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प्राकृतिक खेती किसानों के लिए अधिक लाभकारी,डीएपी यूरिया की जरूरत नही

locationलखनऊPublished: Oct 07, 2021 11:33:43 pm

Submitted by:

Ritesh Singh

जीवामृत के रूप मेे इसका प्रयोग करने से ये सूक्ष्म जीवाणु सैकड़ों गुना बढ़ जाते हैं।
 

प्राकृतिक खेती किसानों के लिए अधिक लाभकारी,डीएपी यूरिया की जरूरत नही

प्राकृतिक खेती किसानों के लिए अधिक लाभकारी,डीएपी यूरिया की जरूरत नही

लखनऊ ,हरितक्रान्ति के नाम पर अन्धाधुन्ध रासायनिक खादों, हानिकारक कीटनाशकों, हाइब्रिड बीजों एवं अधिकाधिक भूजल दोहन से भूमि की उर्वरा शक्ति, उत्पादन, भूजल स्तर और मानव स्वास्थ्य में निरन्तर कमी आयी है। किसान खेती की बढ़़ती लागत एवं बाजार पर पूरी तरह र्निभरता के चलते घाटे के कारण खेती छोड़ रहे हैं। परन्तु इस दिशा में लोक भारती द्वारा पद्मश्री सुभाष पालेकर द्वारा विकसित प्राकृतिक खेती पर सक्रियता से कार्य का परिणाम अब रंग लाने लगा है।
किसान समृद्वि आयोग के सदस्य एवं लोक भारती के सम्पर्क प्रमुख श्रीकृष्ण चौधरी का कहना है कि लाखों किसान सफलपूर्वक प्राकृतिक खेती को अपनाकर अच्छा लाभ प्राप्त कर रहे हैं। प्रदेश के कृषि विभाग द्वारा अलग-अलग क्लाइमेटिक्स जोन में स्थापित किये गये कृषि परीक्षण एवं प्रर्दशन केन्द्रों में प्राकृतिक खेती शुरू की गयी है। जिसमें इटावा, अलीगढ़, मथुरा, मेरठ, बरेली, वाराणसी, आजमगढ़, बराबंकी, हरदोई और लखनऊ जिले शामिल हैं। नमामि गंगे योजना के अन्र्तगत गंगा नदी से सम्बन्धित सभी 27 जिलों में नदी के तटवर्ती गाॅंवों में प्राकृतिक खेती प्रारम्भ की गयी है जिसका अच्छा परिणाम मिल रहा है।
प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालय एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों में इस पद्वति से खेती करते हुए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्वति एवं परम्परागत कृषि विकास योजना के अन्र्तगत प्रदेश में इस पद्वति को लागू किया गया है। श्री चैधरी के अनुसार देशी गाय के गोबर, गोमूत्र, गुण, बेसन, पानी व विभिन्न पेड़-पौधों की पत्तियों का उपयोग कर बीजामृत, जीवामृत घनजीवामृत, दशपर्णी अर्क, नीमास्त्र बनाने का प्रशिक्षण किसानों को दिया जा रहा है। देशी गाय के एक ग्राम गोबर में 300 से 500 करोड़ सूक्ष्म जीवाणु पाये जाते हैं जो मिट्टी में अनुकूल परिस्थिति तन्त्र का र्निमाण कर पौधों को सभी पोषक तत्वों को उपलब्ध कराते हैं। जीवामृत के रूप मेे इसका प्रयोग करने से ये सूक्ष्म जीवाणु सैकड़ों गुना बढ़ जाते हैं।
इसके अतिरिक्त फसल अवशेष को खेतों में आच्छादन (मल्चिंग), सह फसली व बेड पद्वति का उपयोग करने से भूमि की उर्वरा शक्ति एवं कार्बन की मात्रा में बृद्वि के साथ ही 80 प्रतिशत पानी की भी बचत होती है। पर्यावरण एवं प्रकृति का संरक्षण कर एक देशी गाय के गोबर-गोमूत्र के द्वारा 10 से 30 एकड़ खेत में प्राकृतिक खेती की जा सकती है। इस पद्वति से खेती करने से भूमि में देशी केचुए सक्रिय होकर खेत को उपजाऊ और मुलायम बनाने में मदद करते हैं। उत्पादित़ खाद्वान्य की गुणवक्ता, पौष्टिकता व स्वाद में बृद्वि के कारण किसान को अपने उत्पाद का बाजार में अधिक मूल्य भी मिल रहा है। प्रकृति मेे पौधों के पोषण की चक्रीय एवं स्वावलम्बी व्यवस्था है।
इस पद्वति से खेती करने पर प्राकृतिक आपदा जैसे- ओला, अति वर्षा, सूखा आदि का प्रभाव फसलों पर कम पड़ता है। प्रदेश के सभी जिलों में अच्छी संख्या में सफल माडल प्राकृतिक किसान हैं जो सफलतापूर्वक प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। इसे जैविक खेती से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है। प्राकृतिक खेती किसानों को बाजार पर र्निभरता से पूरी तरह मुक्त करती है। जबकि जैविक व रासायनिक खेती महॅगी व बाजार पर र्निभर है और कम उत्पादन प्राप्त होता है।
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