लखनऊ। चाहे चुनाव का मौका हो या चुनाव बाद का। हालत यह है कि सपा, बसपा और कांग्रेस के आला कमान अपने अपने सैनिकों को नहीं बचा पा रहे हैं। एक-एक करके वे इनका साथ छोड़कर भाजपा की झोली में समाते जा रहे हैं। ये हफ्ता भी तकरीबन ऐसा ही बीता। अब तक नेता पार्टी कार्यालय जाकर अपनी आस्था प्रकट करते थे, लेकिन अब तो विधानसभा के अंदर ही भाजपा के साथ जाने में उन्हें कोई संकोच नहीं हो रहा है। अब नतीजा यह है कि इन दलों के सेनापतियों के नेतृत्व पर भी सवाल उठने लगे हैं। इनमें सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव हों या फिर बसपा सुप्रीमो मायावती अथवा कांग्रेस की महासचिव व यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी। मौजूदा हालातों ने इन सब को सवालों के कठघरे में खड़ा कर दिया है।
2017 से अब तक बड़ी संख्या में भाजपा में आए दूसरे नेता यूपी में कांग्रेस इस समय बिना नेतृत्व के चल रही है। अध्यक्ष राजब्बर के पास यूपी के लिए उतना वक्त नहीं है, जितना एक होलटाइमर नेता को होना चाहिए। यही कारण है कि कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं ने कांग्रेस से नाता तोड़ा है। चाहे पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी हों या फिर पूर्व विधायक राम सजीवन निषाद। चुनाव के मौके पर बड़ी संख्या में इन नेताओं ने कांग्रेस से पीछा छुड़ाकर भाजपा का दामन पकड़ा था। अब कमोवेश वही प्रथा चली आ रही है।
झटके पर झटके मिल रहे हैं कांग्रेस को कहा जा रहा है कि झटके पर झटके खा रही प्रदेश कांग्रेस संभलने का नाम नहीं ले रही है। गांधी जयंती पर राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की लखनऊ में मौजूदगी और सरकारी की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन में उनके नेतृत्व के बाद भी पार्टी के विधानमंडल के विशेष सत्र का बहिष्कार सफल नहीं हो सका। विधायकों को बहिष्कार की जानकारी कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता अजय कुमार लल्लू की प्रेस वार्ता के बाद मिली।यह सच है कि इसके पहले तो वे सदन में जाने की तैयारी किए बैठे थे। कांग्रेस ने पहले यह तय किया था कि शाहजहांपुर से न्याय यात्रा शुरू होगी और जो लोग इसमें नहीं होंगे, वे सदन की कार्यवाही का हिस्सा होंगे। बाद में फैसला लिया गया कि विधानमंडल की कार्यवाही का बहिष्कार होगा। पर इसकी जानकारी सभी विधायकों को नहीं मिली।
सपा-बसपा में कम नहीं हुई फूट इसी प्रकार तीन साल के भीतर सपा में भी बड़े स्तर पर तोड़ फोड़ हुई। इसका एक बहुत बड़ा कारण पार्टी की अंदूरूनी लड़ाई भी शामिल थी। मुलायम परिवार के टूटते ही पार्टी में भी दरार पड़ गई। नतीजा यह हुआ के सपा के बड़े स्तर पर पूर्व मंत्री और पूर्व विधायक व पूर्व सांसदों ने भाजपा की झोली में जाना ज्यादा बेहतर समझा। किसी तरह पार्टी पटरी में आती कि विशेष सत्र के दौरान परिवार से अलग थलग पड़े सपा विधायक शिवपाल भी सदन पहुंच गए। उन्होंने योगी और मोदी की जमकर तारीफ की। इसी प्रकार बसपा में नेता सदन रहे स्वामी प्रसाद मौर्य, बाबू सिंह कुशवाहा, जैसे नेताओं ने भी भाजपा का दामन थामा था। किसी तरह मायावती अपने सिपाहियों को बचाने की कोशिश कर रही थीं कि विधानसभा के विशेष सत्र में बसपा विधायक असलम राइन ने पार्टी के आदेश के विपरीत सदन में पहुंचकर न केवल सबको चौकाया, बल्कि योगी सरकार की जमकर तारीफ की। भाजपा के यूपी प्रभारी बंसल की भी तारीफ करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी।
संवादहीनता व व्यक्तिगत कारण पार्टी में आए आड़ संवादहीनता और गुटबाजी एक बड़ा कारण है कि सपा, बसपा और कांग्रेस के नेता यहां से टूटकर भाजपा के साथ जा रहे हैं। कांग्रेस विधायक अदिति के कार्यवाही में शामिल होने के व्यक्तिगत कारण भी बताए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि अमूमन उन्हें पार्टी के फैसलों में नहीं किया जाता है। इसके अलावा हाल ही में उन पर हुए कथित हमले के बाद वह सुरक्षा की जरूरत महसूस कर रही थीं। इसके लिए राज्यपाल, सीएम से लेकर डीजीपी तक से कहा गया।