लखनऊ

बाबरी विध्वंस की बरसी पर दायर होगी पुनर्विचार याचिका !

जमीयत उलेमा ए हिंद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपने फैसले पर अटल

लखनऊDec 02, 2019 / 09:35 pm

Mahendra Pratap

बाबरी विध्वंस की बरसी पर दायर होगी पुनर्विचार याचिका !

लखनऊ. शुक्रवार का दिन रामनगरी अयोध्या के साथ उत्तर प्रदेश और देश के लिए भी बेहद अहम है। शुक्रवार को छह दिसम्बर है, इस दिन देश के दो अहम मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड राम मंदिर पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर कर सकते हैं। पक्षकारों के पास 9 दिसंबर तक रिव्यू याचिका फाइल करने का समय है।
सुप्रीम कोर्ट ने नौ नवम्‍बर को अयोध्‍या मामले में फैसला सुनाते हुए विवादित ज़मीन राम के पक्षकारों को दे दी। मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए अयोध्‍या में किसी प्रमुख स्‍थान पर पांच एकड़ जमीन देने के आदेश दिया गया है।
अयोध्या मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के इस फैसला के खिलाफ जमीयत उलेमा-ए-हिंद पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगा। उसकी तरफ से यह पुनर्विचार याचिका बाबरी विवाद की बरसी पर यानी 6 दिसंबर को दायर की जाएगी। ऐसा माना जा रहा है यह याचिका जमीयत के यूपी जनरल सेक्रटरी मौलाना अशद रशीदी की ओर से दायर की जाएगी, जो कि अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्ष के 10 याचिकाकर्ताओं में से एक हैं।
अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को एक समुदाय शौर्य दिवस और एक समुदाय यौम-ए-गम के रूप में मनाते हैं। 6 दिसंबर को विवादित ढांचा गिराया गया था। अयोध्यावासी इस वक्त असमंजस में हैं।

सुप्रीम कोर्ट से अयोध्या में राममंदिर पर आए फैसले के तुरंत बाद से ही ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने अपनी नाराजगी दिखाई थी। उसने माहौल को देखते हुए सिर्फ इतना ही कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दायर करेगा। इस मसले पर फाइनल निर्णय लेने के लिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने 17 नवम्‍बर 2019 को लखनऊ में एक आपात बैठक बुलाई और उसमें यह तय किया कि बोर्ड हर हाल में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगा।
इस पर सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी ने कहा कि मुस्लिम पक्ष को सुप्रीम कोर्ट का फैसला मंजूर नहीं है। यह महसूस किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में कई बिंदुओं पर न केवल विरोधाभास है, बल्कि प्रथमदृष्टया अनुचित प्रतीत होता है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के फैसले पर जिलानी ने कहाकि सुन्नी वक्फ बोर्ड पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं करना चाहता है, न करे। अगर एक भी पक्षकार पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के पक्ष में हैं तो भारतीय संविधान उसे पूरा अधिकार देता है।
इस वाद के एक अहम मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी ने फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि वह कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ वह पुनर्विचार याचिका नहीं दाखिल करेंगे। इस मामले के प्रमुख पक्षकार रहे सुन्‍नी सेंट्रल वक्‍फ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया। उत्‍तर प्रदेश सुन्‍नी सेंट्रल वक्‍फ बोर्ड ने पुनर्विचार याचिका नहीं दाखिल करने का निर्णय लिया है। लखनऊ 26 नवंबर को एक बैठक कर
सुन्नी वक्फ बोर्ड बहुमत से सुप्रीम कोर्ट न जाने के निर्णय पर मुहर लगा दी है। हालांकि बैठक में पांच एकड़ भूमि पर अभी कोई निर्णय नहीं लिया जा सका है, इस पर राय बनाने के लिए सदस्यों ने और वक्त मांगा है।
मुसलमानों को न्‍यायपालिका पर भरोसा : पर्सनल लॉ बोर्ड

पुनर्विचार याचिका दायर करने के पक्ष में रविवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी कहाकि देश के 99 फीसदी मुसलमान चाहते हैं कि इस निर्णय पर पुनर्विचार की याचिका दाखिल की जाए। उन्होंने कहा कि मुसलमानों को न्‍यायपालिका पर भरोसा है, मगर बाबरी मस्जिद के फैसले के बाद वह भरोसा कमजोर हुआ है।
आखिर होगा क्या

संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अधिकार है। यह अधिकार सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के पास है। अयोध्या मामले के पक्षकार पुनर्विचार याचिका दायर कर सकते हैं। पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट की उसी बेंच के समक्ष दाखिल की जाती है, जिसने फैसला सुनाया है। याचिका दाखिल होने के बाद सुप्रीम कोर्ट की मर्जी है कि वो याचिका मंजूर करे या न करे। नामंजूर करने की संभावना अधिक है। सुप्रीम कोर्ट दोबारा से इस मामले को उठाने से बचेगा।
पुनर्विचार की याचिका के बाद भी मिल सकता है मौका

यही नहीं यदि इस पर आए फैसले पर भी किसी पक्ष को असहमति होती है तो फिर शीर्ष अदालत में क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल की जा सकती है। क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करने के लिए भी 30 दिन का ही वक्त मिलता है। फैसले पर पुनर्विचार की याचिका दाखिल करने वाली पार्टी को शीर्ष अदालत में यह साबित करना होता है कि उसके फैसले में क्या त्रुटि है। रिव्यू पिटिशन के दौरान वकीलों की ओर से जिरह नहीं की जाती। पहले दिए गए फैसले की फाइलों और रेकॉर्ड्स पर ही विचार किया जाता है।
Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.