राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के महाप्रबन्धक-बाल स्वास्थ्य डॉ॰ वेद प्रकाश का कहना है कि स्तनपान केवल मां की जिम्मेदारी ही नहीं है। परिवार, समुदाय, स्वास्थ्य कार्यकर्ता और नियोक्ता को एक साथ मिलकर इसमें सहयोग देने की जरूरत है। इसको देखते हुए स्तनपान की इस साल की थीम “बेहतर आज और कल के लिए, माता-पिता को जागरूक करें, स्तनपान को बढ़ावा दें” रखी गई है। इसके अलावा स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए मातृत्व अवकाश, कार्य स्थल पर सहयोग भी इसमें सहायक साबित होंगे।
ये हैं आंकड़े
जन्म के एक घंटे के भीतर नवजात को स्तनपान कराने से नवजात मृत्यु दर में 33 फीसद तक कमी लायी जा सकती है। इसके अलावा छ्ह माह तक शिशु को केवल स्तनपान कराने से दस्त और निमोनिया के खतरे में क्रमशः 11 और 15 फीसद कमी लायी जा सकती है। नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-4 (2015-16) के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर जहां एक घंटे के अंदर स्तनपान की दर 41.6 फीसद है वहीं उत्तर प्रदेश में 25.2 फीसद और छह माह तक केवल स्तनपान की दर राष्ट्रीय स्तर पर 54.9 और उत्तर प्रदेश में 41.6 फीसद है।
शुरू के दिन हजार, स्वस्थ जीवन के आधार
बच्चे के गर्भ में आने से लेकर दो साल के होने तक का समय बच्चे के सम्पूर्ण शारीरिक और मानसिक विकास का आधार होता है। इस दौरान हुआ स्वास्थ्यगत नुकसान जीवन पर्यंत तकलीफ देता है। इसलिए जरूरी है कि बच्चे को जन्म के पहले घंटे के अंदर स्तनपान कराया जाए क्योंकि पहला गाढ़ा पीला दूध (कोलोस्ट्रम) रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। जन्म के पहले छ्ह माह तक केवल स्तनपान कराना चाहिए। मां के दूध में बच्चे की जरूरत का पर्याप्त पानी होता है। इस दौरान दिया गया ऊपरी कोई भी आहार या पानी संक्रमण का कारण बन सकता है। बच्चे के छ्ह माह का होने के बाद पर्याप्त पोषण युक्त, उम्र के मुताबिक शीघ्र पचने वाला और साफ तरीके से पका हुआ ऊपरी आहार देना शुरू करना चाहिए। इसके साथ स्तनपान कराते रहना चाहिए। बच्चे के दो साल का होने तक यह क्रम बरकरार रखना चाहिए यही बच्चे के स्वस्थ जीवन का आधार बनेगा।
भ्रम
पहला गाढ़ा पीला दूध गंदा होता है, उसे फेंक देना चाहिए।
शहद, चीनी, गुड़ आदि से शिशु के आगमन का स्वागत करना
– खासकर गर्मी के मौसम में बच्चे को स्तनपान कराने के अतिरिक्त पानी देना चाहिए।
– मां का दूध ही केवल शिशु का पेट भरने के लिए पर्याप्त नहीं होता।
तथ्य
– मां को शिशु को नियमित अन्तराल पर स्तनपान कराना चाहिए। इससे बच्चे के शरीर को सभी पोषक तत्व मिलते हैं और मां का दूध भी पर्याप्त मात्रा में बनता है।
– मां के दूध में पानी की पर्याप्त मात्रा होती है। ऊपर से और कुछ भी देने की कोई जरूरत नहीं होती। ऊपरी कोई भी आहार या पानी संक्रमण का कारण बन सकता है।
– पहला गाढ़ा पीला दूध (कोलोस्ट्रम) शिशु के लिए अमृत समान है। यह शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और पोषण तत्वों से परिपूर्ण होता है।
– शिशु को मां के दूध के अतिरिक्त प्रथम आहार के रूप में कुछ भी नहीं देना चाहिए।