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‘निर्भया के हत्यारे थे कोरोना वायरस, फांसी ने किया खत्म’

locationलखनऊPublished: Mar 20, 2020 01:26:45 pm

Submitted by:

Mahendra Pratap

फांसी के बाद प्रतिक्रियाएंनिर्भया के दादा ने कहा, सात साल बाद हमारे लिए एक नई सुबह की शुरुआत20 मार्च को निर्भया दिवस घोषित करने की मांग अपराधों पर नियंत्रण के लिए सबसे जरूरी है कानून का सख्ती से पालनअपराध किया तो फांसी पर लटका दिया जाएगादुष्कर्म जैसा अपराध करने पर दोषियों को फांसी की सजा तय

'निर्भया के हत्यारे थे कोरोना वायरस, फांसी ने किया खत्म'

‘निर्भया के हत्यारे थे कोरोना वायरस, फांसी ने किया खत्म’

लखनऊ. 16 दिसंबर 2012 की रात हुए निर्भया संग रेपकांड के दोषियों को शनिवार सुबह जेल में 5.30 बजे फांसी पर लटका दिया गया। 7 साल, 3 महीने और 4 दिन के बाद आखिरकार इंसाफ मिल गया। इस फांसी के बाद उत्तर प्रदेश में सभी उम्र की महिलाओं के चेहरे जहां खुशी से दमक रहे हैं वहीं लम्बी कानूनी प्रक्रिया से निराश हो चुके लोगों में फिर एक बार कानून पर भरोसा जमा और उन्होंने कहा, अंत भला तो सब भला। सजा देने में इतनी देरी और फांसी की सजा से महिला सुरक्षा को कैसे मजबूत होगी।
मुकेश, अक्षय, विनय और पवन को तिहाड़ जेल में फांसी मिलने के बाद निर्भया के पैतृक गांव में सभी खुशी जूझ उठे। गांव मड़ावरा कला उत्तर प्रदेश के बलिया जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर बलिया-गाजीपुर रोड़ पर नरही थाना क्षेत्र में आता है।
फांसी के बाद निर्भया के दादा लालजी सिंह ने कहा कि सात साल बाद हमारे लिए एक नई सुबह की शुरुआत हुई है। उन्होंने कहा, पूरा गांव हमारे परिवार के साथ खड़ा रहा। हम दुखी थे, दोषियों की फांसी की सजा बार-बार टल रही थी, ऐसे में ग्रामीणों ने इस साल होली नहीं मनाई। अब हम साथ में होली मनाएंगे। निर्भया के दरिंदों को कोरोना वायरस बताते हुए कहा कि ऐसे वायरस देश से खत्म हो रहे है, लिहाजा ये न्याय देश की सभी महिलाओं के लिए समर्पित है। निर्भया के बाबा ने सरकार से मांग की है कि 20 मार्च को निर्भया दिवस के रूप में घोषित किया जाए। इस मांग को गांव की जनता ने भी समर्थन किया है।
वाराणसी में पत्रकारिता में शोध कर रहीं करिश्मा का कहना है कि अपराधों पर नियंत्रण के लिए सबसे जरूरी है कानून का सख्ती से पालन। कानून का पालन होता है पर गांव या ऐसे छोटे शहर जो जानकारी के अभाव में अपने साथ होने वाले न्याय की आवाज नहीं उठा पाते हैं। ये अच्छी बात है कि निर्भया को देर से ही सही लेकिन न्याय मिला। दुष्कर्म जैसे अपराधों पर कठोर कानूनों संग उसका अनुपालन जरूरी है। निर्भया प्रकरण के बाद महिला अपराध संबंधी कई कानूनों को कठोर किया गया, लेकिन क्या यह कहा जा सकता है कि उसके बाद से महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर लगाम लगी है? #patrikaNirbhay
उत्तर प्रदेश में वर्ष 2014 में 3464 दुष्कर्म के केस दर्ज किए गए। औसत निकाला जाए तो यूपी में रोजाना 9 महिलाओं संग दुष्कर्म की घटना हो रही है। वर्ष 2015 में यह संख्या बढ़कर 9075 हो गई। प्रतिदिन 24 महिलाओं संग दुष्कर्म की घटना। वर्ष 2016 में उत्तर प्रदेश में 4,816 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए। वर्ष 2017 में 4246 दुष्कर्म के मामले सामने आए हैं। वर्ष 2018 में उत्तर प्रदेश में 4,322 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए।
लखनऊ हाईकोर्ट में वरिष्ठ वकील पूजा पाल का मानना है कि दोषियों को सजा देने में कानूनी प्रक्रिया में कितनी भी देरी होती है हो अंत अपराधियों को सजा मिल ही जाती है। फांसी की यह सजा दुष्कर्म करने की सोचने वालों के लिए एक बड़ा संदेश होगा कि अगर यह अपराध किया तो फांसी पर लटका दिया जाएगा।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) 2018 के अनुसार उत्तर प्रदेश में महिलाओं के साथ अपराध की सबसे ज्यादा घटनाएं होती हैं। उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों की संख्या साल 2018 में 59,445 रही जबकि 2017 में 56,011 और 2016 में 49,262 थी।
मालवीय नगर लखनऊ की समाजसेवी रागिनी का कहना है कि महिला सशक्तीकरण के लिए यह सजा बेहद जरूरी थी। इससे संदेश जाएगा कि अगर अपराध किया जाएगा तो अपराधी नहीं बच सकेगा। दुष्कर्म जैसा अपराध करने पर दोषियों को फांसी की सजा तय है।
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