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मुलायम से बहुत अलग हैं अखिलेश, जानें दोनों की राजनीति में मुख्य अंतर

locationलखनऊPublished: Sep 25, 2017 11:57:00 am

Submitted by:

Ruchi Sharma

मुलायम से बहुत अलग हैं अखिलेश, जानें दोनों की राजनीति में मुख्य अंतर

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लखनऊ. यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव विपक्ष की भूमिका में हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले अखिलेश यादव ने सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव से बगावत कर उनकी ही पार्टी का सर्वोच्च पद हथिया लिया था। इसके बाद आए चुनावी नतीजों में अखिलेश को करारी हार का सामना करना पड़ा था। पिता के खिलाफ अखिलेश के बगावती तेवर पर राजनीतिक पंडितों का कहना था कि राजनीति की जिद में भी अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह पर ही गए हैं। बहरहाल, अखिलेश ने 2017 के विधानसभा चुनाव में करारी हार की जिम्मेदारी ली और इसके बाद सशक्त विपक्ष की भूमिका में सक्रिय हो गए। वे लोगों के बीच जा रहे हैं और योगी सरकार की गलतियां उजागर कर रहे हैं। अब जबकि पिता मुलायम सिंह यादव अखिलेश से सख्त नाराज हैं तो चर्चा हो रही है कि यदि मुलायम सिंह विपक्ष में होते तो आज की राजनीतिक परिस्थितियों में उनकी क्या भूमिका होती। दोनों राजनीति को किस तरह आगे बढ़ाते। आइए जानते हैं अखिलेश और मुलायम के विपक्ष की राजनीति में अंतर…
मुलायम हमेशा सत्तारूढ़ सरकारों के नजदीक रहे


मुलायम सिंह यादव हमेशा विपक्ष की भूमिका में रहते हुए भी हमेशा केंद्र सरकार में स्थपित सरकार के करीबी बने रहते थे, जिसका फायदा उन्हें और उनकी पार्टी को हमेशा मिलता था। जबकि, वर्तमान समय में अखिलेश यादव और सत्ताधारी पार्टी के बीच ऐसा कोई सम्बन्ध नहीं दिखाई देता है।
सडक़ों पर उतर मुलायम करते थे विरोध प्रदर्शन


मुलायम सिंह यादव जब-जब विपक्ष में होते थे, तब-तब वे सरकार की नीतियों के खिलाफ सडक़ पर कड़े विरोध प्रदर्शन करते थे। जिससे सरकार के हाथ-पैर फूले रहते थे। सरकार मुलायम को हमेशा साधने की जुगत में लगी रहती थी। लेकिन, अखिलेश के विपक्ष में होने पर नोटबंदी जैसी केंद्र की बड़ी नीति के खिलाफ भी सडक़ पर कड़े विरोध प्रदर्शन नहीं हुए।
गरीब और किसान से जुड़े मुद्दों का चयन


मुलायम सिंह यादव हमेशा गरीब और किसानों की समस्या को अपना मुद्दा बनाते थे। सरकार को घेरने का काम भी किया करते थे। लेकिन, अखिलेश यादव के अब तक के विपक्ष की राजनीति में इस तरह का कोई उदाहरण नहीं मिलता। बल्कि अखिलेश चर्चा में आये मुद्दों से ही सरकार पर बयानों से हमला करते हैं।
विरोधियों को लामबंद करने की नीति


मुलायम सिंह यादव हमेशा सरकार के विरोधियों को एक करने के प्रयास में लगे रहते थे। यही कारण है कि मुलायम राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किए जाने वाले राजनीतिक चेहरे के रूप में देखें जाते थे। लेकिन, अखिलेश यादव और देश की अन्य विपक्षी पार्टी के बीच अभी तक ऐसा कोई सम्बन्ध बनता नहीं नजर आ रहा है।
पिता-पुत्र के विचारों में अंतर


मुलायम सिंह यादव हिंदी समर्थक और कम्पूटर के विरोधी रहे हैं। जबकि, अखिलेश नई सोच के नेता हैं। अखिलेश नए विचारों और परिवर्तनों को सहज रूप से स्वीकार करते हैं। इसके उलट मुलायम सिंह पुरातन विचारों की राजनीति के समर्थक रहे हैं।
मुलायम की जातीय राजनीति


मुलायम सिंह की राजनीति हमेशा मुस्लिम और ओबीसी वोटों पर केन्द्रित रही। इस वोट बैंक को खुश करने के लिए ही कई बार मुलायम सिंह ने ऐसे बयान दिये जिससे वोटों का ध्रव्रीकरण हुआ। इससे सामाजिक विघटन भी हुआ। जबकि अखिलेश की राजनीति में जातीय समीकरण कम दिखता है। भले ही उनकी राजनीति मुस्लिम और ओबीसी पर वोटों पर निर्भर है, लेकिन अखिलेश की छवि एक प्रोगेसिव नेता के रूप में है।
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