फिलहाल दोनों ही विभाग अपनी अपनी तैयारियों में जुट चुके हैं। नगर निगम रायबरेली रोड पर प्लांट स्थापित करने जा रहा है जिसके लिए टेंडर भी मांगे गए हैं।
मिट्टी की ईंट पकाने में पर्यावरण को होता है नुक्सान
इस तकनीक से पर्यावरण को होने नुकसान से बचाया जा सकेगा। मिट्टी से ईंट का निर्माण करते समय पर्यावरण को नुकसान होता है। जानकारों का कहना है कि 1.4 करोड़ मिट्टी की ईंटों को बनाने में करीब 24000 मेट्रिक टन कोयला उपयोग होता है। जमीन की ऊपरी सतह की मिट्टी की खुदाई भी भट्टा संचालक करते हैं, जिससे जमीन की क्षमता प्रभावित हो जाती है। इन ईंटों को पकाने के लिए कोयले के साथ वातावरण भी दूषित होता है। इसके उलट 1.4 करोड़ फ्लाईऐश क्यूब बनाने में 1.8 लाख टन फ्लाई ऐश की खपत होगी जोकि पर्यावरण के लिए खतरा बनी हुई है।
मलबा भी बड़ा सिर दर्द
अक्सर देखा जाता है कि घर आदि बनवाने के बाद लोग बची हुई निर्माण सामग्री को सड़क किनारे या फिर खाली प्लाट में फेंक देते हैं। इससे लोगों को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई बार यह निर्माण सामग्री वाहन सवारों के लिए हादसे का सबब भी बन जाती है। नाले-नालियों में भी वेस्ट निर्माण सामग्री फेंक दी जाती हैं जिससे जलभराव की समस्या उत्पन होती है। प्लांट लगने के बाद इस मलबे से निर्माण सामग्री जैसे टाइल्स, ब्रिक्स आदि बनाई जाएंगी।
अक्सर देखा जाता है कि घर आदि बनवाने के बाद लोग बची हुई निर्माण सामग्री को सड़क किनारे या फिर खाली प्लाट में फेंक देते हैं। इससे लोगों को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई बार यह निर्माण सामग्री वाहन सवारों के लिए हादसे का सबब भी बन जाती है। नाले-नालियों में भी वेस्ट निर्माण सामग्री फेंक दी जाती हैं जिससे जलभराव की समस्या उत्पन होती है। प्लांट लगने के बाद इस मलबे से निर्माण सामग्री जैसे टाइल्स, ब्रिक्स आदि बनाई जाएंगी।
नगर आयुक्त उदयराज सिंह ने कहा वेस्ट बिल्डिंग मैटेरियल को री-यूज करने के लिए प्लांट को स्थापित करने संबंधी तैयारी की जा रही है। इस कदम को उठाए जाने से सड़क से लेकर खाली प्लाट और नाले-नालियों में वेस्ट निर्माण सामग्री नजर नहीं आएगी।
एलडीए मुख्य अभियंता इंदु शेखर सिंह ने कहा कि फ्लाईऐश तकनीक से पर्यवरण को होने वाले नुक्सान को रोका जा सकेगा। एलडीए नो ब्रिक सिटी के कांसेप्ट पर काम रहा है।