गठबंधन सब पर भारी पड़ेगा
लोकसभा का चुनाव होने वाला है। सभी पार्टियां अपनी तैयारियों में जुटी हैं। हर पार्टी को अपने-अपने वोट बैंक की चिंता अभी से सताने लगी है। पार्टियां अपने वोट बैंक को संजोने के लिए हर जतन कर रही हैं। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार लोकसभा चुनाव का परिणाम चौंकाने वाला होगा। क्यों कि सपा-बसपा ने गठबंधन कर लिया है और यह गठबंधन सब पर भारी पड़ेगा। पिछले साल यूपी में तीन लोकसभा सीटों पर हुए उप चुनाव में सपा ने दो और रालोद ने एक सीट पर जीत हासिल की थी। इस चुनाव में बसपा ने सपा को समर्थन दिया था। उसी के बाद से कयास लगाया जाने लगा था कि सपा-बसपा का गठबंधन होगा और अंतत: ऐसा हुआ भी। सपा-बसपा गठबंधन अब यूपी में मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे तो मोदी और प्रियंका के लिए यूपी की राह आसान नहीं होगी। गठबंधन के मुताबिक 38 सीटों पर सपा और 38 सीटों पर बसपा चुनाव लड़ेगी। इन दोनों के साथ आने से लोकसभा 2019 में यूपी की तस्वीर 2014 की अपेक्षा काफी अलग होने की उम्मीद है।
लोकसभा का चुनाव होने वाला है। सभी पार्टियां अपनी तैयारियों में जुटी हैं। हर पार्टी को अपने-अपने वोट बैंक की चिंता अभी से सताने लगी है। पार्टियां अपने वोट बैंक को संजोने के लिए हर जतन कर रही हैं। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार लोकसभा चुनाव का परिणाम चौंकाने वाला होगा। क्यों कि सपा-बसपा ने गठबंधन कर लिया है और यह गठबंधन सब पर भारी पड़ेगा। पिछले साल यूपी में तीन लोकसभा सीटों पर हुए उप चुनाव में सपा ने दो और रालोद ने एक सीट पर जीत हासिल की थी। इस चुनाव में बसपा ने सपा को समर्थन दिया था। उसी के बाद से कयास लगाया जाने लगा था कि सपा-बसपा का गठबंधन होगा और अंतत: ऐसा हुआ भी। सपा-बसपा गठबंधन अब यूपी में मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे तो मोदी और प्रियंका के लिए यूपी की राह आसान नहीं होगी। गठबंधन के मुताबिक 38 सीटों पर सपा और 38 सीटों पर बसपा चुनाव लड़ेगी। इन दोनों के साथ आने से लोकसभा 2019 में यूपी की तस्वीर 2014 की अपेक्षा काफी अलग होने की उम्मीद है।
50 पर जीत कोई बड़ी बात नहीं होगी
सूबे की राजनीति में जातीय समीकरण किसी भी पार्टी के लिए काफी महत्व रखता है। यहां जिस पार्टी ने जातीय जुगाड़ बैठा लिया उसकी जीत पक्की मानी जाती है। भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस सहित लगभग सभी पार्टियां अपनी जीत पक्की करने के लिए जाती का जुगाड़ बैठाने की कोशिश में लगी हैं। लेकिन इस बार सपा-बसपा गठबंधन सब पर भारी रहेगा। ऐसा इसलिए है कि जातीय समीकरण इनके पक्ष में दिख रहा है। सपा के पास ओबीसी वोट तो बीएसपी के पास दलित वोट हैं। यह सभी जानते हैं। सूबे में 35 प्रतिशत पिछड़ी तो 25 प्रतिशत दलित वोट बैंक है। अगर ये दोनों साथ आ गए तो गठबंधन को लोकसभा की यूपी की 80 सीटों में से50 पर जीत कोई बड़ी बात नहीं होगी।
सूबे की राजनीति में जातीय समीकरण किसी भी पार्टी के लिए काफी महत्व रखता है। यहां जिस पार्टी ने जातीय जुगाड़ बैठा लिया उसकी जीत पक्की मानी जाती है। भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस सहित लगभग सभी पार्टियां अपनी जीत पक्की करने के लिए जाती का जुगाड़ बैठाने की कोशिश में लगी हैं। लेकिन इस बार सपा-बसपा गठबंधन सब पर भारी रहेगा। ऐसा इसलिए है कि जातीय समीकरण इनके पक्ष में दिख रहा है। सपा के पास ओबीसी वोट तो बीएसपी के पास दलित वोट हैं। यह सभी जानते हैं। सूबे में 35 प्रतिशत पिछड़ी तो 25 प्रतिशत दलित वोट बैंक है। अगर ये दोनों साथ आ गए तो गठबंधन को लोकसभा की यूपी की 80 सीटों में से50 पर जीत कोई बड़ी बात नहीं होगी।
उत्तर प्रदेश में लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का यहां जातीय समीकरण हमेशा ही अहम भूमिका निभाजा आया है। पाटियां अपनी चुनावी रणनीति जातीय समीकरण को ही ध्यान में रखकर बनाती हैं। यहां सियासी दल विकास के चाहे जितने भी दावें करें ये दावे उस समय खोखले साबित हो जाते हैं जब टिकटों के बंटवारे का समय आता है।
हर पार्टी के लिए है महत्वपूर्ण
उत्तर प्रदेश हर पार्टी के लिए अगड़ी, पिछड़ी और दलित जाति का वोट बैंक महत्वपूर्ण है। कोई दल पिछड़ी व दलित को लेकर तो कोई दल अगड़ी और दलित को लेकर तो कोई अगड़ी और पिछड़ी जाति को लेकर अपना समीकरण बनाते हैं। सूबे में 25 फीसदी वोट दलितों का है। यूपी की सियासत में यह वोट बड़ा मायने रखता है। वैसे तो इस वोट को बसपा का वोट बैंक माना जाता रहा है, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इसमें ऐसी सेंधमारी कि यह वोट भाजपा के पक्ष में गया जिससे बीजेपी की यूपी में भारी जीत हुई। इसके बाद अगड़ी जाति का वोट बैंक है जो कई जातियों में बंटा हुआ है।
उत्तर प्रदेश हर पार्टी के लिए अगड़ी, पिछड़ी और दलित जाति का वोट बैंक महत्वपूर्ण है। कोई दल पिछड़ी व दलित को लेकर तो कोई दल अगड़ी और दलित को लेकर तो कोई अगड़ी और पिछड़ी जाति को लेकर अपना समीकरण बनाते हैं। सूबे में 25 फीसदी वोट दलितों का है। यूपी की सियासत में यह वोट बड़ा मायने रखता है। वैसे तो इस वोट को बसपा का वोट बैंक माना जाता रहा है, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इसमें ऐसी सेंधमारी कि यह वोट भाजपा के पक्ष में गया जिससे बीजेपी की यूपी में भारी जीत हुई। इसके बाद अगड़ी जाति का वोट बैंक है जो कई जातियों में बंटा हुआ है।
किस जाति का कितना वोट
सूबे में एक ओर जहां दलितों का वोट बैंक 25 प्रतिशत है तो वहीं ब्राह्मणों का 8, 5 प्रतिशत ठाकुर व अन्य अगड़ी जाति तीन प्रतिशत हैं। देखा जाए तो अगड़ी जाति का कुल वोट प्रतिशत 16 प्रतिशत है। वहीं पिछड़ी जाति के वोटों का प्रतिशत देखें तो करीब 35 प्रतिशत वोट हैं। इसमें 13 यादव, 12 कुर्मी और 10 प्रतिशत अन्य जातियों के लोग आते हैं। यहां सवाल यह उठता है कि जिस पार्टी ने जातीय गणित को साध लिया उसकी जीत सूबे में पक्की मानी जाती है।
सूबे में एक ओर जहां दलितों का वोट बैंक 25 प्रतिशत है तो वहीं ब्राह्मणों का 8, 5 प्रतिशत ठाकुर व अन्य अगड़ी जाति तीन प्रतिशत हैं। देखा जाए तो अगड़ी जाति का कुल वोट प्रतिशत 16 प्रतिशत है। वहीं पिछड़ी जाति के वोटों का प्रतिशत देखें तो करीब 35 प्रतिशत वोट हैं। इसमें 13 यादव, 12 कुर्मी और 10 प्रतिशत अन्य जातियों के लोग आते हैं। यहां सवाल यह उठता है कि जिस पार्टी ने जातीय गणित को साध लिया उसकी जीत सूबे में पक्की मानी जाती है।