उन्होंने अपने गीत की आगे की पंक्तियों ’छोड़ दे सब काम खुदा के लिए, घर की चीजों से भी बहल प्यारे, वक्त है सख्त अब सम्भल प्यारे’ में घर में रहकर घर के कामों में पत्नी का हाथ बटाने और घर के लोगों व वस्तुओं से प्रेम करने की सलाह दी है। शुचिता के गीतों की अन्य पंक्तियों ’कौन जाने कि कौन कैसा हो , फासला रख के दूर चल प्यारे, वक्त है सख्त अब सम्भल प्यारे, में कोरोना से ग्रसित व्यक्ति से दूर और सजग रहने की सलह साफ झलकती है। इसी प्रकार शुचिता ने अपने गीत ’चांद को देख याद कर उनको, घर की छत पर भी तू टहल प्यारे, वक्त है सख्त अब सम्भल प्यारे, खुश हो तू चहचहाती चिड़ियों से, तितलियां देख तू मचल प्यारे, वक्त है सख्त अब सम्भल प्यारे, देख कुदरत भी आज रूठी है अब तो इतना न दे दखल प्यारे, वक्त है सख्त अब सम्भल प्यारे, की पंक्तियों में घर की छत पर टहलकर व्यायाम करने और स्वच्छन्द प्रकृति से भी जुड़ने के लिए प्रेरित किया है।
शुचिता पाण्डेय आगे अपने गीत ’देख कुदरत भी आज रूठी है अब तो इतना न दे दखल प्यारे, वक्त है सख्त अब सम्भल प्यारे, की पंक्तियों में प्राकृतिक चीजों से छेड़छाड़ न करने का संदेश देते हुए घर में रहकर स्वयं को और परिवार को सुरक्षित रखने की अपील भी करती हैं। 3 मिनट के इस गीत को शुचिता ने स्वयं संगीतबद्ध और स्वर दिया है। विदित हो कि शुचिता बिठूर गंगा महोत्सव, मगहर महोत्सव, काशी गंगा महोत्सव, रामायण मेला, बरसाना रंग महोत्सव, लखनऊ महोत्सव जैसे अन्य महोत्सव में वह अपनी स्वर साधना से संगीत रसिको को रांमांचित कर चुकी हैं। इसके अलावा शुचिता के कई वीडियो टी-सारिज से निकल चुके हैं।