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नारायण दत्त तिवारी की कुंडली में था एकावली योग, जानिए कैसे पड़ा उन पर इसका असर

locationलखनऊPublished: Oct 18, 2018 08:35:59 pm

Submitted by:

Abhishek Gupta

नारायण दत्त तिवारी नहीं रहे। 93 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गयी।

ND Tiwari

ND Tiwari

वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह.
स्मृति शेष.

लखनऊ. नारायण दत्त तिवारी नहीं रहे। 93 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गयी। एक ज्योतिषी मित्र ने बताया था उनकी कुण्डली में एकावली योग था। एकावली के बारे में उन्होंने बताया कि यदि लग्न से अथवा किसी भी भाव से आरम्भ करके सातों ग्रह क्रमशः सातों भावों में स्थित हो तो ”एकावली योग” बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला जातक महाराजा अथवा मुख्यमन्त्री या फिर राज्यपाल आदि होता है। बहरहाल उनका यह तथाकथित एकावली योग तो मुझे बहुत प्रभावित नहीं करता, लेकिन उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य के रूप में उन्होंने जो काम किया है, उस पर किसी को भी गर्व हो सकता है। तीन मुख्यमंत्रियों ने उनकी राजनीति और वक्तृता की धार देखी थी।
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1952 में तिवारी जी नैनीताल क्षेत्र से प्रसोपा ( प्रजा सोशलिस्ट पार्टी-झोपड़ी निशान ) से चुनकर आये थे। गोविन्द वल्लभ पन्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। कुछ दिन बाद पन्त जी केंद्र सरकार में चले गए और डॉ संपूर्णानंद मुख्यमंत्री हुए। जिस तरह से पहाड़ की और किसानों की समस्यायों को उन्होंने विधानसभा में उठाया, सरकार को उसके बारे में विचार करने को मजबूर होना पड़ा। 1957 में भी वह नैनीताल से ही चुनकर आये। उनकी पार्टी के नेता त्रिलोकी सिंह विरोधी दल के भी नेता थे। नारायण दत्त तिवारी प्रसोपा के उपनेता थे। गन्ना किसानों की समस्याओं को जिस धज से तिवारी जी ने उत्तर प्रदेश सरकार का एजेंडा बनाया, वह किसी भी संसदविद का सपना हो सकता है। उनके हस्तक्षेप के कारण ही उत्तर प्रदेश में गन्ना विभाग में बहुत काम हुआ। बहुत सारे विभाग आदि बने। उस दौर में चंद्रभानु गुप्त मुख्यमंत्री थे और उन्होंने विपक्ष से आने वाली सही बातों को सरकार के कार्यक्रमों में शामिल किया। गुप्त जी मूल रूप से डेमोक्रेट थे। आज जिस उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री लोग सरकारी मकान पर क़ब्ज़ा करने के लिए तरह-तरह के तिकड़म करते देखे गए हैं, उसी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में चंद्रभानु गुप्त अपने पानदरीबा वाले पुराने मकान में ही जीवन भर रहे, सरकारी आवास कभी नहीं लिया। गुप्त जी जैसे बड़े नेता भी विपक्षी के रूप में नारायणदत्त तिवारी का लोहा मानते थे।
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1963 में नारायण दत्त ने पार्टी बदल दी। जब जवाहरलाल नेहरू ने सोशलिस्टिक पैटर्न आफ सोसाइटी को सरकार और कांग्रेस का लक्ष्य बताया और समाजवादियों को कांग्रेस में शामिल होने का आवाहन किया तो बहुत सारे सोशलिस्ट नेता कांग्रेस में शामिल हो गए। अशोक मेहता जैसे राष्ट्रीय नेता की अगुवाई में जो लोग कांगेस में गए उसमें उत्तर प्रदेश के दो प्रमुख सोशलिस्ट थे। नारायण दत्त तिवारी और चन्द्र शेखर। कांग्रेस में तो उनको बहुत सारे पद-वद मिले। दो राज्यों के मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल वगैरह भी रहे, लेकिन मुझे उनकी शुरुआती राजनीति हमेशा ही प्रभावित करती रही है। 1963 का वह काल उनके राजनीतिक जीवन का स्वर्ण काल है।
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