चुनाव आयोग की वेबसाइट पर जारी आंकड़ों के मुताबिक, पांच राज्यों में आधे फीसदी से लेकर 2.1 फीसदी तक वोट नोटा के पक्ष में पड़े। मिजोरम में 0.5 फीसदी, छत्तीसगढ़ में 2.1 फीसदी, मध्यप्रदेश में 1.5 फीसदी, राजस्थान 1.3 फीसदी और तेलंगाना में 1.1 फीसदी लोगों ने प्रत्याशियों के मुकाबले नोटा को दबाना बेहतर समझा। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो किसान और बेरोजगारी जैसे मुद्दों के अलावा नोटा भी बीजेपी की हार में अहम कारण है। कहा जा रहा है कि एससी-एसटी एक्ट में संशोधन से नाराज लोगों ने नोटा का इस्तेमाल किया है। एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के विरोध में भारत बंद के दौरान सवर्ण संगठनों ने बीजेपी सरकार को चेतावनी देते हुए कहा था कि वह इस बार नोटा का बटन दबाकर भारतीय जनता पार्टी को सबक सिखाएंगे।
बीजेपी की राह में रोड़े
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में भी नोटा का इस्तेमाल देखने को मिल सकता है। पांच राज्यों में हुए चुनाव के दौरान उन सीटों पर नोटा ने बीजेपी की प्रत्याशियों की जीत के सामने दीवार खड़ी कर दी, जहां करीबी मुकाबला था। कई सीटें ऐसी थीं, जिन पर हार का अंतर 100 से ज्यादा या फिर उससे कम था।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में भी नोटा का इस्तेमाल देखने को मिल सकता है। पांच राज्यों में हुए चुनाव के दौरान उन सीटों पर नोटा ने बीजेपी की प्रत्याशियों की जीत के सामने दीवार खड़ी कर दी, जहां करीबी मुकाबला था। कई सीटें ऐसी थीं, जिन पर हार का अंतर 100 से ज्यादा या फिर उससे कम था।