लखनऊ आए और प्रेस खोला
मुंशी नवल किशोर का जन्म अलीगढ़ जिले के विस्तोई गांव में एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में सन् 1836 को हुआ था। उनकी शुरू से ही समाचार पत्रों और व्यापार में गहरी दिलचस्पी थी। उन्होंने कुछ समय तक कोहिनूर में काम करने के बाद 1858 में 22 साल की उम्र में वे लखनऊ आ गए। यहां आते ही उन्होंने सबसे पहले नवल किशोर प्रेस स्थापित किया। कम समय में ही इस प्रेस की ख्याति इतनी बढ़ गई कि इसे पेरिस के एलपाइन प्रेस के बाद दूसरा दर्जा दिया जाने लगा।
मुंशी नवल किशोर का जन्म अलीगढ़ जिले के विस्तोई गांव में एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में सन् 1836 को हुआ था। उनकी शुरू से ही समाचार पत्रों और व्यापार में गहरी दिलचस्पी थी। उन्होंने कुछ समय तक कोहिनूर में काम करने के बाद 1858 में 22 साल की उम्र में वे लखनऊ आ गए। यहां आते ही उन्होंने सबसे पहले नवल किशोर प्रेस स्थापित किया। कम समय में ही इस प्रेस की ख्याति इतनी बढ़ गई कि इसे पेरिस के एलपाइन प्रेस के बाद दूसरा दर्जा दिया जाने लगा।
विदेशों में भी है ख्याति
इस प्रेस नें सभी धर्मों की पुस्तकों और एक से बढ़ कर एक साहित्यकारों की कृतियों को छापा। प्रेस में कुल प्रकाशन का ६५ प्रतिशत उर्दू, अरबी और फारसी तथा शेष संस्कृत, हिंदी, बंगाली, गुरूमुखी, मराठी, पशतो और अंग्रेजी में है। पूरी दुनिया के बड़े-बड़े पुस्तकालयों में उनके यहां की किताबें मिल जाती हैं। जापान में मुंशी नवल किशोर के नाम का पुस्तकालय है तो जर्मनी के हाइडिलबर्ग और अमेरिका के हावर्ड विश्वविद्यालय में उनकी प्रकाशित सामग्री के विशेष कक्ष हैं।
इस प्रेस नें सभी धर्मों की पुस्तकों और एक से बढ़ कर एक साहित्यकारों की कृतियों को छापा। प्रेस में कुल प्रकाशन का ६५ प्रतिशत उर्दू, अरबी और फारसी तथा शेष संस्कृत, हिंदी, बंगाली, गुरूमुखी, मराठी, पशतो और अंग्रेजी में है। पूरी दुनिया के बड़े-बड़े पुस्तकालयों में उनके यहां की किताबें मिल जाती हैं। जापान में मुंशी नवल किशोर के नाम का पुस्तकालय है तो जर्मनी के हाइडिलबर्ग और अमेरिका के हावर्ड विश्वविद्यालय में उनकी प्रकाशित सामग्री के विशेष कक्ष हैं।
शाह ईरान भी उनसे मिलने भारत आए थे
मुंशी नवल किशोर का उद्योग के क्षेत्र में भी अपना योगदान है। 1871 में उन्होंने लखनऊ में अपर इंडिया कूपन पेपर मिल की स्थापना की थी जो उत्तर भारत में कागज बनाने का कारखाना था। शाह ईरान ने 1888 में कलकत्ता में पत्रकारों से कहा कि हिंदुस्तान आने के मेरे दो मकसद हैं एक वायसराय से मिलना और दूसरा मुंशी नवल किशोर से। कुछ ऐसे ही ख्यालात लुधियाना दरबार में अफगानिस्तान के शाह अब्दुल रहमान ने 1885 में जाहिर किए थे।
मुंशी नवल किशोर का उद्योग के क्षेत्र में भी अपना योगदान है। 1871 में उन्होंने लखनऊ में अपर इंडिया कूपन पेपर मिल की स्थापना की थी जो उत्तर भारत में कागज बनाने का कारखाना था। शाह ईरान ने 1888 में कलकत्ता में पत्रकारों से कहा कि हिंदुस्तान आने के मेरे दो मकसद हैं एक वायसराय से मिलना और दूसरा मुंशी नवल किशोर से। कुछ ऐसे ही ख्यालात लुधियाना दरबार में अफगानिस्तान के शाह अब्दुल रहमान ने 1885 में जाहिर किए थे।
बहुआयामी व्यक्तिव और बहुआयामी सफलताओं को अपने में समेटने वाले इस पत्रकार, साहित्यकार और उद्यमी का 19 फरवरी 1895 को निधन हो गया। वे आज के लेखकों के लिए भी प्रेरणास्रोत हैं।