भारतीय महिला पहलवानों की बात ही लीजिए, इन दिनों दिल्ली के जंतर-मंतर पर 7 महिला पहलवानों साथ हुई यौन हिंसा के खिलाफ धरना दिया जा रहा है। एशियाई गेम्स में स्वर्ण लाने वाले पहली महिला पहलवान विनेश फोगाट और अन्य पहलवान न्याय के लिए डटे हैं। वो रो रही हैं, पुलिसिया डंडों के बीच खड़ी हैं। और अब उन पर खेल में जातिगत राजनीति करने के आरोप लगाए जा रहे हैं।
यह भी कि पहले क्यों नहीं बोला, अब क्यों बोला, अब ही क्यों बोला, दस साल कहां थी, कॅरियर बनाने के लिए चुप थी?, तब कहां थी, अब कहां से आई, कहां जाएंगी जैसे सवाल खड़ा करने वालों की तादाद लाखों में है। उनके सभी जाति, धर्म और संप्रदाय वाले हैं, जो बेटियों पर लगाए जाने वाले इस सवालिया निशान को हाथों में लिए घूम रहे हैं।
बाकी क्रिकेटर हो या अन्य एथलीट, सभी बराबर इस मामले से दूरी बनाए रखे हुए हैं। बॉलीवुड से लेकर स्मृति ईरानी की पॉलिटिक्स तक सब छिपे हैं। सब अभी एक हैं। जब लड़ाई बेटियों की हो तो समाज उनके साथ खड़ा होने के बजाय उनके सामने खड़ा हो जाता है।
अपना पूरा दमखम इन्हें हराने में लगा देता है। और समाज के साथ सिस्टम हो तो फिर एकता के क्या कहने? फिर चाहे विदेशी मीडिया कितनी ही धूल डाले, बेटियों को हराना हमारा एकमात्र उद्देश्य रह जाता है। काश कि यही सिस्टम और समाज उनके साथ दिखाई देता, लेकिन इतना संवेदनशील होने में अभी सालों का सफर तय करना बाकी है। क्योंकि बलात्कार और यौन हिंसा का हम कब का सामान्यीकरण कर चुके हैं। अब यह खबरें ना हमें उद्वेलित करती हैं और ना ही हमारी संवेदनशीलता को झकझोरती हैं। हम जिंदगी का आम हिस्सा मानकर आगे बढ़ जाते हैं।
जबकि एनसीआरबी के 2021 के आंकड़ों के मुताबिक हर दिन देश में 150 से ज्यादा बलात्कार के मामले दर्ज हो रहे हैं, लेकिन एक उदाहरण यहां देना जरूरी है। यूपी का हाथरस रेप और हत्याकांड मामला। 14 सितंबर 2020 की घटना में चार आरोपी के नाम सामने आए थे। जब रेप किया गया तो कतई तौर पर उस लड़की की जात नहीं देखी गई, लेकिन जब आरोपियों पर पुलिस की पकड़ का दबाव बना तो पूरी पंचायत बैठ गई उन आरोपियों को बचाने में। वहां कथित उच्च जातियां एक होती दिखाई दी।
हैरानी की बात तो यह है कि इस मामले में चारों आरोपियों पर गैंगरेप का आरोप नहीं माना गया। जबकि मामले में हाथरस के पुलिस अधीक्षक विक्रांतवीर खुद प्रेस कॉन्फ्रेस कर बता चुके थे कि पीड़िता ने 22 सितंबर को उसके साथ हुए बलात्कार की बात कही थी। लेकिन नहीं, वहां भी गैंगरेप था तो उसने 14 सितंबर को ही क्यों नहीं कहा?, 22 को ही क्यों कहा?, इसके बीच क्यों नहीं कहा? बस ऐसे ही सवाल उठाने वाले एक राय थे।
अब और कुछ नहीं तो बेटियों के आरोपों को, उनके आंसुओं को झूठा दिखाने के लिए राजनीति को बीच में ले आया गया है। कहा जा रहा है कि एक पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाने, दूसरी पार्टी के एजेंडे पर पहलवान धरने पर हैं। राजस्थान की ओलंपियन कृष्णा पूनिया ने इसका करारा जवाब दिया है कि जब सारी दुनिया इन एथलीट को देख रही है, दुनियाभर के मीडिया की नजरें इस मामले पर हैं, उस समय में अपनी अस्मत को दांव पर लगाकर, बदनामी गले लगाकर वो किसी पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए धरने पर बैठेंगी? और एक बात और भी अच्छी रही कृष्णा पूनिया की, उन्होंने कहा कि जब यही पहलवान देश के लिए पदक ला रही थीं, तब ये देश की बेटियां थी। अब उन पर किसी जाति विशेष के लोगों को घेरने की साजिश आरोप लगाया जा रहा है।