पत्रिका अभियानलखनऊ. राजधानी का सबसे व्यस्तम बाजार है अमीनाबाद। यह सबसे पुरानी मार्केट है। राजधानीवासियों की जरूरत इस मार्केट में आए बिना पूरी नहीं होती। बृहस्पतिवार को यहां बाजार भी लगती है। इस दिन यहां आने वाली महिलाएं पानी नहीं पीतीं। कारण जानकर हैरान रह जाएंगे आप। क्योंकि, यहां के टायलेट की स्थिति में बारे में वे कुछ निश्चिंत नहीं होतीं। इनमें गरीब और अमीर दोनों महिलाएं शामिल होती हैं। इनकी संख्या अनगिनत होती है। लेकिन, भीड़ भरे बाजार में महिलाओं के लिए अलग टायलेट यानी पिंक टायलेट की बात कोई नहीं करता। अफसोस। अब तो लखनऊ की मेयर भी महिला हैं। बावजूद इसके वह लखनऊ के भीड़ बाजारों में महिलाओं के लिए अलग शौचालय निर्माण की कोई पहल नहीं कर रहीं।
पुरुषों के लिए नहीं है कोई दिक्कतपुरुष तो सार्वजनिक जगहों पर शौचालय न होने पर कहीं भी निपट लेते हैं। यानी उन्हें पेशाब करने के लिए शौचालयों के मोहताजी नहीं खलती। जबकि महिलाओं के साथ ऐसा नहीं है। सार्वजनिक स्थलों में साफ-सुथरे शौचालय स्त्रियों का बुनियादी हक हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की नोटिस के बाद भी कोई संज्ञान नहीं लिया जा रहा।
सुप्रीम कोर्ट का है निर्देशजबकि, स्कूलों में लडक़े-लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालयों की व्यवस्था को शिक्षा के बुनियादी अधिकार से जोड़ा गया है। अक्टूबर 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने स्कूलों में शौचालयों की व्यवस्था को लेकर बेहद महत्वपूर्ण आदेश दिया था। राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों को आदेशित किया गया था कि वे सभी स्कूलों में अस्थाई शौचालयों की व्यवस्था करें। लेकिन, महिलाओं के लिए बाजारों में ऐसी व्यवस्था का नितांत अभाव है।
समाज भी उदासीनलड़कियों के हितों के लिए
काम करने वाली अहिल्याबाई फाउंडेशन की अध्यक्ष सृष्टि सिंह कहती हैं कि कम से कम लड़कियों, स्त्रियों के लिए स्कूलों, सार्वजनिक जगहों, और संस्थानों में अलग महिला शौचालयों की जरूरत है। उप्र में पुंलिस विभाग ने यह पहल शुरू की है। सभी थानों में महिलाओं के लिए पिंक टायलेट बनाने की बात की जा रही है। लेकिन, समाज महिलाओं के नितांत निजीकर्मों संबंधी जरूरत के अब भी उदासीन बना है। यह घोर असंवेदनशीलता है।
यह है स्कूलों की हालतबात राजधानी के स्कूलों की करें तो एक सर्वे के मुताबिक करीब 38 फीसदी सरकारी स्कूलों में टॉयलेट हैं ही नहीं। जबकि, लड़कियों के लिए 47 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में अलग टॉयलेटों की व्यवस्था नहीं है।
यह होती है परेशानीस्कूल, कॉलेज, ऑफिस व अन्य सार्वजनिक स्थलों पर महिला शौचालयों न होने से महिलाओं को शारीरिक परेशानियोंं का सामना करना पड़ता है। ज्यादा देर तक पेशाब रोकने और पानी कम पीने के कारण लड़कियों, स्त्रियों के शरीर में कई खतरनाक बीमारियां हो जाती हैं। जैसे गुर्दे की तरह-तरह की बीमारियां, किडऩी फेल होना, पेशाब की नलियों में रूकावट या फिर कई तरह के यूरीनरी इन्फेक्शन आदि। ऐसे में उन्हें इन गुप्त व प्रकट बीमारियों से अकेले चुपचाप लडऩा पड़ता है। मासिक चक्र के समय में स्कूल और सार्वजनिक स्थलों पर शौचालयों की कमी कितनी ज्यादा खलती है, इसके बारे में महिला ही बता सकती है।