scriptजब आल्हा गायन सुनकर अंग्रेज अफसर भूल गए थे फांसी देना | Lucknow Mahoba When British officers forgot to hang listening Aalha | Patrika News

जब आल्हा गायन सुनकर अंग्रेज अफसर भूल गए थे फांसी देना

locationलखनऊPublished: Aug 27, 2021 08:08:33 pm

– यूपी घूमो: बुंदेलखंड के आंगन में वीर गाथाओं की गमक – आल्हा गायक शिवराम के किस्से आज भी जुबान पर

जब आल्हा गायन सुनकर अंग्रेज अफसर भूल गए थे फांसी देना

जब आल्हा गायन सुनकर अंग्रेज अफसर भूल गए थे फांसी देना

लखनऊ/महोबा. यूपी में आल्हा गायन की पुरानी परंपरा रही है। खासकर सावन-भादों के माह में आल्हा गायन गांव-गांव में रोमांच पैदा करता रहा है। यह अलग बात है कि पिछले दो सालों में कोरोना महामारी की वजह से आल्हा गायन प्रभावित हुआ। फिर भी इन दिनों बुंदेलखंड के आंगन में वीर गाथाओं की गमक सुनायी पड़ रही है।
UP में लाखों रुपये का धान-गेहूं बेचने वाले लखपति किसानों के राशन कार्ड होंगे रद्द

फड़क उठती थीं भुजाएं

बुंदेलखंडी आल्हा हो या फिर आल्हा ऊदल की लड़ाई की कहानी सुनते ही लोगों की भुजाएं भड़क उठती हैं। वीर, श्रृंगार और करुण रस में गाए जाने वाले आल्हा को सुनकर ब्रिटिश हुकूमत में अंग्रेज अफसर तो इतने बेसुध हो गए कि उन्होंने दो भाइयों की फांसी की सजा का समय ही टाल दिया था। यही नहीं फांसी की सजा छह-छह माह के कैद में तब्दील कर दी थी। तब यह आल्हा गाया था बुंदेलखंड के आल्हा सम्राट नाना शिवराम सिंह।
नौ साल की उम्र में सीखा गायन

इतिहासकार डॉ. एलसी अनुरागी और संतोष पटैरिया बताते हैं कि हमीरपुर के थाना भरुआ सुमेरपुर के ग्राम सुरौली में शिवराम सिंह जन्मे थे। शिवराम सिंह नौ साल की से ही आल्हा गायन करने लगे। उन्होंने बैहारी निवासी धनीराम शर्मा से बुंदेली लोक गायन की विधा सीखी। 1940 में शिवराम सिंह के दो भाइयों द्वारिका सिंह व गौरीशंकर सिंह को हत्या के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई थी। फांसी का समय अंग्रेज अफसरों ने मुकर्रर कर दिया था। फांसी से पहले दोनों भाइयों ने बड़े भाई शिवराम सिंह का आल्हा सुनने की अंतिम इच्छा जताई थी।
हमीरपुर जेल में गाया था आल्हा

हमीरपुर जेल में शिवराम सिंह ने वीर, करुण और श्रृंगार रस से ओतप्रोत आल्हा गायन कर वीर गाथाएं सुनाईं। शिवराम का आल्हा गायन सुनकर अंग्रेज अफसर इतने खुश हुए कि फांसी का समय भूल गए। और फांसी की सजा टल गई। बाद में इसे छह-छह माह की कैद में बदल दिया गया। 1975 में उनका निधन हो गया। आज भी खरेला गांव में उन्हें लोग याद करते हैं।
आल्हा गायन को जीवित रखने की कवायद

शिवराम सिंह की ही तरह महोबा के आल्हा सम्राट बच्चा सिंह आल्हा गायन को जीवित रखने की कवायद में जुटे हैं। इन्होंने 15 साल की उम्र में आल्हा गायन की शुरुआत कर दी थी। थाना खन्ना के ग्राम मवई खुर्द निवासी बच्चा सिंह ने अपने पिता मुल्ला सिंह से आल्हा गायकी सीखे। आल्हा गायक बच्चा सिंह को संस्कृति विभाग से दो हजार रुपए पेंशन और यूपी संगीत नाटक अकादमी से 12 हजार रुपए मानदेय मिलता है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो