सिवनी . ट्रेन बंद हुए महीने बीतने को हैं इसके बावजूद भी जिला मुख्यालय से बसों की संख्या में इजाफा नहीं हुआ है। ऐसे में मजबूरन लोगों को खस्ताहाल बसों में सफर करना पड़ रहा है। लोगों से किराया तो पूरा लिया जा रहा है, लेकिन सुविधाएं किराए के ऐवज में नहीं मिल रही हैं। […]
सिवनी . ट्रेन बंद हुए महीने बीतने को हैं इसके बावजूद भी जिला मुख्यालय से बसों की संख्या में इजाफा नहीं हुआ है। ऐसे में मजबूरन लोगों को खस्ताहाल बसों में सफर करना पड़ रहा है। लोगों से किराया तो पूरा लिया जा रहा है, लेकिन सुविधाएं किराए के ऐवज में नहीं मिल रही हैं।
सीटें उधड़ी, खिड़की से कांच गायब
बसों में यात्रियों से प्रति किलोमीटर के हिसाब से किराया वसूला जा रहा है, नियम अनुसार इस किराए में यात्रियों को मिलने वाली हर सुविधा प्राप्त करने का अधिकार है। लेकिन बैठने की सीट से गद्दी गायब है या चिथड़े बन गई है। वहीं खिड़कियों से कांच गायब है, जिससे इन दिनों मुसाफिर ठण्डी हवा से परेशान होते सफर कर रहे हैं। वहीं बसों से किराया सूची भी लापता है।
हेडलाइट, बैकलाइट लापता
जिला मुख्यालय से विभिन्न शहरों और ग्रामीणों के इलाकों के लिए चलने वाली बसों पर गौर किया जाए तो कई खामियां दिखाई देती हैं। गांव-देहात की ओर चलने वाली बसों में तो हेडलाइट-बेकलाइट भी नदारद है। फिर भी इन पर एआरटीओ, ट्रैफिक पुलिस, प्रशासन मेहरबान हैं। अब लोग आरोप लगा रहे हैं, कि अफसरों की सांठगांठ की वजह से ही जिले में दर्जनों ऐसी खटारा, बगैर फिटनेस की बसें दौड़ रही हैं जो, सड़कों पर चलने के योग्य हैं भी नहीं। कुछ बस ऑपरेटरों ने जरूर खानापूर्ति के लिए कागज़ों में फि टनेस दिखाई और तरह फिर वाहन सड़कों पर दौड़ा दिए। इस आलम में मुसाफिरों की जान जोखिम में है, इस बात से बस संचालक तो बेफिक्र हैं ही, प्रशासन ने भी मुंह फेर लिया है।
नहीं हो रही कार्रवाई
जिले में परिवहन विभाग के उदासीन रवैये से बगैर फि टनेस के बस दौड़ाने वालों और नियम, कायदों को दरकिनार करने वालों की पौ-बारह है। भले ही जिला कलेक्टर भरत यादव के द्वारा अवैध रूप से संचालित होने वाली बिना परमिट यात्री बसों की रोकथाम के लिए कड़े निर्देश जारी कर दिए गए हों किन्तु, परिवहन विभाग और पुलिस महज दिखावे के लिए ही कभी-कभार कार्रवाई कर अपने कत्र्तव्यों की इतिश्री कर रही है।
डबल डोर भी नहीं
सड़क हादसे के वक्त बस में सवार मुसाफिर सुरक्षित बाहर निकल सकें, इसके लिए हर बस में डबल डोर (दो दरवाजे) के अलावा पीछे की ओर इमरजेंसी विंडो (आपातकालीन खिड़की) और रखने के आदेश हैं। इसके बावजूद भी ज्यादातर बसों में इमरजेंसी विंडो है ही नहीं। बसों में पीछे की ओर ग्रिल से बंद रखा गया है या बस में ऊपर चढऩे सीढ़ी लगी हुई हैं।
एड बॉक्स नहीं
बसों में प्राथमिक उपचार की सुविधा के लिए फस्र्ट एड बॉक्स, अग्नि हादसे से सुरक्षा के लिए फायर फाइटर सिलेण्डर रखने के निर्देश हैं। ये सुविधाएं भी कुछेक बसों में ही देखने को मिल रही हैं। ये जरूरी इंतजाम हर यात्री बस में मौजूद होने चाहिए, लेकिन इस पर अफसर पड़ताल नहीं कर रहे, जिससे बस मालिक-संचालक भी लापरवाह हो रहे हैं।