उत्तर प्रदेश के किसान सरकार की कई नीतियों से परेशान हैं। किसान कभी आवारा पशुओं से निजात को लेकर तो कभी पराली जलाने को लेकर परेशान हैं। पराली जलाने के अपराध में कई किसानों पर जुर्माना भी लगाया गया और जुर्माना अदा न करने पर उन्हें जेल भेज दिया गया है। सही लागत न मिलने को लेकर किसानों ने कई दफा सरकार के खिलाफ अपनी नाराजगी व्यक्त की है। यह नाराजगी उस वक्त गुस्से में फूट पड़ी जब दो साल के इंतजार के बाद भी उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ने का मूल्य नहीं बढ़ाया।
राज्य सरकार ने 7 दिसम्बर को वर्ष 2019-20 के लिए गन्ने का राज्य परामर्शित मूल्य (एसएपी) घोषित कर दिया गया। पिछले वर्ष की तरह ही अगैती प्रजाति के लिए 325, सामान्य प्रजाति के लिए 315 और अनुपयुक्त प्रजाति के लिए 310 रुपए प्रति कुंतल गन्ना मूल्य निर्धारित किया गया है।
गन्ना मूल्य में बढ़ोत्तरी न होने पर भाकियू ने बुधवार को समूचे उत्तर प्रदेश में जक्का जाम करने का ऐलान किया। इसकी एक बानगी सुबह राजधानी लखनऊ में देखने को मिली। मलिहाबाद से आए तमाम किसानों ने विधानसभा का घेराव कर सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। भाकियू प्रदर्शन को देखते हुए हजरतगंज इलाके में सुबह से ही बैरिकेडिंग कर सड़क बंद कर दी गई थी। किसानों ने बापू भवन के करीब गन्ना और पराली जलाकर विरोध जताया। प्रदर्शनकारियों ने सरकार को किसान विरोधी बताकर अपनी मांगे पूरी करने तक आंदोलन की चेतावनी दी। पुलिस ने उनपर पानी की बौछार कर उन्हें काबू में करने की कोशिश की और फिर बस में भरकर दूर तक ले जाया गया। इस दौरान कई किसानों को हिरासत में लिया गया।
चिनहट थाना इलाके में भाकियू के मंडल अध्यक्ष हरिनाम वर्मा के नेतृत्व में पराली व गन्ना की होली जलाकर विरोध किया और गन्ना मंत्री के खिलाफ नारेबाजी की। हरिनाम वर्मा ने कहा कि पिछले तीन साल से गन्ना उत्पादन में बढ़ोतरी हुई। लेकिन सरकार ने इस साल गन्ना के दाम में कोई भी बढ़ोत्तरी न कर किसानों के हितों पर प्रहार किया है। पिछले तीन साल में गन्ने की 11.30 प्रतिशत रिकवरी हुई है। यह पहले की रिकवरी से साढ़े तीन प्रतिशत ज्यादा है। लेकिन इसका फायदा किसानों को मिलने की जगह मालिकों को मिलता है। किसानों ने कहा कि शुगर मालिकों को संरक्षित करने के लिए सरकार किसानों का गला घोंट रही है।
यूपी के किसानों का आंकड़ा देखें तो कुल दो करोड़ 34 लाख किसान हैं। इनमें से लगभग दो करोड़ 15 लाख छोटे और सीमांत किसान हैं। इस संख्या में एक करोड़ 85 लाख यानी करीब 80 फीसदी सीमांत और बाकी बचे 13 फीसदी छोटे किसानों की हिस्सेदारी है। सीमांत किसान के पास औसतन 0.45 से 0.50 हैक्टेयर जमीन है।
सिर्फ वादों से काम चलाना चाहती है सरकार: शेखर दीक्षित किसानों के उग्र व्यवहार को राष्ट्रीय किसान मंच के अध्यक्ष शेखर दीक्षित ने सही ठहराया। उन्होंने कहा कि किसानों की चिंता जायज है। सरकार निरंतर उनसे सिर्फ वादों से काम चलाना चाहती है। चुनाव वर्ष में भी गन्ना मूल्य न बढ़ाना ये दर्शाता है की किसानों की तरफ़ प्रदेश और केंद्र सरकार का कोई ध्यान नहीं है। मुख्यमंत्री ने 14 दिनों में भुगतान की बात भी सिर्फ़ जुमला साबित हुई है। किसानों का भुगतान न ही सरकारी चीनी मिलें कर रही हैं और न ही प्राइवेट। ऐसे में किसान के पास सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए अन्य कोई विकल्प नहीं बचता। अगर फिर भी सरकार ने जल्द ही इसका समाधान नहीं निकाला, तो भविष्य में ये प्रदर्शन और उग्र होंगे।
किसानों का कहना है बच्चों को पढ़ाने से लेकर घर के हर एक कामकाज के लिए उनके पास सिर्फ गन्ना ही आमदनी का एक स्त्रोत है। ऐसे में अगर गन्ना मूल्य भुगतान देर से होगा और गन्ने का समर्थन मूल्य भी दो साल में एक बार बढ़ेगा, तो घर का चूल्हा कैसे जलेगा। ऐसे में सरकार के सामने अपनी बात रखने के लिए वे तब तक आंदोलन करते रहेंगे, जब तक कि उनकी मांगें पूरी नहीं हो जाती।
किसानों की प्रमुख मांगें :— गन्ने का मूल्य 450 रूपए प्रति कुंतल
खेतों में आवारा पशुओं से छुटकारा
फल, सब्जी व दूध का न्यूनतम समर्थन मूल्य
किसानों की फसल लागत मूल्य में 50 प्रतिशत जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का फार्मूला लागू हो
मेंथा को फसल का दर्जा, मंडी शुल्क खत्म
फसलों का लाभकारी मूल्य- डॉक्टर स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू किया जाए
उत्तर प्रदेश मूल्य स्थिरीकरण कोष की स्थापना
कृषि उत्पादों की कीमतों को निर्धारिक किया जाए। इसके लिए कारगार योजना बने
कृषि को संविधान की समवर्ती सूची में शामिल कराना
किसान को खरीफ व रबी फसली ऋण एक साथ दिया जाए
गरीब किसान को एक लाख की सीमा तक ब्याज रहित कृषि ऋण
किसानों को निजी नलकूप के कनेक्शन
बुंदेलखंड के किसानों के सभी कर्ज माफ
किसान आय आयोग का गठन
आंदोलन में किसानों पर लगे मुकदमे वापस
मिट्टी के माइक्रो टेस्ट के लिए लैब
किसानों के समर्थन में प्रियंका ने लिखा योगी को पत्र गन्ना खरीद के मूल्य में कोई वृद्धि न होने से दुखी किसानों के विरोध के सिलसिले में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने यूपी के मुख्यमंत्री को पत्र लिखा। पत्र के माध्यम से प्रियंका ने मुख्यमंत्री से फसलों के सही दाम लगाए जाने का आग्रह किया। पत्र में उन्होंने कहा कि पिछले पेराई सत्र में गन्ना मूल्य में एक भी रुपया नहीं बढ़ा, यह आश्चर्य की बात है। सरकार में खाद का दाम दोगुना हुआ, बिजली के बिल में वृद्धि हुई, निराई-गुड़ाई में मजदूरी बढ़ी। किसानों की लागत भी बढ़ी लेकिन उनकी फसलों के दामों में वृद्धि नहीं हुई। उत्तर प्रदेश सरकार में किसानों का हजार करोड़ रुपया भी बकाया है। प्रियंका ने कहा कि ऐसी ही हालत धान की भी है। प्रदेश सरकार ने धान मात्र 1850 रुपया प्रति कुंतल खरीदने की घोषणा की है। धान के किसानों की लागत बढ़ने के बाद भी उन्हें उचित दाम नहीं मिल रहे। उत्तर प्रदेश का किसान संकट की घड़ी में है। ऐसे में सरकार का कर्तव्य बनता है कि उन्हें उनकी फसलों के सही दाम दिए जाएं।