उन्होने कहा कि यह बहुत बड़ी महामारी थी और पहली व दूसरी लहर में एक-एक दिन में 38,055 केस थे, 24 अप्रैल 2021 तक और आज पॉजिटिव केसेस की संख्या घटकर 93 हो गई है। यह कुशल प्रबंधन और कारगर मॉनिटरिंग का परिणाम था कि कोराना जैसी महामारी से निपटने के लिए जो प्रयास किया गया उसमें सफलता मिली। उन्होंने कहा कि पहले प्रदेश में कोरोना टेस्ट की क्षमता मात्र 70 थी आज हमारे पास लगभग ढाई लाख टेस्ट करने की क्षमता हुई है। निजी क्षेत्र में और सरकारी क्षेत्र में लैब्स का बहुत बड़ा इजाफा हुआ है ताकि सिक्योर टेस्ट किया जा सके।
उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने स्वास्थ्य व चिकित्सा शिक्षा के बजट को लगभग दोगुना किया गया है। एक लाख करोड़ रुपए का बजट खाली चिकित्सा स्वास्थ्य पर हम लोगों खर्च कर रहे हैं। सबसे बड़ी महामारी की घटना के दौरान देश में अपनी वैक्सीन बनी और दो-दो बनी। उन्होंने सपा प्रमुख पर तंज कसते हुए कहा कि एक विपक्षी पार्टी के बड़े नेता ने कहा कि वह तो भारतीय जनता पार्टी की वैक्सीन है। विपक्ष की सभी पार्टियों ने जनता में भ्रम फैलाने का काम किया जिससे वैक्सीनेशन की रफ्तार धीमी रही। उसका प्रभाव हमारे फर्टिलिटी रेट और पॉजिटिव रेट पर पड़ा। भ्रांतियों के कारण स्वास्थ्य टीम गांव में जाती थी तो लोग भाग जाते थे। बाद में इसको स्वीकार किया और वैक्सीनेशन करवाया। उन्होंने कहा कि विपक्ष ने अगर उस समय यह दुष्प्रचार ना किया होता तो शायद इतनी मौतें ना होती। लेकिन आज मुझे यह कहते हुए खुशी है कि वैक्सीनेशन का कार्यक्रम काफी तेजी से चल रहा है लगभग 11 करोड़ 28 लाख 40 हजार 727 लोगों को फर्स्ट डोज लग चुकी है, जो कि उत्तर प्रदेश की जनसंख्या का 76.54 परसेंट है। सेकंड डोज 5 करोड़ 9 लाख 71 हजार 596 लोगों को लग चुकी है। कुल वैक्सीन की लगभग 16 करोड़ 38 लाख 12323 डोज लग चुकी है।
उन्होंने कहा कि जब समाजवादी पार्टी ने सत्ता सौंपी थी उस समय प्रदेश में मात्र 12 सरकारी मेडिकल कॉलेज कार्यरत थे, हमारी सरकार में पहले फेज में 7 मेडिकल कॉलेज, दूसरे फेज में 9 मेडिकल कॉलेज फंक्शनल हुए और तीसरे फेज में 14 मेडिकल कॉलेज स्वीकृत हो चुके हैं। सुरेश खन्ना ने कहा कि अटल बिहारी बाजपेई चिकित्सा विश्वविद्यालय और दो एम्स कुल 33 मेडिकल कॉलेज हमारी सरकार ने प्रदेश को दिए। जिसमें से अटल बिहारी बाजपेई चिकित्सा विश्वविद्यालय तथा 14 मेडिकल कॉलेज निर्माणाधीन है। खन्ना ने कहा कि इतने मेडिकल कॉलेज का निर्माण नाम बदलने से नहीं हुआ है बल्कि काम और विकास के कारण हुआ है। अखिलेश यादव केवल अपनी नाकामी को छुपाते हैं अपनी असफलता को छुपाते हैं। 2017 में एमबीबीएस की सीटें 1840 थी 2021 में 3000 सीटें हैं, निजी मेडिकल कॉलेजों में 2550 थी पहले अब 4150 सीटें हो गई हैं, एमडीएमएस की 741 थी उसके स्थान पर 1027 सीटें हो गई।