इस अवसर पर महापौर संयुक्ता भाटिया ने कहा कि विगत बार जब मैं यहाँ गुरूद्वारे पर आयी थी तो यहियागंज गुरुद्वारा कमिटी के सदस्यों ने मुझे यहाँ गुरु तेग बहादुर द्वार बनवाने के लिए कहा था। वास्तव में गुरु तेग बहादुर त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति है। उनके जीवनदर्शन से हमे धर्म के साथ त्याग, बलिदान और सेवा की प्रेरणा मिलती है। धर्म और राष्ट्र के लिए प्राणों की आहुति देने वाले गुरु तेग बहादुर का यह द्वार गुरुद्वारा यहियागंज में लखनऊवासियों की ओर से श्रद्धांजलि स्वरूप है। इससे हमारी आने वाली पीढ़ी को गुरु तेग बहादुर के जीवन से प्रेरणा प्राप्त होती रहेगी।
महापौर संयुक्ता भाटिया ने कहा कि सिख गुरु ने धर्म के साथ सेवा को जोड़ते हुए संगत और पंगत की व्यवस्था दी थी। जिसमे धर्म के साथ सेवा को जोड़ा था। आज भी सिक्ख समाज उसी मार्ग पर चलकर देश और समाज मे आयी हर विपदा में जीजान लगा कर जरूरमंदो की सेवा करता है और उन्हें राहत पहुचाने का प्रयास करता है। गुरुद्वारा यहियागंज सहित लखनऊ के सभी गुरुद्वारों से लंगर चला कर राशन आदि सामग्री बांटा जा रहा है जोकि सिख समाज की सेवा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
इस मौके पर गुरुद्वारा यहियागंज कमिटी के सचिव सरदार मनमोहन सिंह ने बताया कि इस ऐतिहासिक गुरुद्वारा यहियागंज में बरसों से गुरुतेग बहादुर द्वार बनवाने हेतु कई जगह पत्राचार किया जा रहा था, यहियागंज गुरुद्वारा और सिक्ख समाज महापौर संयुक्ता भाटिया का आभारी है कि उन्होंने सिक्ख समाज के यह बरसो पुरानी माँग को पूरा करते हुए अपनी निधि से यह द्वारा बनवाने हेतु पास किया है और उसका निर्माण कार्य भी प्रारम्भ करा दिया है। महापौर संयुक्ता भाटिया जी ने अपने कार्यकाल में सिक्ख समाज को अनेको उपहार दिए है। इसके लिए हम महापौर को आभार और धन्यवाद देते है।
इस मौके पर गुरुद्वारा यहियागंज कमिटी के अध्यक्ष डॉ० गुरुमीत सिंह ने बताया कि आज से 351 वर्ष पूर्व सन 1670 में गुरु तेग बहादुर महाराज स्वयं यहाँ 3 दिन तक रुके थे और इसी यहियागंज गुरुद्वारे में 3 दिन यहाँ अरदास की थी। इन नाते से इस गुरुद्वारे का ऐतिहासिक महत्व है। अतः इतिहास को संजोने के लिए यहियागंज गुरुद्वारा समिति सहित समस्त सिक्ख समाज महापौर संयुक्ता भाटिया का हृदय से आभार प्रकट करता है।