बुरे दौर से गुजर रहे हैं मंदिर :- कोरोना काल में आम आदमी ही नहीं भगवान के मंदिर भी अछूते नहीं रह गए हैं। लॉकडाउन में एक लम्बे समय तक मंदिर बंद रहे और फिर अनलॉक शुरू हो गया। पर कोरोना के डर से श्रद्धालु मंदिर का रुख ही नहीं कर रहे हैं। वह घर में ही भगवान की आराधना कर अपना काम खत्म कर देते हैं। पर इससे मंदिर की व्यवस्था संकट में आ गई है। जब श्रद्धालु मंदिर में नहीं आएंगे तो न दान मिलेगा न ही चढ़ावा। जिस वजह से यूपी के तमाम मंदिरों की हालात बड़ी खराब हो गई है। और छोटे मंदिर अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं।
जमापूंजी से दिया जा रहा है वेतन :- मथुरा स्थित पुष्टिमार्गीय संप्रदाय के विश्व प्रसिद्ध ठाकुर द्वारिकाधीश मंदिर के पट लॉकडाउन के पहले चरण से ही भक्तों के लिए बंद हो गए थे। आय कम होने से मंदिर के आर्थिक हालत ठीक नहीं है। मंदिर प्रबंधन को कर्मचारियों व अन्य खर्चों के लिए जमापूंजी तक निकलनी पड़ी है। श्रीकृष्ण जन्मस्थान के करीब 150 कर्मियों को प्रबंधन ने जमा राशि से वेतन का भुगतान किया। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर के 70 कर्मियों को भी ऐसे ही मदद मिली। गोवर्धन का मुखार्रंवद जतीपुरा तो एक सितंबर से ही खोला गया है।
अब मंदिरों के आंगन सूने हैं :- द्वारिकाधीश मंदिर के विधि सलाहकार और मीडिया प्रभारी राकेश चतुर्वेदी ने बताया कि लगभग 20 एफडी तोड़कर कर्मचारियों को वेतन दिया गया है। मंदिर में कुल 65 कर्मचारी हैं। हर महीने करीब चार लाख वेतन और बिजली पर खर्च होता है। सिर्फ द्वारिकाधीश ही नहीं मथुरा और वृंदावन के अन्य मंदिरों की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है। वृंदावन का प्रमुख बांकेबिहारी मंदिर अभी भी बंद है। लॉकडाउन से पहले ब्रज के मंदिरों में प्रतिदिन श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है, लेकिन अब मंदिरों के आंगन सूने हैं।
काशी विश्वनाथ में श्रद्धालुओं की संख्या सिर्फ सात फीसदी :- काशी विश्वनाथ मंदिर की आय बढ़ाने के लिए आरती के टिकटों की कीमत बढ़ाई गई है। ऑनलाइन रुद्राभिषेक की शुरुआत की गई है। लॉकडाउन से पहले हर महीने औसतन 55 से 60 लाख रुपए सिर्फ हुंडी से निकलते थे। लेकिन अभी छह महीने से अधिक का अर्सा बीत चुका है और हुंडी नहीं खोली गई है। सन 2008 तक दान में मिला सोना एसबीआई में जमा है जिसका ब्याज मिलता है। श्रद्धालुओं की संख्या पांच से से सात फीसदी रह गई है।