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लखनऊ की यह लड़कियां तोड़ रहीं धर्म की बंदिशें, बयान हो रहा वायरल

locationलखनऊPublished: Sep 17, 2019 11:32:14 am

Submitted by:

Ritesh Singh

शहर की बेटियों ने तोड़ी सदियों से चली आ रही कुप्रथा, माहवारी में मंदिर में करती हैं पूजा, पढ़ती हैं रामायण

लखनऊ की यह लड़किया तोड़ रही धर्म की बंदिशें ,जानिए ऐसा क्या किया हो रही चारो ओर चर्चा 

लखनऊ की यह लड़किया तोड़ रही धर्म की बंदिशें ,जानिए ऐसा क्या किया हो रही चारो ओर चर्चा 

लखनऊ। हमारे समाज में महिलाओं की माहवारी (उन दिनों) को लेकर सदियों से एक कुप्रथा चली आ रही है कि माहवारी के दौरान महिलाएं और बेटियां मंदिर नहीं जा सकती, रसोई में खाना नहीं बना सकती, अचार नहीं छू सकती। इतना ही नहीं पूजा या रामायण पाठ तक नहीं कर सकती और ना ही इस मुद्दे पर खुल के बात कर सकती। लेकिन लखनऊ के ग्रामीण इलाके की एक लड़कियों के समूह ने सदियों से चले आ रहे इस भ्रम को तोड़ते हुए वो काम किया है जो पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल है।
हम आपको बता दें कि भारतीय संस्कृति में महिला को हमेशा से देवी के समान बताया गया है। ‘देवी’ मतलब ‘शक्तिशाली’, ‘पवित्र’ और ‘माँ स्वरूप’। देवी के इन्हीं गुणों के चलते उनकी पूजा की जाती है और इन्हीं गुणों से महिला की तुलना करके भी उन्हें हमारे धर्मग्रन्थों में पूजनीय बताया गया। गुजरते वक़्त के साथ ढ़ेरों बातों-चलन में बदलाव आया है। लेकिन ‘महिला’ और ‘देवी’ की प्रस्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। देवी माँ के नाम पर आज भी हमारी भक्ति पहले जैसे और महिला की स्थिति बद से बदतर है। हो सकता आप मेरी इस बात से सहमत न हो। तो आइये अपनी बात को पुख्ता करने के लिए महिला से जुड़े ऐसे मुद्दे पर बात करें जिसका ताल्लुक देवी से भी है। लेकिन देवी की प्रक्रिया को पवित्र और महिला की प्रक्रिया माहवारी,पीरियड, मासिकधर्म को अपवित्र माना जाता है।
दुनियां में मिसाल पेश करने का शहर की बेटियों ने किया काम

यूपी की राजधानी लखनऊ से 20 किलोमीटर दूर स्थित बख्शी का तालाब तहसील क्षेत्र के रामपुर बेहड़ा ग्राम पंचायत के सरैया बाजार में गरीबे लाल अपने परिवार के साथ रहते हैं। वह प्राइवेट शिक्षक हैं। उनके परिवार में पत्नी सुषमा बेटा राम मिलन, अनिल, प्रदीप, बेटी अंशु, अंजली हैं। अंशु बीकेटी इंटर कॉलेज में 12वीं की छात्रा और और उसकी छोटी बहन अंजली कक्षा 10 की छात्रा है। अंजली ने बताया कि उसे जब पीरियड आते थे तो मम्मी घर में अचार नहीं छूने देती थी ना ही मंदिर में पूजा करने देती थी। लेकिन एक दिन उसके मन में विचार आया कि इस भ्रम को तोड़ते हैं। उसे जब माहवारी आयी तो उसके भीतर एक डर था लेकिन उसने रामायण की तरफ हाथ बढ़ा दिया। धीरे से रामायण छुई और पढ़ी बाद में कुछ नहीं हुआ। इससे उसकी हिम्मत बढ़ी और वह पीरियड्स में मंदिर गई और पूजा भी की। इससे भी कुछ नहीं हुआ तो उसने ये बात अपनी माँ को बताई। माँ ने बेटी के इस काम को सपोर्ट किया। इससे उसका हौसला बढ़ गया और उसने अपनी सहेलियों को इस बारे में बताया तो वह भौचक्की रह गई। अंशु और उनकी बहन अंजली पीरियड्स में अब मंदिर में पूजा करती हैं।
बेटियों के समर्थन में आए , गांव के कई परिवार

इन दोनों बेटियों के समर्थन में सरैया बाजार गांव की रहने वाले ब्रजमोहन का परिवार भी आ गया। ब्रजमोहन अपने परिवार में पत्नी ब्रजरानी के अलावा बेटा विनीत, विजय और बेटी निशा है। निशा दसवीं की छात्रा है। वह भी माहवारी के दौरान पूजा करती है। इसके अलावा इन बेटियों के परिवार से स्व. रामप्रसाद वर्मा की बेटियां जुड़ी। उनकी बेटी मानसी ने बताया कि वह अपनी माँ उमा देवी वर्मा और बड़ी बहन शिवानी और छोटी बहन नैंसी के साथ रहती हैं। पिता का स्वर्गवास हो चुका है। शिवानी बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा है। मानसी 12वीं और नैंसी 10वीं की पढ़ाई बीकेटी इंटर कॉलेज से कर रही है। वहीं गांव के ही राजकुमार भी अपने परिवार के साथ बेटियों की इस मुहीम में जुड़े। राजकुमार अपनी पत्नी फूलमती बेटा सूरज, कार्तिक और बेटी रेशमा, गुड़िया और विद्या के साथ साथ रहते हैं। विद्या ने दसवीं तक पढाई की है। ये सभी बेटियां माहवारी के दौरान मंदिर में पूजा करके सदियों से चली आ रही कुप्रथा को तोड़ रही हैं।
स्कूल सहित क्षेत्र के लोगों को कर रहीं जागरूक

माहवारी की इस कुप्रथा को ख़त्म कर रही 21वीं सदी की बेटियों ने बताया कि वह माहवारी को लेकर समाज में फैली कुरीति को खत्म करना चाहती हैं। इसके लिए उन्होंने अपने कॉलेज में कार्यक्रम के दौरान इस मुद्दे पर खुलकर बात की तो उनके समर्थन में कई लड़कियां आ गईं। क्षेत्र की आशा बहनें भी उनके इस काम से प्रेरित होकर उनके साथ जुड़ रही हैं। क्षेत्र में बेटियों की इस मुहीम को जोरदार समर्थन मिल रहा है।
कृति की पहल पर जागरूक हुई बेटियां

माहवारी पर खुलकर बात करने के लिए बेटियों की मुलाकात ब्रेकथ्रू संस्था से जुड़ी माला शर्मा से हुई। इनसे बेटियों ने खुलकर बात की तो उन्होंने कई उदाहरण देकर माहवारी पर विस्तार से बताया। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि अगर आप पूर्णागिरि मंदिर में हैं और इसी वक्त अगर पीरियड आ जाता है तो कोई मंदिर से नहीं कूद जाता है, इसलिए ये कुप्रथा ही है इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। बता दें कि ब्रेकथ्रू एक मानवाधिकार संस्था है जो महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ होने वाली हिंसा और भेदभाव को समाप्त करने के लिए काम करती है। कला, मीडिया, लोकप्रिय संस्कृति और सामुदायिक भागेदारी से हम लोगों को एक ऐसी दुनिया बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, जिसमें हर कोई सम्मान, समानता और न्याय के साथ रह सके। ये संस्था मल्टीमीडिया अभियानों के माध्यम से मानवाधिकार से जुडें मुद्दों को मुख्य धारा में ला रहे हैं। इसे देश भर के समुदाय और व्यक्तियों के लिए प्रासंगिक बना रहे हैं। इसके साथ ही हम युवाओं,सरकारी अधिकारियों और सामुदायिक समूहों को प्रशिक्षण भी देते हैं, जिससे एक नई ब्रेकथ्रू जेनरेशन सामने आए जो अपने आस-पास की दुनिया में बदलाव ला सके।
देवी के इस रूप की होती हैं पूजा

कामाख्या देवी का मन्दिर में देवी की माहवारी के प्रसाद के लिए साल भर भक्त करते हैं इंतजार आषाढ़ के महीने में गुवाहाटी के कामाख्या मंदिर की देवी को माहवारी होती है। देवी को होने वाली इस सालाना माहवारी का भक्त पूरे साल इंतज़ार करते हैं। चार दिन तक मंदिर बंद रहता है और कोई भी देवी के दर्शन नहीं कर सकता। मंदिर की देवी की अनुमानित योनि के पास पुजारी साफ़-नए कपड़े रखते हैं और चार दिन बाद ‘खून’ से भीगा यह कपड़ा भक्तों के बीच प्रसाद के तौर पर बांट दिया जाता है। इस कपड़े का प्रसाद में मिलना बड़ी क़िस्मत की बात मानी जाती है और इसलिए इसे लेने-मांगने की चाह वालों की तादाद भी काफ़ी ज़्यादा होती है। डिमांड के हिसाब से सप्लाई के लिए कपड़े के छोटे-छोटे टुकड़े किए जाते हैं ताकि ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को यह माहवारी वाला दिव्य प्रसाद नसीब हो सके। माना जाता है कि देवी को हो रही माहवारी के कारण ही ब्रह्मपुत्र का पानी भी उन चार दिनों के लिए लाल हो जाता है। इस बारे में कई अफ़वाहें भी हैं। कई लोगों का मानना है कि मंदिर के पुजारी ख़ुद ही घटना का वज़न बढ़ाने के लिए ब्रह्मपुत्र के पानी में हर साल इस दौरान रंग डाल देते हैं। ख़ैर, जो भी हो इतना तो तय है कि देवी के खून से सने कपड़ों से लेकर ब्रह्मपुत्र के पानी तक, लोग श्रद्धा से ख़ुद को बेहद ख़ुशक़िस्मत मानकर देवी की माहवारी का जश्न मनाते हैं।
क्या कहती धरातल पर काम करने वाली जानकार

ब्रेकथ्रू संस्था की राज्य प्रमुख कृति प्रकाश ने बताया कि हमारे समाज में लोगों का ये मानना है कि लड़की को पढ़ाना इसलिए जरुरी है कि उसकी अच्छी शादी हो जाये। लेकिन उसकी इंडिविजुअल समझना बहुत जरुरी है। बेटियां जो सपने देखती हैं उन्हें पूरा होना बहुत जरुरी है। उन्होंने कहा कि आजकल के दौर में विज्ञान काफी आगे है फिर भी देश में 12 या 13 प्रतिशत ही लड़कियां सेनेटरी नेपकिन का इस्तेमाल करती है हो एक बड़ा सवाल है। बाकी की लड़कियां अभी भी पुरानी रीती रिवाज के चलते गंदा कपड़ा प्रयोग करती हैं जिससे भयंकर बीमारियां फैलने का खतरा रहता है। उन्होंने कहा उन दिनों के साथ समाज की रूढ़वादिता जुड़ी हुई है कि आप अचार नहीं छुएंगे, पूजा नहीं करेंगे, घर से बाहर नहीं निकलेंगे नहाएंगे नहीं, अछूत के चलते आप को बाहर निकाल दिया जाता है। इस दौरान बेटियों का स्कूल जाना छोड़ देती हैं। एक आंकड़े के अनुसार, 22 प्रतिशत लड़कियां स्कूल नहीं जाती हैं क्योंकि स्कूलों में बेहतर शौचालय नहीं हैं। समाज की रूढ़वादिता को ख़त्म करने के लिए हमने समूह बनाकर बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। इसके बाद अब माहवारी पर लड़कियां अब घरों में भी सवाल करती हैं और वह सदियों से चली आ रही रूढ़वादिता को ख़त्म करने का काम किया है।

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