साहित्यकार डा. सुरभि सिंह ने कहा कि त्योहार लोक जीवन के प्राण वायु हैं और इनसे ही हमारी संस्कृति सनातन प्रवाह के साथ बह रही है। उन्होंने कहा कि त्योहार मनाने की प्रवृति और उत्साह शाश्वत है। परिवार में कोई अनहोनी हो तो भी अवसाद व दुःख कम करने में यही प्रवृति काम करती है। पिछले एक वर्ष से कोरोना के कहर की चर्चा करते हुए कहा कि प्रतिकूलताओं में भी हमने उत्साह के साथ उत्सव मनाये।
लोक विदुषी डा. विद्याविन्दु सिंह ने त्योहारों को लोक जीवन की सहचरी बताते हुए फाग के स्वरूप पर विस्तार से चर्चा की। नवयुग कन्या महाविद्यालय के हिन्दी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डा. अपूर्वा अवस्थी ने सावधानी के साथ त्योहार मनाने की अपील करते हुए कहा कि आपदाएं तो हमेशा आती रही हैं लेकिन त्योहार और पर्व की महत्ता कम नहीं होती। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. करुणा पांडे ने देवर के संग होली खेल भाभी है इठलाय जैसे फागुनी दोहे तथा गीतकार सौरभ कमल ने मोरे सैंया रिसाय गए होली मा सुनाया।