दावा खारिज होने पर आपत्ति निर्मोही अखाड़े (Nirmohi Akahada) के वकील रंजीत लाल वर्मा ने बताया कि अगले 4 से 5 दिनों में अयोध्या (Ayodhya) या वृंदावन (Vrindawan) में अखाड़े के पंचों की बैठक होगी। इस बैठक में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले पर विचार होगा। बैठक में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्मोही अखाड़े (Nirmohi Akahada) के दावे को खारिज किए जाने के महत्वपूर्ण बिंदु पर चर्चा होगी। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई (CJI Ranjan Gogoi) की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि निर्मोही अखाड़े का दावा कानूनी समय सीमा के तहत प्रतिबंधित है। रंजीत लाल वर्मा के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड (Uttar Pradesh Sunni Waqf Board) के दावे को कानूनी समय सीमा के तहत प्रतिबंधित नहीं माना और निर्मोही अखाड़े के दावे को उसी आधार पर प्रतिबंधित कर दिया। इसी अहम सवाल को लेकर बैठक में पुनर्विचार याचिका दायर किए जाने पर फैसला लिया जाएगा। निर्मोही अखाड़ा, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त 14 अखाड़ों में से है। इस अखाड़े ने 1959 में बाबरी मस्जिद की विवादित भूमि पर अपना मालिकाना हक जताते हुए एक मुकदमा दायर किया था।
क्यों दी पांच एकड़ जमीन हिन्दू महासभा (कमलेश तिवारी गुट) के वकील हरीशंकर जैन ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले से अयोध्या में मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया है। वहां भगवान राम का मंदिर बनेगा, इस पर हमें कोई दिक्कत नहीं है। मगर फैसले के कुछ बिन्दुओं पर हमारी असहमति जरूर है। जैन ने कहा कि हम फैसले का बहुत गंभीरता के साथ अध्ययन कर रहे हैं। इसके बाद महासभा की बैठक में फैसला होगा कि इस फैसले पर हम पुनर्विचार दाखिल करें या नहीं। जैन ने कहा कि महासभा को फैसले में बाबरी मस्जिद का अस्तित्व स्वीकार किए जाने और सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ जमीन दिये जाने पर एतराज है।
निर्मोही अखाड़े के पंच करेंगे बैठक सुप्रीम कोर्ट की ओर से रामजन्मभूमि (Ram Janam Bhumi) पर स्वामित्व का दावा करने वाली निर्मोही अखाड़ा की याचिका को खारिज करने के बाद फैसले पर सामूहिक मंथन के लिए अखाड़े के पंच जल्द अयोध्या (Ayodhya) आ रहे हैं। सभी पंच मिलकर फैसले पर पुनर्विचार याचिका से लेकर बोर्ड ऑफ ट्रस्ट में बतौर ट्रस्टी शामिल होने या न होने पर भी विचार-विमर्श करेंगे। अखाड़े के अयोध्या बैठक के महंत दिनेन्द्र दास ने बताया कि हम पहले से कहते आ रहे हैं कि कोर्ट का हर फैसला शिरोधार्य है। बावजूद इसके अदालत की लड़ाई कानूनी अधिकार की लड़ाई थी, जिस पर पुनर्विचार याचिका दायर करना हमारा कानूनी अधिकार है।