नहीं मिल रही शव जलाने की जगह
प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कोरोना के कारण हाहाकार मचा हुआ है। अस्पतालों में बेड्स की कमी है, तो श्मशान के बाहर अंतिम संस्कार के लिए कतार लगी है। लखनऊ के दो श्मशान घाटों गुलाला श्मशान घाट (Gulala Shamshan Ghat Lucknow) और बैकुंठ धाम श्मशान घाट (Baikunth Dham Shamshan Ghat Lucknow) पर हालात होली के बाद से ही बेहद खराब हैं। यहां हर दिन दर्जनों लाशें अंतिम संस्कार के लिए आ रही हैं। आपको बता दें कि भैसाकुंड स्थित बैकुंठ धाम लखनऊ के सबसे बड़े श्मशान घाट में से एक है। कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बीच यहां लगातार अंतिम संस्कार के लिए शवों को लाया जा रहा है। हालात ये हैं कि यहां लकड़ियां कम पड़ने लगी हैं। बीते दिनों सोशल मीडिया पर बैकुंठ धाम का ही एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें एक साथ कई चिताएं जल रही थीं। उसी के बाद ही अब इस श्मशान घाट के चारों ओर अस्थाई टीन लगवा दिए गए, ताकि बाहर से कुछ दिखाई ना दे। कमोवेश यही हाल गुलाला घाट का भी है। यहां भी रोजाना काफी बड़ी संख्या में शव अंतिम संस्कार के लिए आ रहे हैं। यहां की स्थिति तो इतनी खराब है कि श्मशान घाट भरने पर जब लोगों को अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं मिली तो गुलाला घाट के पार्क में ही शवों को जलाया जाने लगा।
गंगा किनारे कतारों में जल रहे शव
बात अगर प्रयागराज की करें तो यहां भी स्थिति भयावह है। यहां के श्मशान घाटों पर भी हालात बद से बद्तर हो चले हैं। प्रयागराज के फाफामऊ श्मशान घाट (Fafamau Shamshan Ghat Prayagraj) पर गंगा नदी के किनारे रोजाना कतार में चिताएं जल रही हैं। यहां के लोगों से बात की गई तो उनका कहना है कि ऐसा दृश्य न तो पहले देखा गया और न ही सुना गया। लेकिन बीते कुछ दिनों में ऐसी स्थिति आम सी हो चली है। वहीं यहा पहुंचने पर पचा चला कि शहर के कोविड अस्पतालों से फाफामऊ घाट तक एंबुलेंस का भाड़ा पांच हजार रुपये वसूला जा रहा है। जबकि दूरी लगभग नौ किलोमीटर ही है। इसके अलावा कोरोना से मृत व्यक्ति का शव एंबुलेंस में रखने के लिए दो सहायकों का चार्ज भी अलग है। मृतकों के मजबूर परिजनों को फाफामऊ घाट पर भी अंतिम संस्कार के लिए चढ़ावा देना पड़ रहा है। इसके अलावा इस श्मशाम घाट पर गंदगी और अव्यवस्थाएं जो हैं वह अलग।
वाराणसी में भयावह मंजर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भयावह मंजर देखने को मिल रहा है। हर तरफ सिर्फ कोरोना का कहर नजर आ रहा है। हर घर में लोग इस से जूझते नजर आ रहे हैं। कई लोगों की सांसे इससे लड़ते लड़ते थम चुकी हैं। एक ही घर में दो-दो, तीन-तीन लोगों की मौत हो रही है। वाराणसी के हरिश्चंद्र घाट (Harishchandra Shamshan Ghat) का मंजर इस विभीषिका को खुद बयां कर रहा है। घाट पर सुबह से शवों की लंबी कतार लग जाती हैं। यहां दर्जनों चिताएं एक साथ जलाई जा रही हैं, तो दर्जनों लाशें अपनी बारी का इंतजार कर रही हैं। यहां शव जलाने के 2 तरीके हैं, एक तो बिजली से और दूसरा लकड़ी से। लेकिन इन दोनों स्थानों पर लाशों की लंबी लाइन लगी हुई हैं। वाराणसी के मणिकर्णिका घाट का भी यही हाल है। एक शव जलाने के लिए उनके परिजनों को कम से कम 7 से 8 घंटे इंतजार करना पड़ रहा है। स्थिति इस कदर भयावह होती जा रही है कि कोरोना की डेड बॉडी को उनके परिजन जलाने का ठेका देकर घर चले जा रहे हैं। श्मशान घाट पर शव जलाने के लिए लकड़िया भी कम पड़ रही हैं।
कानपुर में देर रात तक अंतिम संस्कार
कानपुर जिले का हाल भी काफी डरावना है। कानपुर के बिठूर से जाजमऊ के सिद्धनाथ घाट (Siddhnath shamshan ghat) में शवों को जलाने के लिए 35 नए अस्थाई प्लेटफॉर्म बनाए गए हैं, लेकिन यहां इतनी मौतें हो रही हैं कि विद्युत शवदाह गृह में रात 12 बजे तक शव जलाए जा रहे हैं। इसके लिए कर्मचारियों की दो पालियों में ड्यूटी लगायी गई है, हालांकि लकड़ियों से होने वाले अंतिम संस्कार सूर्यास्त तक ही हो रहे हैं। दूसरी ओर, चिंता की बात यह है कि बिठूर से सिद्धनाथ घाट तक असंक्रमित शवों की संख्या भी रोजाना औसतन 150 पहुंच चुकी है। इस कारण अब लकड़ियों की काफी कमी भी हो रही है।