में आनेवाले विघ्नों का अवश्य हरण करेंगे।