जानकार मानते हैं कि अधिक नंबर लाने के दबाव से बच्चों पर परीक्षा का बोझ बना रहता है। कई ऐसे बच्चे होते हैं, जो 40 मार्क्स से सिर्फ एक या दो नंबर पीछे रह जाते हैं। ऐसे में उनमें निराशा की स्थिती बनी रहती है। कई बार ऐसा भी सुनने को मिलता है कि कम अंक की वजह से बच्चे सुसाइड कर लेते हैं।
न्यूनतम मार्कस के लिए लिया ये फैसला इंटर बोर्ड वर्किंग ग्रुप (आईबीडब्ल्जी) की ओर से लाए गए इस बदलाव का कारण है कि देश में सारे बोर्ड में एक ही न्यूनतम माार्क्स होना चाहिए। सिर्फ हाईस्इंकूल और इंटरमीडियट में ही नहीं बल्कि आंतरिक परीक्षा में भी ये बदलाव किया जाना है।
लखनऊ की सेंट थेरेसा कॉलेज की प्रिंसिपल गितीका कपूर का कहना है कि ”बोर्ड का ये फैसला बच्चों के भविष्य की दिशा में सही फैसला है। कुछ अंको से पीछे रह जाने की वजह से बच्चे मानसिक तनाव क्यों झेलें। न्यूनतम अंकों को 40 की बजाय 33 और 35 फीसदी करना सही फैसला है। अगर देखा जाए, तो लिटरेट इंडिया के विकास में ये एक अच्छा कदम है”।
बोर्ड का ये फैसला उन बच्चों के लिए राहत की सांस लेने वाली खबर है, जो सिर्फ एक या दो नंबर से पीछे रह जाते हैं। परीक्षा में आए नंबर को लेकर तनाव इससे कम होगा।