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अब सात वचन के साथ सरकारी वचन भी निभाना जरूरी, केवल इतने लोग हो सकेंगे शामिल, नहीं तो होगी सख्त कार्रवाई

locationलखनऊPublished: May 25, 2020 04:56:17 pm

Submitted by:

Neeraj Patel

सात फेरों में सरकार की कड़ी शर्तों के बंधन से वेडिंग इंडस्ट्रीज पर पड़ा प्रभाव, हर साल इतने करोड़ का होता है कारोबार

अब सात वचन के साथ सरकारी वचन भी निभाना जरूरी, केवल इतने लोग हो सकेंगे शामिल, नहीं तो होगी सख्त कार्रवाई

अब सात वचन के साथ सरकारी वचन भी निभाना जरूरी, केवल इतने लोग हो सकेंगे शामिल, नहीं तो होगी सख्त कार्रवाई

लखनऊ. सात फेरे। सात वचन। बस बंध गए जन्म-जन्म के बंधन में…। पर अब सात वचन के साथ सरकारी वचन भी निभाना होगा। शादी समारोह (Wedding Ceremony) में अधिकतम 20 के शामिल होने की शर्त से वेडिंग इंडस्ट्री संकट में आ गई है। इस 20 की संख्या में दूल्हा-दुल्हन, रिश्तेदार, बराती-घराती सब शामिल हैं। ऐसे में शादी वाले घरों में सवाल उठ रहे हैं। किसका न्योता काटें, किसको शामिल करें? कुल मिलाकर असमंजस की स्थिति है। वहीं बाजार में भी सवाल उठ रहे हैं कि जब संख्या इतनी कम होगी तो उनके लिए क्या काम होगा? वेडिंग इंडस्ट्री (Wedding Industry) का तो पूरा कारोबार ही शादियों के सीजन से जुड़ा है। सवाल इसलिए भी है कि सालाना औसतन 900-1000 करोड़ रुपये का कारोबार यह इंडस्ट्री करती है।

शादी कार्ड (Marriage Card) छपाई से लेकर कैटरर, डेकोरेटर, फ्लोरिस्ट समेत एक बड़ा वर्ग इस कारोबार से जुड़ा है। वेडिंग प्लानर (Wedding Planner) बताते हैं कि एक शादी से कम से कम 500 परिवारों की रोजी-रोटी सीधे तौर पर वेडिंग प्लान से जुड़ी है। यदि 200-250 बड़े-छोटे वेडिंग प्लानर हैं यानी हजारों परिवारों को इनसे रोजगार मिला हुआ है। पर, अब हालात ऐसे हैं कि जिन्हें दो महीने किसी तरह वेतन मिल भी गया उनके सामने भविष्य का सवाल है।

जानिए क्या कहते है वेडिंग प्लानर्स

शादी को लेकर वेडिंग प्लानर्स बताते हैं कि इस साल हिंदू-मुस्लिम को मिलाकर कुल 60 सहालग हैं। लखनऊ में सहालग के एक दिन में औसतन 300 शादियां होती हैं। मार्च से मई तक खाली बीत चुका है। जून भी लगभग खाली ही बीत रहा है। नवंबर-दिसंबर की शादियों को लेकर भी लोग परेशान हैं। मोटे तौर पर 300 रोजाना के औसत से देखें तो 60 दिनों का आंकड़ा 18,000 आता है। शहर में कुछ शादियाें में तो खर्च करोड़ रुपये से भी ज्यादा होते रहे हैं। अगर एक वेडिंग प्लान पर औसतन 5 लाख रुपये का खर्च भी मान लें तो आंकड़ा 900 करोड़ पहुंच जाता है। इनके अलावा शादियों के सीजन में सराफा, कपड़ों, इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स, फर्नीचर इन सबके कारोबार में भी तेजी आती है। पाबंदियों से इनपर भी गहरा असर पड़ रहा है।

बाजार में तेजी लाने के लिए रास्ता निकालना जरूरी

वेडिंग प्लानर हामिद हुसैन बताते हैं कि उनकी 15 बुकिंग कैंसिल हुई हैं। परिवार-रिश्तेदार ही मिलाकर 50 से ज्यादा हो जाते हैं। व्यवस्था से जुड़े लोग इसके अलावा होते हैं। हमारे पास मिस्ट फैन से सैनिटाइजेशन की व्यवस्था है। भीड़ को कैसे मैनेज करना है इसपर भी काम हो रहा है। मेरा मानना है कि कोरोना के साथ हमें जीने की आदत डालनी ही होगी। बाजार में तेजी लानी है तो वेडिंग इंडस्ट्री के लिए बीच का रास्ता निकालना ही पड़ेगा।

हमारे रोजगार का तो जरिया ही खत्म हो जाएगा

वेडिंग प्लानर शिप्रा भदौरिया कहती हैं कि हमारा ट्रांसपोर्ट वाला अभी फोन करके कह रहा था खाने को खत्म हो गया है, पैसे चाहिए। यही हाल अन्य स्टाफ का है। ये उदाहरण सिर्फ इसलिए कि समस्या कैसे विकट हो रही है। 20 की पाबंदी से तो शादी समारोह से जुड़ा उद्योग ही खत्म हो जाएगा। समय रहते इसे नहीं संभाला गया तो स्वरोजगार का यह जरिया भी खत्म होगा। नौकरी पहले ही खतरे में है। हम कब तक स्टाफ को सैलरी दे पाएंगे। वेडिंग प्लानर अंकुर गर्ग सवाल उठाते हैं कि जब फ्लाइट, ट्रेनें, बसें भर कर आ रहीं हैं तो शादी में 20 लोगों की पाबंदी क्यों है? इसमें छूट मिलनी ही चाहिए। हां, भीड़ के मैनेजमेंट के लिए प्रशासन गाइडलाइन जारी कर सकता है। औचक निरीक्षण कर सकता है। गैदरिंग मैनेजमेंट न मिले तो जुर्माना लगा सकते हैं। मेरा तो यह भी कहना है कि स्वास्थ्य रिपोर्ट जमा करा लें। लेकिन रोक लगाना आर्थिक रूप से बड़ी चोट देगा।

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