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लखनऊ

कल तक थी कलेजे की ठंडक,आज राख बन गई वो लड़की जाने फिर क्या हुआ

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6 years ago
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लखनऊ, लखनऊ चलो आज मैं अपने दिल के सारे राज खोल देती हूँ ,जो दिल में छुपा के रखा है, वो बेबाक़ बोल देती हूँ । नज़्मों,कविताओं,क़िस्सों और बातों के ज़रिये कुछ ऐसी ही लाइनें निकली युवा कवियों और लेखकों की क़लम और ज़ुबान से,मौक़ा था महिलाओं के लिए काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था ब्रेकथ्रू द्वारा आयोजित ओपेन माइक ‘खुल के बोल’ कार्यक्रम का,जिसमें महिलाओं की सुरक्षा विषय पर युवाओं ने अपने विचार रखे।कार्यक्रम का संचालन व समन्वय ब्रेकथ्रू के नदीम ने किया।

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कार्यक्रम की शुरूआत में ब्रेकथ्रू संस्था के परिचय के साथ सीनियर मैनेजर-मीडिया एडवोकेसी विनीत त्रिपाठी ने की, उन्होंने कहा कि महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल बनाने के लिए साथ मिलकर काम करना होगा ,बदलाव करने के लिए हमें बार-बार इस मुद्दे को उठाना होगा और शुरूआत अपने आप में बदलाव के साथ करनी होगी ।

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कार्यक्रम के अगले पड़ाव पर आयुष ने अपनी कविता इस कविता को पढ़ते हुए चर्चा को आगे बढ़ाया कुछ रोज़ पहले ही आई थी वो लड़की कल तक थी कलेजे की ठंडक आज राख बन गई वो लड़की ग्रह लक्ष्मी बन कर आई थी घर में पर दहेज कम लाई थी वो लड़की ।

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ब्लॉगर अक्षिता ने अपनी कविता के माध्यम से गुड टच और बाद टच के बारे में बताया। अक्षिता ने बताया कि कैसे सुरक्षित समाज के निर्माण के लिए हमें अपने बच्चों को उनके अधिकारों के बारे में बताना होगा साथ ही साथ हमें इस विषय में भी जागरूक करना होगा कि अगर कोई उन्हें गलत ढ़ंग से छूता है तो वो तत्काल अपने घरवालों को इसकी सूचना दें।

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तेरी लाशों को भी अब सबने रोटी का जरिया बना दिया...बेटी की रक्षा के उपर भाषण लिख कर सुना दिया। प्रज्वल ने जब यह कविता पढ़ी तो कार्यक्रम में बैठे हर शख्स को झंकझोर दिया। अपनी कविता के माध्यम से प्रज्वल ने बताया कि कैसे समाज में अब यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर लोग सियासत खेलते हैं जबकि ऐसी स्थिति में पीड़िता को बल देने की ज़रूरत होती है जबकि समाज में लोग बल दना तो दूर उल्टा अपने मकसद को साधने के लिए राजनीति करने लगते हैं।

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शहर के उभरते हुए कवि आयुष ने अपनी कविता से समाज में दहेज़ जैसी कुप्रथा पर चोट करी। अपनी कविता के माध्यम से उन्होंने बताया कि कैसे आज के दौर में समाज में यह कम होने के बजाय बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। स्टैंडअप कॉमेडियन अज़हर ने बताया कि कैसे लोग टी-शर्ट पर लिखी उलटी-सीधी पंक्तियों से आजकल फब्तियां कसते हैं। बकौल अज़हर इसके विपरीत भी किया जा सकता है क्यों ना हम ऐसी पंक्तियाँ लिखें जो हमारे आस-पास के समाज में एक सुरक्षित वातावरण का निर्माण कर सकें।

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