लखनऊ

Sawan special 2018 शिवशंकर चले कैलाश बुन्दिया पड़ने लगी

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Published: July 26, 2018 01:52:33 pm
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सावन के पारम्परिक ऋतु गीतों में संयोग व वियोग, हर्ष और विषाद के अद्भुत रुप देखने को मिलते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश की कजरी ने पुरी दुनिया में धूम मचायी। आज इन पारम्परिक लोक गीतों को संरक्षित और भावी पीढ़ी को हस्तान्तरित किया जाना बहुत आवश्यक है।’

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लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा आयोजित पन्द्रह दिवसीय सावन गीत गायन कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में उक्त बातें संगीत मर्मज्ञ और संस्कार भारती, गोरक्ष प्रान्त के अध्यक्ष डा. शरदमणि त्रिपाठी ने कहीं। बुधवार को उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के पूर्वाभ्यास कक्ष में आरम्भ हुई कार्यशाला में वह मुख्य अतिथि थे।

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संगीत नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष अच्छेलाल सोनी, कजरी-बिरहा गायक पारसनाथ यादव, जगदीश जौनपुरी ने भी इस अवसर पर अपने विचार रखे। कार्यशाला निर्देशक केवल कुमार ने कहा कि आज अवधी व भोजपुरी ऋतु गीतों की पारम्परिक धुनों से छेड़छाड़ की जा रही है तथा प्रकृति वर्णन के स्थान पर अश्लीलता परोसी जा रही है

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जो हमारी विशिष्ट लोक संस्कृति के सौन्दर्य को नष्ट कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह स्वयं नये प्रयोग के हिमायती रहे हैं तथा स्वयं भी चौदह मात्रा में गाये जाने वाले सावन गीतों के अन्तरे में आठ मात्रा का कहरवा लगाकर प्रस्तुति दे चुके हैं जो आकाशवाणी पर असंख्य लोगों द्वारा सुना सराहा गया है। उन्होंने लोक गायकों से अपील किया कि हमारी सांस्कृतिक विरासत में मिली धुनों को विद्रूप न करें। संस्थान की सचिव सुधा द्विवेदी ने बताया कि पहले दिन प्रतिभागियों को पारम्परिक झूला गीत ‘शिवशंकर चले कैलाश बुन्दिया पड़ने लगी’ का अभ्यास कराया गया।

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