कभी सेकेंड हैंड कार पर चुनाव प्रचार करने वाले मुलायम सिंह यादव 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे। 1992 का साल मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक कैरियर का टर्निंग पॉइंट रहा। इसी साल अक्टूबर में उन्होंने समाजवादी पार्टी की स्थापना की तो वहीं दिसंबर 1992 में अयोध्या के विवादित ढाँचे के विध्वंस का मामला मुलायम सिंह के लिए सियासी वरदान साबित हुआ।
मुलायम सिंह की नयी बनी राजनीतिक पार्टी को इस मुद्दे ने जान फूँक दी। मुलायम ने इस मुद्दे को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और मुसलमानों को अपनी पार्टी से जोड़ लिया। इस तरह ओबीसी और मुस्लिम वोट बैंक ने समाजवादी पार्टी को खड़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। हाँलाकि 1989 में अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाकर मुलायम को पहले मौलाना मुलायम का तबका मिल चुका था।
1996 का वर्ष भी मुलायम सिंह यादव के लिए कभी न भूलने वाला साल रहा जब वो प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गये। कहा जाता है कि प्रधानमंत्री पद के लिए मुलायम सिंह यादव के नाम पर मुहर लग गयी थी, यहाँ तक कि शपथ ग्रहण की तारीख और समय सबकुछ तय हो चुका था। मगर अंतिम वक्त में उनकी जगह एचडी देवगौड़ा को प्रधानमंत्री बना दिया गया। कहा जाता है कि इसके पीछे लालू प्रसाद यादव और शरद यादव का हाथ था, जिन्होंने उनके नाम पर सहमति नहीं दी।
कॉरपोरेट दोस्तों से के साथ गलबहियाँ एक वक्त ऐसा आया जब धरतीपुत्र कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव देश के बड़े कॉरपोरेट घरानों के साथ नज़दीकियाँ बढ़ने लगीं। रिलायंस के अनिल अंबानी, हिंदुस्तान लीवर के एम एस बंगा, ICICI के कामथ, बजाज के शिशिर बजाज, इंफोसिस के नंदन नीलेकनी, मनिपाल के रामदास पई, सहारा के सुब्रत रॉय और अपोलो हॉस्पिटल के प्रताप सी रेड्डी सब जुड़े थे इससे। अमिताभ बच्चन को यूपी का ब्रांड एंबेसडर बनाया गया। सैफई महोत्सव में बॉलीवुड का छाया रहने लगा।
मंडल और कमंडल के दौर में समाजवादी पार्टी को परवान चढ़ाने वाले मुलायम सिंह यादव एक माहिर राजनेता रहे हैं। उन्हें पता था कि कब किसके साथ रहना है और किसे छोड़ देना है। मुलायम के बचपन के दोस्त और सैफई के प्रधान दर्शन सिंह यादव ने उनके बारे में कहते हैं कि मुलायम ने जाने कितने लोगों की मदद की है लेकिन वे कभी किसी पर इस बात का एहसान नहीं जताते।