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मायावती के लिए आसान नहीं रही सियासी डगर, 16 वर्षों से लगातार लग रहे इन झटकों ने बसपा सुप्रीमो की बढ़ाई मुसीबत

locationलखनऊPublished: Sep 19, 2019 04:40:53 pm

Submitted by:

Hariom Dwivedi

– कांशीराम के बाद बहुजन समाज पार्टी की बागडोर संभालने वाली मायावती के लिए आसान नहीं रही है राह – एक के बाद एक खासमखास नेता छोड़ जाते रहे हैं बहुजन समाज पार्टी का साथ

Mayawati

बहुजन समाज पार्टी को ताजा झटका राजस्थान में लगा है, जहां पार्टी के सभी छह विधायकों ने हाथी का साथ छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया है।

लखनऊ. मायावती (Mayawati) ने जबसे बहुजन समाज पार्टी (BSP) की बागडोर संभाली है, एक के बाद एक खासमखास नेता उनका साथ छोड़कर जाते रहे हैं। जैसे ही लगता है कि बसपा मजबूती से खड़ी है, कोई न कोई बड़ा नेता पार्टी का साथ छोड़कर चला जाता है, या फिर उसे बसपा से निष्कासित कर दिया जाता है। यह सिलसिला पिछले 16 वर्षों से चल रहा है, जब 18 सितंबर 2003 में कांशीराम (Kanshiram) के बाद मायावती ने बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनी गई थीं। बहुजन समाज पार्टी को ताजा झटका राजस्थान (Rajasthan) में लगा है, जहां पार्टी के सभी छह विधायकों ने हाथी का साथ छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया है।
बात सिर्फ राजस्थान की नहीं है। उत्तर प्रदेश में भी पिछले 16 वर्षों से ऐसा ही हो रहा है जब पार्टी के दिग्गज नेताओं ने बसपा को अलविदा कह दिया। लिस्ट लंबी है। इनमें कई नेता तो ऐसे थे जो पार्टी में नंबर दो की या फिर महत्वपूर्ण हैसियत रखते थे। या यूं कहें कि मायावती उन पर सबसे ज्यादा भरोसा करती थीं। बसपा छोड़ने वाले ज्यादातर नेताओं ने मायावती पर टिकट बेचने का आरोप लगाते हुए उन्हें दौलत की देवी बताया और पार्टी से नाता तोड़ लिया। इनमें नसीमुद्दीन सिद्दीकी, स्वामी प्रसाद मौर्य, जुगुल किशोर, आरके चौधरी, बृजेश पाठक, दारा सिंह चौहान और राजेश त्रिपाठी आदि प्रमुख नाम शामिल हैं। बृजेश पाठक, स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। नसीसमुद्दीन सिद्दीकी और आरके चौधरी वर्तमान में कांग्रेस में शामिल हैं।
मायावती को लगातार 16 साल से मिल रहा यह 'धोखा', बन रहा पार्टी टूटने की वजह
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बहुजन समाज पार्टी में बहनजी के आगे किसी की नहीं चलती है। वह कब किसको पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी दे दें और कब किसको बाहर का रास्ता दिखा दें यह तो वहीं जानें। लेकिन इतना तो तय है कि जो भी नेता बसपा से अलग हुए हैं, उनसे पार्टी को नुकसान ही पहुंचा है। दूसरे राज्यों की बात करें तो वहां चुने हुए जनप्रतिनिधि ज्यादा दिन हाथी की सवारी नहीं कर पाते। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यूपी से बाहर के राज्यों में बसपा विधायकों के टूटने के कई कारण हैं। उन्हें लगता है कि राज्य में कभी बसपा की सरकार नहीं आ सकती है, इसलिए मौका देखकर सत्तारूढ़ खेमे में खिसक जाना ही बेहतर है। खासकर उन नेताओं के लिए विपक्ष में बैठे रह पाना मुश्किल होता है, जिन्होंने चुनाव में जमकर पैसा खर्च किया और उनकी खुद की छवि है।
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राजस्थान में बसपा को बड़ा झटका, भड़कीं मायावती
राजस्थान में बहुजन समाज पार्टी के सभी छह विधायक कांग्रेस में शामिल हो गये। निकाय चुनाव से पहले इसे राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का मास्टर स्ट्रोक और बसपा के लिए बड़ा झटका बताया जा रहा है। गौरतलब है कि 2008 में भी अशोक गहलोत के मुख्यमंत्रित्व काल में बसपा विधायक कांग्रेस में शामिल हो गये थे। वहीं, 1995 में राज बहादुर समेत अन्य विधायकों ने मायावती के नेतृत्व को स्वीकारने से मना कर दिया था। नाराज मायावती ने कांग्रेस को धोखेबाज करार देते हुए कहा कि इनकी (कांग्रेस) दोगली नीति की वजह से ही देश में ‘सांप्रदायिक ताकतें’ मजबूत हो रही हैं। क्योंकि, कांग्रेस पार्टी साम्प्रदायिक ताकतों को कमजोर करने के बजाय, इनके विरुद्ध आवाज उठाने वाली ताकतों को ही ज्यादातर कमजोर करने में लगी है।

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