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पद्मश्री सम्मान के लिये चुने गए शरीफ चचा, बेटे की मौत के बाद उनका अनूठा संकल्प बना दूसरों के लिए प्रेरणा

locationलखनऊPublished: Jan 28, 2020 10:21:04 am

अयोध्या में खिड़की अली बेग मोहल्ले के रहने वाले मोहम्मद शरीफ ने अपने बेटे की हत्या के बाद उन्होंने इस नेक काम का जिम्मा उठाया और अब तक वह साढ़े पांच हजार से ज्यादा शवों का अंतिम संस्कार करा चुके हैं…

पद्मश्री सम्मान के लिये चुने गए शरीफ चचा, बेटे की मौत के बाद उनका अनूठा संकल्प बना दूसरों के लिए प्रेरणा

पद्मश्री सम्मान के लिये चुने गए शरीफ चचा, बेटे की मौत के बाद उनका अनूठा संकल्प बना दूसरों के लिए प्रेरणा

अयोध्या. किसी अपने की मौत इंसान को किस हद तक तोड़ सकती है, यह शब्दों में बयां कर पाना बेहद मुश्किल है। जिंदगी ने कुछ ऐसा ही जख्म पेशे से साइकिल मिस्त्री अयोध्या के शरीफ चचा को भी दिया। शरीफ चचा के जवान बेटे की दर्दनाक मौत हुई और फिर लावारिसों की तरह उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस घटना ने उनकी संवेदनाओं को अंदर तक झकझोर दिया। लेकिन अपने इस गम के साथ जिंदगी की डगर पर वह रुके नहीं, बल्कि उन्होंने एक ऐसा संकल्प लिया, जो आज दूसरों के लिए प्रेरणा बन गया। संकल्प यह कि अब अयोध्या की धरती पर किसी भी शव का अंतिम संस्कार लावारिस की तरह नहीं होगा। चाहे वह किसी भी धर्म का हो। इसी अनूठे संकल्प के साथ जी रहे शरीफ चचा को 71वें गणतंत्र दिवस पर पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
पिछले 27 सालों से नेकी का काम कर लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने वाले मोहम्मद शरीफ मोदी सरकार से पद्मश्री सम्मान पाकर काफी खुश हैं। अयोध्या में खिड़की अली बेग मोहल्ले के रहने वाले मोहम्मद शरीफ ने अपने बेटे की हत्या के बाद उन्होंने इस नेक काम का जिम्मा उठाया और अब तक वह साढ़े पांच हजार से ज्यादा शवों का अंतिम संस्कार करा चुके हैं। शरीफ इस सम्मान से बेहद अभिभूत हैं। मोहम्मद शरीफ को उनके नाम से आस-पास के कई गांवों के लोग पहचानते हैं। लोग उन्हें प्यार से चाचा शरीफ के नाम से बुलाते हैं।
बेटे की लावारिस मौत और बदल गया सबकुछ

शरीफ द्वारा लावारिस शवों की अंत्येष्टि करने के पीछे की कहानी काफी मार्मिक है। बात 1993 की है। उनके पुत्र मुहम्मद रईस दवा लेने के लिए सुलतानपुर गए थे, जहां कुछ लोगों ने उसकी हत्या करके शव को कहीं फेंक दिया। बेटे की खोज में शरीफ कई दिनों तक इधर-उधर भटकते रहे। करीब एक माह बाद सुलतानपुर से खबर आई कि बेटे की मौत हो गई और अंतिम संस्कार लावारिसों की तरह हुआ। रईस की पहचान उनकी शर्ट पर लगे टेलर के टैग से हुई थी। टैग से पुलिस ने टेलर की खोज की और कपड़े से शरीफ ने मृतक की पहचान अपने बेटे के रूप में की। जवान बेटे की मौत ने पूरे परिवार को झकझोर कर रख दिया। बेटे की दर्दनाक मौत से आहत शरीफ ने उसी के बाद लावारिस शवों को ढूंढ-ढूंढकर उसका अंतिम संस्कार करने का प्रण लिया। वह अब तक 5500 से ज्यादा लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार अपने हाथों से कर चुके हैं। खास बात यह भी है कि शव की पहचान जिस धर्म के व्यक्ति के अनुसार होती है, उसका अंतिम संस्कार उसी के रीत रिवाज के अनुसार होता है।
साढ़े पांच हजार शवों का किया अंतिम संस्कार

27 वर्षों में करीब साढ़े पांच हजार लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुके पेशे से साइकिल मिस्त्री शरीफ चचा 80 वर्ष की उम्र में भी अपनी प्रतिज्ञा को उसी हौसले और जुनून से निभाते चले आ रहे हैं। शरीफ चाचा ने बताया कि वह अब तक 3000 हिन्दू शवों व 2500 मुस्लिम शवों को अंतिम संस्कार कर चुके हैं। इसके पीछे की दर्दनाक कहानी को बयान करते हुए मोहम्मद शरीफ ने बताया कि 25 साल पहले उनके बेटे की सुल्तानपुर में हत्या कर दी गई थी। इस घटना के एक महीने बाद उन्हें इस बारे में जानकारी मिली। घटना बहुत ही दर्दनाक थी। क्योंकि वह अपने बेटे का अंतिम संस्कार तक नहीं कर सके थे। इसके बाद उन्होंने लवारिस लाशों का अंतिम संस्कार करने का बीड़ा उठाया और तब से अब तक यह काम लगातार जारी है।
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