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यूपी विधानसभा चुनाव 2022 : चुनावी बिसात के बड़े मोहरे साबित होंगे छोटे दल

locationलखनऊPublished: Nov 23, 2020 04:34:30 pm

Submitted by:

Mahendra Pratap

– यूपी के हर बड़े राजनीतिक दल की जरूरत बने छोटे दल

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 : चुनावी बिसात के बड़े मोहरे साबित होंगे छोटे दल

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 : चुनावी बिसात के बड़े मोहरे साबित होंगे छोटे दल

लखनऊ. यूपी में विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर यूपी की पार्टियां अपनी रणनीति में कुछ हेरफेर करने जा रही हैं। एकला चलो का सिद्धांत यूपी में अब फिट नहीं बैठ पा रहा है। जातिवाद और क्षेत्रवाद के मुद्दे को लेकर यूपी में कई छोटी-छोटी पार्टियों का अपने-अपने क्षेत्र के मतदाताओं में भारी दखल है। ये खुद तो अकेले दम पर कम चुनाव जीतती है पर किसी भी बड़े दल के प्रत्याशी की हार और जीत में इन छोटी पार्टिंयों की बड़ी भूमिका होती है। इन छोटे दलों के महत्व को देखते हुए अब बड़े दल इन्हें अपनी पार्टी में ‘छोटे भाई’ की भूमिका में शामिल करने के लिए लुभा रहे हैं। अभी अभी खत्म हुए बिहार चुनाव परिणाम ने छोटे दलों के रोल को जग में और उजागर कर दिया है। अब यूपी के सारे बड़े दल, छोटे दलों के साथ गठबंधन कर मिशन 2022 की चुनावी वैतरणी पार करने की जुगत में हैं।
यूपी में मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में भाजपा को चुनौती देने वाली समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने अभी अभी कहाकि अब वे किसी भी बड़े दल के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। अपने दम पर चुनाव लड़ेंगे। पर छोटे दलों के साथ चलना पसंद करेंगे। इसी के तहत अखिलेश ने अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव की पार्टी के साथ चुनाव लड़ने का आफर दिया है। पश्चिमी यूपी की रालोद के साथ समाजवादी पार्टी का गठबंधन विधानसभा 2017 से ही चल रहा है। अभी खत्म हुए उपचुनाव में इस गठबंधन के तहत बुलन्दशहर सदर से रालोद के लिए सीट छोड़ी गई थी। वो अलग बात है कि वहां सपा-रालोद गठबंधन हार गया। इसके अलावा क्षेत्रीय पार्टी ‘महान दल’ के नेता केशव देव, जनवादी पार्टी के संजय चौहान अखिलेश यादव के साथ सक्रिय हैं।
छोटी पार्टियां राजनीति में बड़ी जरुरत :- उत्‍तर प्रदेश में छोटे दलों का सबसे प्रभावी असर विधानसभा चुनाव 2017 में देखने को मिला, जब राष्‍ट्रीय और राज्‍य स्‍तरीय दलों के अलावा करीब 290 पंजीकृत दलों ने अपने उम्‍मीदवार उतारे थे। विधानसभा चुनाव 2012 में भी करीब 200 पंजीकृत दलों के उम्‍मीदवारों ने अपनी किस्‍मत आज़माई थी। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है अब दौर बदल रहा है। जाति आधारित, क्षेत्रवाद पर बनी छोटी पार्टियां अब राजनीति में एक बड़ी जरुरत बन गई है।
भागीदारी संकल्‍प मोर्चा में दर्जनभर दल शामिल :- मजबूत छोटे दलों की लिस्ट पर अगर नजर डालते है तो कुर्मी समाज पर अपना असर रखने वाली पार्टी अपना दल (एस) जिसका नेतृत्व अनुप्रिया पटेल के पास है। ओमप्रकाश राजभर की अगुवाई में बनी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) का अति पिछड़े राजभर समाज पर की आज वक्त बड़ा असर है। वक्त की नजाकत को वक्त से पहले समझाते हुए ओमप्रकाश राजभर ने कहा, ‘देश में अभी गठबंधन की राजनीति का दौर है इसलिए हमने भागीदारी संकल्‍प मोर्चा बनाया है जिसमें दर्जन भर से ज्‍यादा दल शामिल हैं।’
हम जिसके साथ जाएंगे यूपी में उसी की सरकार बनेगी:- ओमप्रकाश राजभर के अनुसार, पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की जनाधिकार पार्टी, कृष्‍णा पटेल की अपना दल कमेरावादी, बाबू राम पाल की राष्‍ट्र उदय पार्टी, राम करन कश्‍यप की वंचित समाज पार्टी, राम सागर बिंद की भारत माता पार्टी और अनिल चौहान की जनता क्रांति पार्टी भागीदारी संकल्‍प मोर्चा में शामिल हैं। हम जिसके साथ जाएंगे उत्‍तर प्रदेश में उसी की सरकार बनेगी। इसके अलावा पीस पार्टी, आजाद समाज पार्टी, भीम आर्मी, जनसत्ता पार्टी, अपना दल (एस), निषाद पार्टी के साथ असदुदीन ओवैसी की पार्टी आल इंडिया मजलिस-ए-इत्‍तेहादुल मुसलमीन भी चुनावी बिसात के बड़े मोहरे साबित हो रहे हैं।
छोटे दलों को सम्‍मानपूर्वक भागीदारी :- भाजपा

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश उपाध्‍यक्ष विजय बहादुर पाठक ने कहा ‘सबका साथ-सबका विकास और सबका विश्‍वास’ भाजपा का मूल मंत्र हैं। इसी आधार पर छोटे दलों को सम्‍मानपूर्वक भागीदारी दी गई है। गठबंधन के सभी दलों से हमारे मजबूत रिश्‍ते हैं जो आगे और भी मजबूत होंगे।
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