उत्तर प्रदेश में पिछले छह माह में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर प्रदर्शन जारी है। इसी बीच सूबे के कई हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन भी हुए। अलीगढ़, मेरठ, मुज्जफरनगर आदि जिलों में 19 और 20 दिसंबर को व्यापक तोडफ़ोड़ और आगजनी भी हुई। नागरिकता कानून को लेकर हुई हिंसा में उत्तर प्रदेश के 20 से ज्यादा जिले प्रभावित हुए थे। प्रदेश में सबसे ज्यादा छह मौतें मेरठ में हुई थीं।
सपा विधायक राकेश प्रताप सिंह के जवाब में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंगलवार को सदन में जो लिखित जानकारी दी है उसके मुताबिक व्यापक हिंसा के बावजूद पुलिस ने संयम बरता और बवालियों पर सीधे गोली नहीं चलायी। अब तक जो भी मौतें हुई हैं उनमें से एक को भी पुलिस की गोली नहीं लगी है। बल्कि दंगाइयों ने ही दंगाइयों को गोली मारी है।
पुलिस ने बनाई सीएए हिंसा पर डॉक्यूमेंट्री :- नागरिकता कानून के विरोध में राज्य में हुई हिंसक घटनाओं पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाकर जनता को दिखाया कि हिंसा कैसे शुरू हुई और पुलिस ने इसे कैसे कंट्रोल किया। मेरठ और मुजफ्फरनगर पुलिस ने डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाने में मदद की। इस वीडियो को सभी राज्यों की पुलिस को भेजा गया ताकि दंगा नियंत्रण में ये फिल्में मददगार हो सकें। इसका मकसद यह था कि कठिन परिस्थतियों में भी उप्र पुलिस ने हिंसा को कैसे कंट्रोल किया। सीएए के खिलाफ मेरठ युद्धग्रस्त देश जैसा’ और कर्फ्यू डॉक्यूमेंट्री में दंगों को दिखाया गया है। डॉक्यूमेंट्री के जरिए यह संदेश देने की कोशिश की गयी कि इन राइट्स का क्या फायदा निकला? तय करना होगा कि हम भारतीय हैं।
पुलिस ज्यादतियों के मुद्दे पर सरकार को घेरा :- बजट सत्र के दौरान विपक्ष पूरी तरह से हमलावर है। कभी कांग्रेस तो कभी बसपा-सपा पुलिस ज्यादती को लेकर सदन में सवाल पूछ रहे हैं। मंगलवार को विधान परिषद में सपा के सुनील साजन और राजेश यादव ने सवाल उठाया कि सरकार के इशारे पर पुलिस बेगुनाहों को उनके घर से उठाकर थाने में बंद कर देती है और उन पर जुल्म किया जाता है।
तेजी से घटे हैं बलात्कार के मामले :- महिलाओं के अत्याचार के मुद्दे पर सरकार ने कहा कि यूपी में बलात्कार के मामलों में 27.57 प्रतिशत की कमी आयी है। संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने बताया कि 2017 में बलात्कार के 4246 मामले दर्ज हुए थे लेकिन 2018 में यह घटकर 3946 और 2019 में 2558 ही रह गए।