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यूपी में ब्राह्मणों को रिझाने के लिए फिर ‘परशुराम’ लहर

locationलखनऊPublished: Jul 20, 2021 11:46:19 am

Submitted by:

Mahendra Pratap

– हर दल लगा रहा विप्रजनों पर दांव, भाजपा भी रणनीति बनाने में जुटी

यूपी में ब्राह्मणों को रिझाने के लिए फिर 'परशुराम' लहर

यूपी में ब्राह्मणों को रिझाने के लिए फिर ‘परशुराम’ लहर

संजय कुमार श्रीवास्तव

पत्रिका न्यूज नेटवर्क

लखनऊ. Assembly elections 2022 यूपी की राजनीति में हमेशा से जाति हावी रही है। किसी चुनाव में दलित तो किसी में ओबीसी जातियों को रिझाने का काम होता रहा है। 2022 के विधानसभा चुनाव में सभी दलों के निशाने पर ब्राह्मण हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने विप्रजनों को अपने पाले में लाने के लिए ब्राह्मण सम्मेलन कराने का पासा फेंका है तो सपा भगवान परशुराम के वैभव की वापसी की बात कर रही है। कांग्रेस और भाजपा को भी ब्राह्मण नेताओं की तलाश है। हर दल में ‘परशुराम’ लहर चल रही है।
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ब्राह्मण वोटर 11 फीसद

यूपी में ब्राह्मण मतों की संख्या 10 से 11 प्रतिशत है। बावजूद इसके सत्ता में हमेशा से ब्राह्मणों का वर्चस्व रहा। आजादी के बाद से 1989 तक यूपी में छह ब्राह्मण मुख्यमंत्री बने। इसके बाद मंडल लहर ऐसी चली कि तीस साल बीत गए कोई ब्राह्मण यूपी का सीएम नहीं बन सका।
माया का दांव सफल रहा

बसपा के ब्राह्मण सम्मेलन ने सभी पार्टियों को चौकन्ना कर दिया है। 2007 में सोशल इंजीनियरिंग थ्योरी के आधार पर बसपा के आधार वोट बैंक के साथ ब्राह्मण को जोड़कर मायावती ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनायी थी।
जिस पार्टी के ज्यादा विधायक वह सत्ता में

पिछले तीन चुनावों में जिस पार्टी के सबसे ज्यादा ब्राह्मण विधायक बने, वही यूपी की सत्ता पर काबिज रहा। 2007 में बीएसपी से 41 ब्राह्मण विधायक चुने गए थे। भाजपा के 3, सपा से 11 और कांग्रेस से 2 विधायक बने। 2012 में सपा से 21 ब्राह्मण विधायक जीते। तब बसपा के 10, भाजपा के 6 और कांग्रेस के 3 विधायक थे। इसी तरह 2017 में कुल 56 ब्राह्मण विधायक बनें। इनमें 46 भाजपा के टिकट पर जीते थे। सपा-बसपा से 3-3 और कांग्रेस से 1 ब्राह्मण जीता।
सियासी दलों की जोर-आजमाइश शुरू

यूपी विधानसभा चुनाव में अभी आठ माह बाकी हैं। एक बार फिर ब्राह्मणों को रिझाने के प्रयास शुरू हो गए हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा है-अब ब्राह्मण समाज बीजेपी के बहकावे में नहीं आएंगा। इस पर भाजपा का कहना है मायावती का ब्राह्मण प्रेम अवसरवादी राजनीति का एक चेहरा है। वहीं समाजवादी पार्टी जगह-जगह परशुराम की मूर्तियां स्थापित कर रही है। कांग्रेस भी ढूंढ़—ढूंढ़कर ब्राह्मण नेताओं को जिम्मेदारी सौंप रही है।
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