समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन 5 अक्टूबर को आगरा में और लखनऊ में 23 सिंतबर को लखनऊ में सपा का प्रदेश सम्मेलन होगा। ऐसे में प्रदेश सम्मेलन से दो दिन पहले मुलायम सिंह यादव द्वारा लोहिया ट्रस्ट के बहाने अपने भरोसेमंद नेताओं की बैठक बुलाने से राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ गई हैं। आइए जानते हैं कि आखिर किन वजहों से मुलायम सिंह यादव ने लोहिया ट्रस्ट की बैठक बुलाई है?
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सपा के होर्डिंग्स से मुलायम गायबसमाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव अब हाशिए चले गए जान पड़ते हैं। शिवपाल यादव का भी नाम नहीं है। पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन की होर्डिंग्स और बैनर्स से मुलायम सिंह यादव का फोटो हटा दिया गया है, जबकि इन होर्डिंग्स-बैनर्स में अखिलेश यादव के साथ किरनमय नंदा, रामगोपाल यादव और आजम खान को जगह दी गई है। समाजवादी पार्टी की स्थापना से लेकर अब तक ऐसा पहली बार होगा, जब पार्टी के सम्मेलनों में मुलायम सिंह यादव की कोई भूमिका नहीं है। ऐसे में मुलायम सिंह यादव लोहिया ट्रस्ट की बैठक के जरिए अपने भरोसेमंद नेताओं के जमावड़े के जरिए अखिलेश यादव को ठोस मैसेज देना चाहेंगे।
शिवपाल भी कह चुके हैं ‘बड़े फैसले’ की बात
शिवपाल यादव पहले भी कई बार सेकुलर मोर्चे के नाम से नया संगठन खड़ा करने की बात कहते रहे हैं। पिछले दिनों मैनपुरी में भी शिवपाल ने कहा था कि अब नेताजी का अपमान अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। शीघ्र ही कोई बड़ा फैसला किया जाएगा। हो सकता है, यह बड़ा फैसला लोहिया ट्रस्ट की बैठक में ही लिया जाए। हालांकि, मुलायम सिंह यादव कई बार सेक्युलर मोर्च को सहमति से इनकार कर चुके हैं। वह बार-बार परिवार में एका की बात करते रहे हैं।
शिवपाल यादव पहले भी कई बार सेकुलर मोर्चे के नाम से नया संगठन खड़ा करने की बात कहते रहे हैं। पिछले दिनों मैनपुरी में भी शिवपाल ने कहा था कि अब नेताजी का अपमान अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। शीघ्र ही कोई बड़ा फैसला किया जाएगा। हो सकता है, यह बड़ा फैसला लोहिया ट्रस्ट की बैठक में ही लिया जाए। हालांकि, मुलायम सिंह यादव कई बार सेक्युलर मोर्च को सहमति से इनकार कर चुके हैं। वह बार-बार परिवार में एका की बात करते रहे हैं।
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तो क्या इसलिए बुलाई बैठक?सपा सूत्रों की मानें तो समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में अखिलेश यादव का अध्यक्ष पद पर चुना जाना जितना तय है, उतना ही यह भी तय है कि इस अधिवेशन में शिवपाल यादव को पार्टी से निकाल दिया जाएगा। इसे मुलायम सिंह यादव भी जान चुके हैं। इसलिए वह लोहिया ट्रस्ट की बैठक के जरिए परिवार में सुलह की कोशिश करेंगे। मुलायम सिंह को इस बात की भी आशंका है कि अगर शिवपाल सिंह यादव को पार्टी से बाहर की राह दिखाई गई तो फिर पार्टी और परिवार को एकजुट रख पाना मुश्किल होगा। ऐसे में वह अपने भरोसेमंद नेताओं के साथ बैठक कर आगे की रणनीति तय करेंगे।
अखिलेश-मुलायम में वैचारिक मतभेद !
अखिलेश यादव सार्वजनिक मंच पर कई बार कह चुके हैं कि नेताजी से कोई मतभेद नहीं हैं, पार्टी को उनका आशीर्वाद चाहिए। लेकिन वह उन्हें पार्टी के अध्यक्ष बनाने पर मौन हो जाते हैं। भले ही अखिलेश यादव कहते हों कि मुलायम से कोई मतभेद नहीं है, लेकिन दोनों की राजनीतिक राय-राय अलग-अलग है। मुलायम नहीं चाहते कि लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी कांग्रेस से गठबंधन करे, जबकि अखिलेश गठबंधन की तरफ बढ़ रहे हैं। राष्ट्रपति चुनाव में भी ऐसा देखने को मिला था, जब दोनों (मुलायम-अखिलेश) की राय अलग-अलग थी। मुलायम सिंह यादव एनडीए कैंडिडेट रामनाथ कोविंद को जिताना चाहते थे, जबकि अखिलेश यादव विपक्ष की राष्ट्रपति उम्मीदवार मीरा कुमार का समर्थन कर रहे थे।
अखिलेश यादव सार्वजनिक मंच पर कई बार कह चुके हैं कि नेताजी से कोई मतभेद नहीं हैं, पार्टी को उनका आशीर्वाद चाहिए। लेकिन वह उन्हें पार्टी के अध्यक्ष बनाने पर मौन हो जाते हैं। भले ही अखिलेश यादव कहते हों कि मुलायम से कोई मतभेद नहीं है, लेकिन दोनों की राजनीतिक राय-राय अलग-अलग है। मुलायम नहीं चाहते कि लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी कांग्रेस से गठबंधन करे, जबकि अखिलेश गठबंधन की तरफ बढ़ रहे हैं। राष्ट्रपति चुनाव में भी ऐसा देखने को मिला था, जब दोनों (मुलायम-अखिलेश) की राय अलग-अलग थी। मुलायम सिंह यादव एनडीए कैंडिडेट रामनाथ कोविंद को जिताना चाहते थे, जबकि अखिलेश यादव विपक्ष की राष्ट्रपति उम्मीदवार मीरा कुमार का समर्थन कर रहे थे।
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ये हैं लोहिया ट्रस्ट के सदस्यलोहिया ट्रस्ट में मुलायम सिंह यादव मुख्य ट्रस्टी और रामगोपाल यादव ट्रस्टी सचिव हैं। इन दोनों के अलावा 11 और ट्रस्टी हैं, जिनमें अखिलेश यादव, बलराम यादव, शिवपाल सिंह यादव, आजम खां, भगवती सिंह, दीपक मिश्रा, जगपाल सिंह, रामसेवक यादव, रामनरेश यादव और राजेश यादव हैं। इनमें से ज्यादातर ट्रस्टी मुलायम के करीबी हैं। लोहिया ट्रस्ट की बैठक में अखिलेश और रामगोपाल यादव के आने की संभावना नहीं के बराबर है, क्योंकि ट्रस्ट की पिछली बैठक में भी दोनों नहीं आए थे।