लखनऊ

यीशु के जन्म की खुशी के रूप में मनाया जाने वाला सबसे बड़ा पर्व है Merry Christmas

क्रिसमस या बड़ा दिन ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी के रूप में मनाया जाने वाला पर्व है।

लखनऊDec 25, 2017 / 11:55 am

Mahendra Pratap

Christmas day

लखनऊ. क्रिसमस या बड़ा दिन ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी के रूप में मनाया जाने वाला पर्व है। यह पर्व हर साल 25 दिसम्बर को पड़ता है और इस दिन लगभग संपूर्ण विश्व में इस पर्व पर अवकाश भी रहता है। प्रभु यीशु के जन्मदिन के मौके पर हर साल 25 दिसम्बर को भारत समेत पूरी दुनिया में क्रिसमस पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। 25 दिसम्बर का पूर्वाह्न होते ही ‘हैप्पी क्रिसमस-मेरी क्रिसमस’ से बधाइयों का सिलसिला जारी हो जाता है और सभी लोग एक दूसरे को बधाई देते हैं।

क्रिसमस दोनों एक पवित्र धार्मिक अवकाश और एक विश्वव्यापी सांस्कृतिक और व्यावसायिक घटना है। जो दो सदियों से, दुनिया भर के लोग परंपराओं और प्रथाओं के साथ इसे देख रहे हैं जो प्रकृति में धार्मिक और धर्म निरपेक्ष दोनों हैं। ईसाइयों क्रिसमस दिवस को नासरत के यीशु के जन्मदिन की सालगिरह के रूप में मनाते हैं, एक आध्यात्मिक नेता जिसका शिक्षा उनके धर्म का आधार बनती है। लोकप्रिय रीति-रिवाजों में उपहारों का आदान-प्रदान, क्रिसमस पेड़ सजाने, चर्च में भाग लेने, परिवार और दोस्तों के साथ भोजन साझा करना और निश्चित रूप से सांता क्लॉज़ आने के लिए इंतजार करना शामिल है।

ईसाई होने का दावा करने वाले कुछ लोगों ने बाद में जाकर इस दिन को चुना था क्योंकि इस दिन रोम के गैर ईसाई लोग अजेय सूर्य का जन्मदिन मनाते थे और ईसाई चाहते थे की यीशु का जन्मदिन भी इसी दिन मनाया जाए। (द न्यू इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका) सर्दियों के मौसम में जब सूरज की गर्मी कम हो जाती है तो गैर ईसाई इस इरादे से पूजा पाठ करते और रीति- रस्म मनाते थे कि सूरज अपनी लम्बी यात्रा से लौट आए और दोबारा उन्हें गरमी और रोशनी दे। उनका मानना था कि दिसम्बर 25 को सूरज लौटना शुरू करता है। इस त्योहार और इसकी रस्मों को ईसाई धर्म गुरुओं ने अपने धर्म से मिला लिया औऱ इसे ईसाइयों का त्योहार नाम दिया यानि (क्रिसमस-डे)। ताकि गैर ईसाईयों को अपने धर्म की तरफ खींच सके।

 

सांता क्लॉज
सांता क्लॉज को बच्चे-बच्चे जानते हैं। इस दिन खासकर बच्चों को इनका इंतजार रहता है। संत निकोलस का जन्म तीसरी सदी में जीसस की मौत के 280 साल बाद मायरा में हुआ था। बचपन में माता पिता के देहांत के बाद निकोल को सिर्फ भगवान जीसस पर यकीं था। बड़े होने के बाद निकोलस ने अपना जीवन भगवान को अर्पण कर लिया। वह एक पादरी बने फिर बिशप, उन्हें लोगों की मदद करना बेहद पसंद था। वह अर्धरात्री को गरीब बच्चों और लोगों को गिफ्ट दिया करते थे।

क्रिसमस ट्री
जब भगवान ईसा का जन्म हुआ था तब सभी देवता उन्हें देखने और उनके माता पिता को बधाई देने आए थे। उस दिन से आज तक हर क्रिसमस के मौके पर सदाबहार फर के पेड़ को सजाया जाता है और इसे क्रिसमस ट्री कहा जाता है। क्रिसमस ट्री को सजाने की शुरुआत करने वाला पहला व्यक्ति बोनिफेंस टुयो नामक एक अंग्रेज धर्मप्रचारक था। यह पहली बार जर्मनी में दसवीं शताब्दी के बीच शुरू हुआ था।

कार्ड देने की परंपरा
दुनिया का सबसे पहला क्रिसमस कार्ड विलियम एंगले द्वारा 1842 में भेजा गया था। अपने परिजनों को खुश करने के लिए। इस कार्ड पर किसी शाही परिवार के सदस्य की तस्वीर थी। इसके बाद जैसे की सिलसिला सा लग गया एक दूसरे को क्रिसमस के मौके पर कार्ड देने का और इस से लोगो के बीच मेल मिलाप बढ़ने लगा।

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