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जो सत्ता के साथ बहते हैं वह अखबार नहीं होते- मुनव्वर राणा

locationलखनऊPublished: Aug 24, 2016 12:33:00 pm

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UP Patrika

‘सत्ता के साथ तो मुर्दे बहते हैं…’

munawwar rana

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लखनऊ. सत्ता के साथ तो मुर्दे बहते हैं, अखबार सत्ता के खिलाफ आवाज उठाते हैं। यह कहना मशहूर शायर मुनव्वर राणा का, मजूबत लोकतंत्र के लिए मीडिया का आज़ाद होना कितना जरूरी है। इस पर उन्होंने पत्रिका उत्तरप्रदेश से अपने विचार साझा किए।

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आम जनता की नजर में मीडिया जनसूचना का एक माध्यम है। जनता इसे आज़ाद ही समझती है लेकिन यह बात कई लोग जानते हैं कि कई मामलों में मीडिया के हाथ भी बंधे हुए हैं। मुझे लगता है मीडिया खुद कैद में है। किसी भय में, किसी लालच में, किसी दबाव में वह कैद है। मेरा मानना है कि चौथे स्तंभ का ‘मर्द’ होना बेहद जरूरी है। इन दिनों चौथे स्तंभ पर भी तमाम तरह के सवाल उठे हैं। इसलिए मीडिया का आज़ाद होना बेहद जरूरी है। चाहे प्रिंट हो, वेब हो या टीवी हो, जनसूचना और जनरुचि का भाव जरूर होना चाहिए। निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता सामाजिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए जरूरी है। इस मामले में सजग पत्रकार किसी भी दबाव में नहीं आते हैं।

मीडिया अब दारोगा के कंधे पर हाथ रखकर चलती है। कहने का तात्पर्य यह है कि जिन लोगों के खिलाफ आवाज उठना चाहिए मीडिया उन्हीं का दामन थाम लेती है। सत्ता के करीबी होने की तमाम बड़े पत्रकार कोशिशें करते हैं, जो कि गलत है। अगर पत्रकार ही सत्ता के साथ सेटिंग कर लेगा तो वह जनता का पक्ष कैसे रखेगा। सत्ता के साथ तो मुर्दे बहते हैं, जिंदा तो अखबार होते हैं जो सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत रखते हैं। चौथे स्तंभ का आजा़द होना बेहद जरूरी है। मुनव्वर राणा ने पत्रिका उत्तर प्रदेश का यूपी में स्वागत करते हुए कहा कि हम उम्मीद करते हैं निष्पक्ष पत्रकारिता देखने को मिलेगी।
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