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यूपी में प्रेशर पॉलिटिक्स का नया गेम प्लान, भागीदारी के लिए सौदेबाजी

locationलखनऊPublished: Sep 01, 2021 06:33:46 pm

Submitted by:

Mahendra Pratap

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 से पहले एक दर्जन छोटी पार्टियां बड़ी पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लडऩे के लिए दबाव बना रही हैं। जाति आधारित इन पार्टियों के प्रेशर में आकर बड़े दल समझौते को मजबूर हैं

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UP Election 2022

लखनऊ. महेंद्र प्रताप सिंह (पत्रिका न्यूज नेटवर्क). यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Election 20 22) के लिए अभी पूरी तरह से माहौल नहीं बना है। लेकिन, प्रेशर पॉलिटिक्स (pressure politics) चरम पर है। जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) Janstta Dal के अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजाभैया Raghuraj pratap singh raja Bhaiya ने एलान कर दिया है, वे सीएम योगी आदित्यनाथ CM Yogi Aditynath के खिलाफ अपने प्रत्याशी नहीं उतारेंगे। जाहिर दबाव की राजनीति के तहत यह घोषणा हुई है। उधर, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी SBSP ने सपा SP, बसपा BSP , भाजपा BJP और कांग्रेस congress के समीकरणों को बिगाड़ दिया है। ओमप्रकाश राजभर Om prakash Rajbhar एक साथ भाजपा-सपा दोनों के साथ चुनावी गठबंधन का लालीपॉप दिखा रहे हैं। निषाद पार्टी Nishad Party और अपना दल Apna dal पहले से ही भाजपा BJP पर गठबंधन का दबाव बनाए हुए हैं। इसी तरह एक दर्जन छोटी पार्टियां अपनी-अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हुए बड़ी पार्टियों में अपनी हिस्सेदारी मांग रही हैं।
चुनावी मैदान में उतरने से छोटे दल पहले अपनी तरकश से तीर निकाल चुके हैं। ये राष्ट्रीय और बड़ी पार्टियों से सौदेबाजी कर रहे हैं। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में 290 पार्टियों ने अपनी किस्मत आजमायी थी। इसमें से 32 ऐसी छोटी पार्टियां थीं जिनके प्रत्याशियों को 5 हजार से 50 हजार तक वोट मिले थे। छह ऐसे दल भी थे जिनके प्रत्याशियों को 50,000 से ज्यादा वोट मिले। जबकि, वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में 200 से ज्यादा पंजीकृत पार्टियों ने अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। लेकिन, यह सब वोटकटवा ही साबित हुए। इनकी वजह से भाजपा, सपा और बसपा के कई प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा। इसीलिए इस बार चुनाव से पहले बड़े दल छोटे दल को साधना चाहते हैं।
मोलभाव में जुटे दल
इस बार भी एक दर्जन से ज्यादा पार्टियां भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी जैसे बड़े दलों के साथ मोलभाव करने में जुटी हैं। इनमे से अधिकतर जाति आधारित पार्टियां हैं। अपने जातीय समीकरण के चलते अपने कुछ हजार वोट से यह खेल बनाने और बिगाडऩे की ताकत रखते हैं। इसीलिए भाजपा और सपा दोनों ही इनके दबाव में हैं। सपा ने पहले ही घोषणा कर रखी है कि वह बड़े दलों से समझौता नहीं करेगा। जबकि, बसपा और कांग्रेस ने एकला चलने का संकेत दिया है। उधर, भाजपा अपने सहयोगी दलों-अपना दल, निषाद पार्टी, रिपब्लिकन पार्टी तथा बिहार की विकासशील इंसान पार्टी के साथ गठबंधन का मन बनाए है।
भाजपा के साथ मोलभाव
निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद खुद को उपमुख्यमंत्री के रूप में पेश करने की मांग भाजपा से कर रहे हैं। करीब 100 विधानसभा सीटों और आधा दर्जन लोकसभा क्षेत्रों में निषाद समुदाय निर्णायक स्थिति में हैं। निषाद पार्टी ने 2019 का चुनाव भाजपा के साथ लड़ा और प्रवीण निषाद जीते। इसी तरह अपना दल की अनुप्रिया पटेल कुर्मी बिरादरी में खासा प्रभुत्व रखती है। भाजपा के साथ चुनावी गठबंधन कर अपना दल ने 2017 के चुनाव में नौ सीटें जीतीं थीं। खुद अनुप्रिया सांसद हैं।
समाजवादी पाटी्र्र के साथ कौन
सपा के साथ महान दल का समझौता हुआ है। इस दल का शाक्य, सैनी, मौर्य तथा कुशवाहा बिरादरियों में प्रभाव है। इसके अलावा राष्ट्रीय लोक दल, जनवादी सोशलिस्ट पार्टी, तथा कुछ अन्य छोटे दल भी समझौता कर सकते हैं। सपा के कद्दावर नेता रहे शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया (प्रसपा) भी भाजपा के खिलाफ एक गठबंधन तैयार करने की कोशिश में हैं। सपा से प्रसपा की नजदीकियां बढ़ रहीं हैं। आम आदमी पार्टी भी यूपी के विधानसभा चुनाव मैदान में उतरने का ऐलान कर चुकी है।
भागीदारी संकल्प मोर्चा के साथ कितने दल
2017 में भाजपा के साथ सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) ने गठबंधन किया था। और सुभासपा ने चार सीटें जीती थीं। सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। लेकिन वे बाद में अलग हो गए और भागीदारी संकल्प मोर्चा का गठन किया। इसमें सांसद असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम, चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) जैसी पार्टियां जुड़ सकती हैं।

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