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स्मार्टफोन बढ़ा रहा तनाव, हर 36वें सेकेंड आया नोटिफिकेशन ले सकता है आपकी जान

locationलखनऊPublished: Jun 11, 2019 12:53:40 pm

– मोबाइल इनबॉक्स में आया नोटिफिकेशन बढ़ा देता है तनाव
– तनाव इंसानों के शरीर में करता है कोर्टिसोल हार्मोन का स्राव
– यह हार्मोन दिल को तेजी से पंप कर बढ़ा देता है शरीर में शुगर की मात्रा
– मोबाइल फोन पर आने वाली अनावश्यक सूचनाओं से बनाएं दूरी

negative effects addiction of smartphone mobile device on health

स्मार्टफोन बढ़ा रहा तनाव, हर 36वें सेकेंड आया नोटिफिकेशन ले सकता है आपकी जान

लखनऊ. अगर आपको भी दिनभर फोन में झांकने रहने की आदत है तो सावधान हो जाइये। वैज्ञानिकों के अनुसार यह आदत आपकी उम्र को कम कर सकती है। सभी जानते हैं कि तनाव बुरा होता है। डॉक्टर अक्सर चेतावनी भी देते हैं कि तनाव आपकी जान ले सकता है। तनाव इंसानों के शरीर में कोर्टिसोल हार्मोन का स्राव करता है। यह हार्मोन दिल को तेजी से पंप करता है और शरीर में शुगर की मात्रा को बढ़ा देता है। पहले लोगों को कभी-कभार ही इस स्थिति का सामना करना पड़ता था। लेकिन, अब फोन का इनबाक्स भी तनाव देने वाला बन गया है। एक रिसर्च के मुताबिक हर शख्स के मोबाइल पर औसतन हर 36 सेकेंड में एक नोटिफिकेशन आता है। इनबॉक्स में नोटिफिकेशन से तनाव का स्तर बढ़ता है। दिनभर फोन में झांकते रहने से तनाव बढ़ेगा और उम्र कम होने का खतरा ज्यादा होगा। ऐसे में जरूरी है कि सभी अपने दिमाग को मोबाइल फोन पर आने वाली अनावश्यक सूचनाओं से दूरी बनाकर रखे। चाइल्ड साइकोलोजिस्ट के मुताबिक मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल घातक है। इससे कोर्टिसोल का अत्यधिक स्राव और तनाव वाले हार्मोन के बढ़ने के कारण इंसानों के शरीर की सारी कार्यप्रणाली गड़बड़ हो जाती है। जिसके चलते बच्चों की नींद खो रही है। वह भ्रम व भूलने के शिकार हो रहे हैं। बच्चों-किशोरों के लिए तो यह स्थिति काफी घातक है।

 

 

 

 

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माता-पिता के मौबाइल पर बिजी बच्चे

लखनऊ की चाइल्ड साइकोलोजिस्ट नम्रता के मुताबिक आजकल बच्चे स्कूल से घर आने के बाद अपने माता-पिता का मोबाइल फोन लेकर बैठ जाते हैं और घंटों उसे छोड़ते नहीं। वह मोबाइल पर यू-ट्यूब, गेम्स और दूसरी चीजें देखते रहते हैं। जिससे हमारे बच्चों के आंखों की रोशनी प्रभावित होती है और उन्हें कम उम्र में ही चश्मा लग जाता है। यहां तक कि बच्चे बालपन में ही बड़ों जैसी बातें करन लगते हैं। उन्हें देर रात तक नींद नहीं आती। आज इस समस्या से 3-4 साल के बच्चे भी अछूते नहीं रहे। मोबाइल और टैबलेट स्क्रीन से हद से ज्यादा चिपके रहने के कारण उनमें हार्मोनल डिसबैलेंस होता है, जिस वजह से स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है।
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जा सकती है आंखों की रोशनी

एरा मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. एके जलाली की मानें, तो रात में बहुत देर तक मोबाइल स्क्रीन देखने से आंखों की रोशनी तक जा सकती है। स्लीपिंग साइकिल अव्यवस्थित होने से नींद न आने की बीमारी हो सकती है। डॉक्टर्स की मानें तो एक वक्त के बाद आंखें थक जाती हैं, लेकिन लोग फिर भी थकी हुई आंखों से काम लेते रहते हैं। इसमें बच्चों के साथ उनके पैरेंट्स शामिल हैं, जो अक्सर रात में लाइट्स बंद कर चैंटिंग या वीडियो देखते हैं। इस कारण स्क्रीन से निकलने वाली किरणें सीधे आंखों पर पड़ती हैं जिससे वे प्रभावी ढंग से काम करना बंद कर देती हैं। एक शोध के अनुसार, जिस तरह बच्चों को स्मार्टफोन और अन्य डिवाइसेज सीमित समय के लिए ही इस्तेमाल करने चाहिए, उसी तरह पैरंट्स को भी इन पर कम समय बिताना चाहिए।
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फोन को खुद से रखें दूर

किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज में मनोचिकित्सक विभाग के डॉ श्रीकांत की मानें तो आजकल 8 से 12 साल के बीच के बच्चे हर दिन करीब पांच घंटे मोबाइल पर बिताते हैं। श्रीकांत बताते हैं कि सोशल मीडिया, स्ट्रीमिंग वीडियो, टेक्स्ट मैसेजिंग, संगीत और ऑनलाइन चैटरूम्स सहित डिजिटल माध्यमों के इस्तेमाल से किशोरों का न सिर्फ मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ रहा है, बल्कि उनकी एकाग्रता भी घट रही है। क्योंकि मोबाइल से निकलने वाली रेडियो तरंगें न केवल दिमाग पर गहरा प्रभाव डालती हैं, बल्कि इससे सुनने की क्षमता भी कम होती है। इससे मानसिक विकारों का खतरा भी कई गुना बढ़ जाता है। इसलिए जितना संभव हो, फोन को खुद से दूर रखने का प्रयास करें।
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